सुप्रीम कोर्ट ने कहा- गांव वापस लौट रहे मज़दूरों को दिया जाए रोज़गार, 9 जून को विस्तृत आदेश
अपने राज्य वापस लौटने के लिए परेशान फिर रहे मजदूरों की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की थी. 28 मई को इस मामले में कोर्ट ने मज़दूरों से किराया न लिए जाने जैसे कई निर्देश जारी किए थे. केंद्र और सभी राज्यों से मामले पर जवाब देने को कहा था.
आज हुई सुनवाई में केंद्र और राज्यों ने इस मसले पर आंकड़े पेश किए. कोर्ट को बताया कि वापस लौटने के इच्छुक तकरीबन 90 फ़ीसदी प्रवासी मजदूर अपने राज्य में पहुंच चुके हैं. केंद्र ने बताया कि अब तक 4200 श्रमिक ट्रेन चलाई गई हैं. ट्रेन और सड़क मार्ग से 1 करोड़ लोगों को घर भेजा गया है. केंद्र ने यह भी बताया कि अभी राज्य सरकारों ने 171 ट्रेनों का अनुरोध कर रखा है. अनुरोध मिलने के 24 घंटे के भीतर ट्रेन का बंदोबस्त किया जा रहा है.
महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट को जानकारी दी कि अभी तक 802 ट्रेनों और सड़क मार्ग से 11 लाख मज़दूरों को वापस भेजा जा चुका है. 38,000 को भेजना बाकी है. गुजरात ने कहा कि वहां से 20.5 लाख लोगों को वापस भेजा गया है. यूपी ने करीब 26 लाख और बिहार ने 28 लाख लोगों के वापस आने की जानकारी दी. दूसरे राज्यों ने भी अपने यहां से जाने और वापस आने वालों के आंकड़े दिए.
जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एम आर शाह की बेंच ने इस पर संतोष जताया. कोर्ट ने कहा, "अगले 15 दिन में बचे हुए लोगों को भी उनके राज्य वापस भेज दिया जाए. वापस लौटने की इच्छा रखने वाले प्रवासी मज़दूरों के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को और सरल किया जाए."
बेंच ने आगे कहा, "राज्य हमें बताएं कि जो लोग घर वापस लौट रहे हैं, उन्हें रोज़गार देने का क्या इंतज़ाम है? सभी राज्यों को गांव और प्रखंड के स्तर पर अपने यहां वापस लौटे मज़दूरों का रजिस्ट्रेशन करना चाहिए. उन्हें रोज़गार देने की व्यवस्था करनी चाहिए. उनकी परेशानी दूर करने के लिए काउंसिलिंग भी करें." इस पर बिहार सरकार के वकील ने बताया कि राज्य सरकार ने इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी है. वापस लौटे लोगों में से 10 लाख लोगों की स्किल मैपिंग की गई है, ताकि उन्हें उचित रोजगार दिया जा सके.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी आज मामले में पक्ष रखने की अनुमति मांगी. आयोग ने प्रवासी मज़दूरों की समस्या को हल करने के लिए सुझाव दिए. केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें मानवाधिकार आयोग को पक्ष बनाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है. इसके बाद कोर्ट ने आयोग की तरफ से पेश हलफनामा स्वीकार कर लिया.
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, इंदिरा जयसिंह, कॉलिन गोंजाल्विस, जयदीप गुप्ता भी अलग अलग अर्ज़ीकर्ताओं की तरफ से पेश हुए और सुझाव दिए. एक के बाद एक वकीलों को देखते हुए कोर्ट को आखिर कहना पड़ा कि इस गंभीर मसले पर उसका इरादा ठोस आदेश देने का है, कोई मजमा लगाने का नहीं.
सुनवाई के दौरान सरकार ने दावा किया कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन से लौट रहे किसी भी व्यक्ति की मौत भूख से नहीं हुई है. सरकार ने कहा कि पहले से चली आ रही बीमारी की वजह से कुछ लोगों की मौत हुई है. कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि सभी के सुझावों पर विचार करते हुए आदेश दिया जाएगा. कोशिश की जाएगी कि तमाम कठिनाई झेल कर अपने गांव वापस पहुंचे मज़दूरों की ज़िंदगी कुछ आसान की जा सके. जो अभी भी दूसरे राज्य में फंसे हैं, उन्हें वापस पहुंचाने पर ज़ोर दिया जाएगा.