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 यूपी में पत्रकार व मीडियाकर्मी नहीं है सुरक्षित , यूपी की कानून व्यवस्था हो रही है ध्वस्त

यूपी में पत्रकार व मीडियाकर्मी नहीं है सुरक्षित , यूपी की कानून व्यवस्था हो रही है ध्वस्त

उत्तर प्रदेश में कलम से ज्यादा ताकतवर हैं प्रशासन, पुलिस और अपराधी है।  ये अक्सर पेन की निब तोड़ देते हैं. 
उत्तर प्रदेश में सरकार कोई सी भी रही हो, लेकिन पत्रकारों को धमकाने, पीटने और हत्या के मामलों में कोई कमी नहीं आई है.
जबकि मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों स्पष्ट कहा था कि पत्रकारों के मामले बेहद संवदेनशील तरीके से देखे जायें। मगर पुलिस के बड़े अफसरों को इससे कोई मतलब नहीं है। यूपी की कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो गयी है यहां पत्रकार सुरक्षित नहीं है। पत्रकारों पर कहीं नेता और मंत्री हमला करवा रहे हैं तो कहीं खाकी का कहर पत्रकारों की जान ले रहा है।

नतीजा यह है कि प्रदेश सरकार में सुरक्षित नहीं है , नतीजन आये दिन पत्रकार कहीं बिल्डर तो कहीं भू- माफियों और गोरखधंधा  करने वालों का शिकार हो रहे हैं। 

भारत के संविधान का चौथा स्तंभ जो सर्दी हो या बरसात दिन-रात खबरों का संकलन करके जन-जन तक जनता की आवाज पहुंचाने वाले पत्रकार ही नहीं सुरक्षित हैं तो जनता का क्या हाल होगा यह सवालिया निशान है?
 इस घटना में तमाम संगठनों और राजनीतिज्ञों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़े शब्दों में निंदा करते हुए दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की मांग की है।

बड़ा सवाल यह है कि पत्रकार पर हाथ डालने से ये भ्रष्ट अधिकारी पहले तो घबराते हैं लेकिन जब इन भ्रष्ट अधिकारियों और गैर कानूनी धंधा करने वालों को कहीं से संरक्षण मिल जाता है तो इनका मनोबल दोगुना हो जाता है। इसके बाद ये भ्रष्ट अधिकारी जांबाज पत्रकारों का न सिर्फ उत्पीड़न करते हैं, बल्कि हत्या जैसे अंजाम को देने से भी बाज नहीं आ रहे है आये दिन इन भ्रष्टाचारियों की भेंट एक जनसेवक पत्रकार चढ़ रहा है लेकिन इन भ्रष्टाचारियों पर हर कोई कार्रवाई  करने में हाथ पीछे खींचता रहता है, नतीजन पत्रकार न्याय के लिए भटकता रहता है।


8 जून 2015 को शाहजहांपुर में जनपद में सोशल मीडिया पत्रकार जगेन्द्र ने भ्रष्ट मंत्री और भ्रष्ट पुलिस की साजिश का शिकार होकर 8 जून को लखनऊ के सिविल अस्पताल में दम तोड़ दिया था। शहीद पत्रकार ने 22 मई को सूबे के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे पत्र में अपनी हत्या की आशंका जता दी थी, लेकिन तब अधिकारियों और प्रशाशन ने ध्यान नहीं दिया आखिर उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा।

11 जून 2015 को कानपुर जनपद में पत्रकार की कुछ दबंगों द्वारा जुए  के अड्डे का संचालन की  शिकायत करने पर पत्रकार दीपक मिश्र को गोली मार दी थी। दीपक के शरीर में 2 गोली लगीं थी जिसमें एक गोली पेट में और दूसरी गोली कंधे में लगी उन्हें गम्भीर हालात में हैलट अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

31 जुलाई 2015 को यूपी के कन्नौज जनपद की छिबरामऊ तहसील में पत्रकार राजा चतुर्वेदी की पुरानी रंजिश के चलते घर के पास ही हमलावरों ने गोली मार कर हत्या कर दी और अपराधी फरार हो गए। बताया जा रहा था कि दबंगों ने इनके परिवार पर कई बार हमला किया जिसकी सूचना पुलिस को भी थी, लेकिन पुलिस की ठोस कार्यवाही और पत्रकार की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया नतीजन पत्रकार की जान चली गयी।

03 नवंबर 2015 को राजधानी में एक बार फिर पुलिस की बर्बरता सामने आई इस बार बेलगाम सरोजनीनगर थानाध्यक्ष की पिटाई से अधमरे स्वतंत्र पत्रकार व लेखक राजीव चतुर्वेदी की मौत हो गई। थानाध्यक्ष के मातहतों ने बड़ी चतुराई के साथ उन्हें सीएचसी में भर्ती कराया था। चालक ने जब उनकी तलाश में मोबाइल पर फोन किया तो पता चला कि सीएचसी में उनकी मौत हो चुकी है। यह खबर फैलते ही सामुदायिक केंद्र लग गया। फिलहाल इस मालमें में पुलिस कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है वहीं सांसद कौशल किशोर ने मामले की सीबीआई जाँच की मांग की।

6 जुलाई 2015 को बाराबंकी में एक दैनिक अखबार के पत्रकार की मां से थाने के भीतर बलात्कार की कोशिश की गई और कामयाबी नहीं मिली तो उहें पेट्रोल डालकर जला दिया गया। वह थाने में अपने पति को छुड़ाने के लिए गयी थी। पति को छोड़ने के एवज में पहले उनसे पुलिस ने एक लाख रुपये मांगे न देने पर थानाध्यक्ष ने कमरे में ले जाकर उनसे बलात्कार की कोशिश की विरोध में एसो ने तेल डालकर आग लगा दी थी। इस मामले ने तूल पकड़ा लेकिन बाद में मामला ठंडा हो गया।


मिर्ज़ापुर जिले में एक पत्रकार को निशाना बनाया गया । जहां " मिड डे मील " में नमक की रोटी की खबर दिखाने पर पुलिस ने उल्टा पत्रकार पर ही मुकदमा लिख दिया था ।

कासगंज में  9 जून 2020 को एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के संपादक और पत्रकार राम नरेश चौहान के साथ कवरेज के दौरान हमला किया गया । राम नरेश आर्यावर्त ग्रामीण समाचार पत्र के संपादक है । इस मामले में भी पुलिस सुस्त दिखीं ।

यूपी के चंदौली जिले में  एक वरिष्ठ पत्रकार व संपादक अनिल केशरी के वाहन से स्थानीय आस - पास लोगों द्वारा  मूल कागजात एवं बैट्री , जैक की दिनदहाड़े थाना मुगलसराय अंतर्गत जलीलपुर पुलिस चौकी के समीप चोरी किया गया था । इस मामले में स्थानीय नेताओ और मनबढ़ लोगों के प्रभाव में पुलिस चौकी प्रभारी द्वारा चोरों की दिनदहाड़े घटना का जांच तक नहीं किया गया ।  इस मामले में दवाब में विवेचना भी जनपद चंदौली के पुलिस अधीक्षक को निराधार प्रेषित किया गया । 
वहीं जनपद चंदौली के थाना मुगलसराय अंतर्गत चौकी जलीलपुर के पुलिस कर्मियों के सहयोग से दलालों का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है ।  पीड़ितो को न्याय दिलाने के नाम पर कुछ दलालों , पुलिस के चाटुकार द्वारा धन उगाही दिनदहाड़े होती हैं ।


दिल्ली से सटे यूपी के गाजियाबाद में पत्रकार पर हमला बदमाशों द्वारा किया गया । जिसमे पत्रकार विक्रम जोशी की भांजी के साथ छेड़खानी कर रहे बदमाशों ने पत्रकार विक्रम जोशी को गोली मार दी थी । जिसकी पूरी वारदात सीसीटीवी कैमरे में क़ैद हुई थी , लेकिन पुलिस अभी भी उन मुजरिमों को पकड़ने में नाकामयाब हो रही हैं । 
अब सवाल यह उठता है कि , पत्रकार पर हुए हमले का क्या जांच करने से पीछे हट रही है ? 
लेकिन शासन के पुलिसिया जांच की बात से मामले को सिर्फ ठंडा किया जाता है ।

  यूपी के प्रयागराज के थाना नैनी अंतर्गत एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के संपादक और पत्रकार के ऊपर भू - माफिया और पुलिस के संरक्षण से गुंडों ने आत्मघाती हमला किया गया ।
हमला में असफल होने पर भू - माफिया अवधेश गुप्ता और अरुण कुमार गौतम और अन्य सहयोगी गुंडों ने  संपादक व उसके परिवार को गोली मार देने का डर पैदा कर जबरन जमीन का बैनामा करा लिया था । इस मामले में पूर्व थाना निरीक्षक पवन कुमार दीक्षित और तत्कालीन क्षेत्राधिकारी भू - माफिया और गुंडों को संरक्षण देते हैं ।
इसी वजह से संपादक के ऊपर हुए हमले और जमीन के जबरन  बैनामा कराने को लेकर प्राथमिकी भी दर्ज नहीं किया गया है। 

जानकारी के मुताबिक अरुण कुमार गौतम और अवधेश गुप्ता अन्य कई घटनो में लिप्त रहे हैं ।

अब सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ के सरकार में क्या एक पत्रकार और संपादक का प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकता है ? 

अब तक पत्रकारों और मीडियाकर्मियों पर हुए हमले के आंकड़े पर एक नज़र

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2019 तक देश में पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले यूपी में हुए हैं । जिसमें 67 पत्रकारों एवं मीडिया कर्मियों पर हमले की केस दर्ज हुई है ।
 वहीं 7 पत्रकारों की हत्या भी हो चुकी हैं । कहीं तो पुलिस वालो ने ही पत्रकार पर मुकदमा दर्ज कर लिया है।  रिपोर्ट के अनुसार  भारत में 2019 अंत तक पत्रकारों एवं मीडिया कर्मियों पर 190 से अधिक हमले, शोषण , हत्या के मामले सामने आए हैं ।  उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले अखिलेश यादव की सरकार में हुए. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों पर हमले के 2014 में 63, 2015 में 1 और 2016 में 3 मामले दर्ज हैं. जबकि, 2014 में सिर्फ 4 लोग, 2015 में एक भी नहीं और 2016 में 3 लोग गिरफ्तार किए गए.  2017 में आई योगी आदित्यनाथ की सरकार. उसी साल आई द इंडियन फ्रीडम रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में पत्रकारों पर 46 हमले हुए. इस रिपोर्ट के अनुसार 2017 में पत्रकारों पर जितने भी हमले हुए, उनमें सबसे ज्यादा 13 हमले पुलिसवालों ने किए हैं. इसके बाद, 10 हमले नेता और राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं और तीसरे नंबर पर 6 हमले अज्ञात अपराधियों ने किए.

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक एक तथ्य में सामने आया है कि भारत में 2020 की जुलाई  तक 100 से अधिक पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की हत्या की जा चुकी है ।