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KESHARI NEWS24
इसलामिक धर्म में है पवित्र महीना, आइए जानें क्यों मनाया जाता है मुहर्रम
इस साल मुहर्रम का महीना 20 अगस्त को शुरू हुआ है और यह 18 सितंबर को यह समाप्त होगा। इस महीने की 10वीं तारीख को मुहर्रम मनाई जाती है। रमजान के बाद यह महीना बहुत पवित्र माना जाता है ये इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जिससे इस दिन को असुरा भी कहा जाता है। माना जाता है कि इसलामिक धर्म में शिया समुदाय के प्रवर्तक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मुहर्रम का त्योहार मनाया जाता है।
मुहर्रम के दिन सड़कों पर जुलूस भी निकाला जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मुहर्रम अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक होता है। मुहर्रम शब्द हरम से निकला है जिसका अर्थ होता है किसी चीज पर रोक लगाना है।
इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को किया जाता है याद मुहर्रम पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में ये दिन मनाया जाता है।
इस दिन हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के मैदान में उनके 72 जानिसारों के साथ शहादत को याद किया जाता है। महुर्रम के दिन पर इस्लाम में शोक के तौर पर मनाया जाता है।
इसके पीछे छिपी कहानी है कि इराक में एक यजीद नाम का बादशाह रहा करता था जो की बहुत ही जुलिम हुआ करता था। हजरत इमाम हुसैन ने उसके खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया था। जिसके बाद मोहम्मद-ए-मस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बनाक नामक स्थान पर परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। जिस महीने उन्हें शहीद किया गया था वह मुहर्रम का महीना ही था।
मुहर्रम के दिन ऐसी मान्यता है कि, इस दिन काले रंग के कपड़े पहने जाते हैं और सड़कों पर इस दिन जुलूस निकाला जाता है। इतना ही नहीं इस दिन इसलामिक धर्म में शिया समुदाय के लोग हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद में रखते हुए बलिदान भी देते हैं।
10 दिनों तक लोग रखते है रोजा
मोहर्रम के दिन पैगंबर मोहम्मद साहब के नाती की शहादत और कर्बला के शहीदों के बलिदान को याद करते हुए लोग इस दिन रोजा भी रखते हैं। कर्बला के शहीदों ने इस्लाम धर्म को नया जीवन दिया था। कई लोग इस पवित्र महीने में पूरे 10 दिनों तक रोजा रखते हैं। तो कई 10 दिनों तक रोजाना रखकर 9 और 10 तारीख का रोजा रखते हैं। मोहर्रम के दिन इस्लाम धर्म के लोगों में आस्था का भरपूर समागम देखने को मिलता है।