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कोरोना महामारी से सतर्क नहीं तो तरक्की चला जाएगा कई दशक पीछे

कोरोना महामारी से सतर्क नहीं तो तरक्की चला जाएगा कई दशक पीछे

अनिल कुमार केशरी

हम सोचते हैं कि कोविड-19 मुख्य रूप से दुनिया में बुजुर्गों को ही निशाना बना रहा है, परंतु गरीब देशों में इसका असर उससे भी प्रलयंकारी है। इसके कारण बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं। बच्चों खासतौर से बालिकाओं की पढ़ाई छूट रही है और वे बाल विवाह का दंश झेलने पर मजबूर हैं। यह मातृ मृत्यु दर बढ़ने की वजह बन रहा है। इसने पोलियो और मलेरिया जैसी बीमारियों के खिलाफ मुहिम को कमजोर कर दिया है। इससे विटामिन ए वितरण की राह में भी अवरोध पैदा हो गए हैं, जिसके कारण और ज्यादा बच्चे दृष्टिबाधा के शिकार होंगे और मौत के आगोश में चले जाएंगे। यूएन पॉपुलेशन फंड की चेतावनी है कि कोविड-19 के कारण दुनिया भर में 1.3 करोड़ और अधिक बाल विवाह होंगे, जबकि लगभग 4.7 करोड़ महिलाओं को गर्भनिरोध के आधुनिक साधन नहीं मिल पाएंगे।


कुल मिलाकर कोरोना महामारी के बाद बीमारियों, निरक्षरता और भयावह गरीबी की आपदा दस्तक देने वाली है और बच्चे इसके सबसे बड़े शिकार होंगे। कोविड-19 का दुष्प्रभाव केवल उन पर नहीं होगा जो इसके संक्रमण में आए, बल्कि उन विकासशील देशों के लोगों पर अधिक होगा, जिनकी अर्थव्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य का ढांचा इस आपदा ने हिलाकर रख दिया है। यह इससे देखा जा सकता है कि तमाम क्लिनिक बंद हैं। एड्स सहित तमाम बीमारियों में काम आने वाली दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। मलेरिया और जननांगों को विकृत करने के खिलाफ चलाई जाने वाली मुहिम थम गई है।


बांग्लादेशी एनजीओ बीआरएसी के कार्यकारी निदेशक डॉ. मुहम्मद मूसा ने मुझे बताया कि कोविड-19 का प्रत्यक्ष प्रभाव तो संक्रमितों और उनके परिवारों पर ही असर दिखाएगा, लेकिन परोक्ष प्रभाव के चलते नौकरियां जाएंगी, भुखमरी और घरेलू हिंसा बढ़ेगी और तमाम बच्चों की पढ़ाई छूट जाएगी।कोरोना के कारण सबसे अधिक तपिश लड़कियों को झेलनी पड़ेगी। आशंका है कि कोरोना से उत्पन्न गतिरोध के कारण करीब आठ करोड़ बच्चे खसरा रोधी वैक्सीन से वंचित रह जाएंगे। यदि वे खसरा से बच भी गए तो कुपोषण से उनकी जान पर आफत आ जाएगी। सबसे अधिक तपिश लड़कियों को झेलनी पड़ेगी। उनमें से तमाम का बाल विवाह करा दिया जाएगा, ताकि नए घर में उनके खान-पान और रहन-सहन की व्यवस्था हो सके या फिर वे मामूली सी तनख्वाह और महज खाने-पीने के एवज में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने के लिए शहरों का रुख करेंगी। इससे ने केवल उनकी पढ़ाई-लिखाई थम जाएगी, बल्कि उनके शोषण की आशंका भी बढ़ेगी।


विकासशील देशों में बालिका शिक्षा को समर्थन देने की दिशा में लगी संस्था कैमफेड इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक एंजेलिना मुरिमीरवा का कहना है कि छात्रों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या भुखमरी की है। मलावी में कैमफेड के 60 प्रतिशत से अधिक छात्रों ने भोजन की कमी की बात कही है। कोरोना संकट से पहले ही जिंबाब्वे में चार प्रतिशत लड़कियों की शादी 14 साल से पहले हो रही थी। आने वाले दिनों में यह आंकड़ा और बढ़कर बदतर तस्वीर पेश कर सकता है। कुछ साल पहले मैंने एक प्रतिभाशाली केन्याई लड़की की दर्दनाक दास्तान सुनी थी। उसका सवाल था कि क्या आर्थिक तंगी के अभाव में उसे अपने सपनों को ताक पर रखकर पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी चाहिए या उस व्यक्ति से यौन संबंधों का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए, जो उसकी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए तैयार है। उसे डर था कि वह व्यक्ति एचआइवी से ग्रस्त हो सकता है? अब तमाम लड़कियों को ऐसी अनहोनी वाले विकल्पों से जूझना होगा।


लॉकडाउन और आर्थिक गिरावट से जुड़ी इस आपदा ने विदेशों से आने वाले धन यानी रेमिटेंस को भी प्रभावित किया है। बीएआरसी के अनुसार लाइबेरिया, नेपाल, फिलीपींस और सिएरा लियोन में काम करने वाले उसके दो तिहाई लोगों का कहना है कि आमदनी में बहुत भारी कमी आई है या वह बिल्कुल ही खत्म हो गई।


राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक घटनाएं समाचार के सह संपादक श्री अनिल कुमार केशरी का कहना है कि , ‘अगर आप दिहाड़ी मजदूर हैं और आपसे कह दिया जाए कि कल से काम पर नहीं आना तो अगले दिन आपको खाने-पीने के भी लाले पड़ जाएंगे। मेरा मानना है कि दुनिया में गरीबी, बाल मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में भारी इजाफा हुईं होंगी ’


विश्व के महान बुद्धिजीवी बिल गेट्स और तमाम अन्य हस्तियां अमेरिकी कांग्रेस से अपील कर रही हैं कि वह अगले प्रोत्साहन पैकेज में चार अरब डॉलर की राशि इसी मद में जोड़े, ताकि दुनिया भर में सभी तक कोरोना वायरस की वैक्सीन पहुंचाने में मदद मिल सके। उनके अनुसार, इसे चैरिटी न समझा जाए, क्योंकि यह वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में एक निवेश ही होगा। साथ ही हमें शिक्षा, पोलियो और पोषण जैसी मुहिम के लिए भी आकस्मिक निवेश की दरकार होगी। हालांकि अमीर देश अभी तक अपने तक ही उलझे रहे हैं। उन्होंने संकीर्ण सोच ही दर्शाई है। वे इस पर विचार ही नहीं कर रहे हैं कि दूर-दराज में फैला संक्रमण एक बार फिर उनकी देहरी पर दस्तक दे सकता है। कोविड-19 से लड़ने में 10 अरब डॉलर जुटाने की संयुक्त राष्ट्र की अपील पर भी अभी तक केवल एक चौथाई राशि ही इकट्ठा हो पाई है।


आधुनिक दौर में मानवता की एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि 1990 के दशक के बाद से भयावह गरीबी के दुष्चक्र को तोड़कर दो-तिहाई निर्धन आबादी को निर्धनता की जद से बाहर निकाला गया। अफसोस की बात है कि अब यह चक्र पलट रहा है। इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैलुएशन के आकलन के अनुसार कोविड-19 आपदा की दस्तक के साथ ही दुनिया भर में अत्यधिक गरीबों की तादाद में 3.7 करोड़ लोगों की बढ़ोतरी हुई है। अगले साल तक इसमें और 2.5 करोड़ का इजाफा हो सकता है।


साल के अंत में मैं एक स्तंभकार के रूप में लिखता हूं कि बच्चों के भविष्य और साक्षरता जैसे तमाम पैमानों पर गुजरा साल मानवता के इतिहास में सबसे बेहतरीन रहा, परंतु इस साल सर्दियों या आने वाले कई वर्षों तक संभवत: ऐसा आलेख लिखना संभव न हो। मैंने कुछ मित्रों एवं सदस्यों से पूछा कि क्या कोविड-19 प्रगति के उस दौर के लिए एक झटका है या फिर उस पर विराम तो उन्होंने यही जवाब दिया कि यह एक बहुत बड़ा झटका है, परंतु यदि हम सतर्क नहीं रहे तो यह एक झटके से भी भयानक साबित होगा। यह बीते कुछ दशकों के दौरान हासिल हुई तरक्की को कई दशक पीछे ले जाएगा।