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महज 40 दिनों में ही ₹ 70 रूपए प्रति किलो महंगा हुआ प्याज़ , आम आदमी की जेब पर पड़ा सीधा असर

महज 40 दिनों में ही ₹ 70 रूपए प्रति किलो महंगा हुआ प्याज़ , आम आदमी की जेब पर पड़ा सीधा असर

प्याज की महंगाई ने आम आदमी को ही नहीं, बल्कि सरकारों को भी रुला मारा है। प्याज की महंगाई 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को ग्रहण लगा दिया था, हालांकि तब प्याज की कीमत 6० से 7० रुपये तक ही पहुंची थी, आज यह 1०० रुपये किलो बिक रहा है। इस बार 4० दिनों में प्याज 7० रुपये किलो महंगा हो गया। 4० दिन पहले जो प्याज 3० रुपये किलो मिल रहा था, आज 90 से 1०० रुपये किलो मिल रहा है।

बिहार में हर दिन 6०० टन प्याज की खतप है। नासिक के प्याज से बिहार के उपभोक्ताओं की रसोई बनती है। 4० दिनों में प्याज की कीमतों में तो आग लग गयी, परन्तु लोगों की रसोई आंच ठंडी पड़ गयी। प्याज की इस महंगाई ने जमाखोरों की बल्ले-बल्ले जरूर कर दी है। थोक मंडियों में जो प्याज 3०-35 दिन पहले  18 से 25 रुपये किलो बिक रहा था, आज 70 से 75 रुपये बिक रहा। खुदरा सब्जी मंडियों तक पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत 90 से 100 रुपये किलो तक हो गयी है। प्याज की तेज रफ्तार से बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने में सरकार फेल रही। इसको लेकर सरकार के प्रति लोगों में जबरदस्त आक्रोश है।

बिहार उडि़सा, पंजाब, असम, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और हैदराबाद के प्याज पर निर्भर है। प्याज की व्यापारियों उत्तम सिंह और शिव कुमार सिंह ने बताया कि इस बार दक्षिण भारत में बाढ़ और बारिश के कारण प्याज की फसलें बर्बाद हो गयीं। ऐसे में प्याज के पुराने स्टॉक से लोगों की रसोई पक रही है। बिहार में धीरे-धीरे बंद होते चले गए कोल्ड स्टोरेजों के कारण प्याज का संग्रह भी सम्पन्न किसान और व्यापारी नहीं कर पाये। ले-दे-कर बिहार के उपभोक्ता नासिक-महाराष्ट्र के प्याज के भरोसे अपनी भूख मिटा रहे हैं।

35 दिन पहले कोरोना और लॉकडाउन के कारण महंगी हुई। कीमत में पांच से 10 रुपये ही इजाफा हुआ। तब लोग मान रहे थे कि कोरोना और लॉकडाउन के प्रभाव से मुक्त होते ही बिहार में प्याज फिर पुरानी स्थिति में आ जायेगा, किन्तु लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया। प्याज की कीमत पांच-दस से बढ़ते-बढ़ते 1०० रुपये किलो तक पहुंच गयी। प्याज की बढ़ी कीमतों पर लगाम जनवरी, 2०21 में ही लगेगी। तब तक बाजार में नया प्याज आ जायेगा। वैसे, नासिक का प्याज मार्केट में अक्तूबर, जनवरी और मार्च में आता है। बारिश और बाढ़ के कारण अक्तूबर की फसल मारी गयी, अब ले-दे-कर किसानों, व्यापारियों और आम उपभोक्ताओं की सारी उम्मीदें जनवरी-मार्च की फसल पर टिकी है।

फिलहाल निम्न और मध्यम वर्ग के उपभोकता छोटे और गिले प्याज से अपनी रसोई बना रहे हैं। हालांकि, छोटा और गिला प्याज भी 5० से 6० रुपये किलो बिक रहा। प्याज विक्रेता इस प्याज को भी चुनने नहीं दे रहे हैं। यानी, जो प्याज है, उसे वैसी ही स्थिति में उपभोक्ता ले रहे हैं।