
Covid-19
KESHARI NEWS24
कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए वैज्ञानिक अपनी जान पर खेलकर ढूंढ़ रहे इलाज़
कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए वैज्ञानिक अपनी जान पर खेलकर इसका इलाज ढूंढ़ रहे हैं। रूस के 69 वर्षीय एक वैज्ञानिक ने खुद को दोबारा संक्रमित करने का जोखिम लिया ताकि वह दोबारा संक्रमण के खतरे का पता लगा सकें। वहीं, हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ट्रायल टीके की खुराक सबसे पहले खुद को लगाकर उसका असर देखा। कोरोना का जल्द से जल्द इलाज लाने की कोशिश में वैज्ञानिक अपने प्रयोगों को सबसे पहले अपने ऊपर आजमाकर उसका असर जानना चाहते हैं।
रूस के 69 वर्षीय प्रोफेसर डॉ. अलेक्जेंडर चेपर्नोव ने खुद को संक्रमित करने का जोखिम उठाकर उदाहरण पेश किया है। वे इंस्टीट्यूट ऑफ क्लीनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं। वे फरवरी में संक्रमित हो गए थे, इस घटना का उन्होंने वैज्ञानिक परीक्षण में उपयोग किया ताकि हर्ड इम्युनिटी की संभावना का पता लगाया जा सके। उन्होंने अपने शरीर की जांच में पाया कि पहली बार संक्रमित होने के तीन महीने बाद ही उनके शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी घटने लगी थीं। छठे महीने में वे पूरी तरह नष्ट हो गईं। फिर उन्होंने खुद बिना मास्क लगाए पॉजिटिव मरीजों के संपर्क में आना शुरू कर दिया और उन्होंने पाया कि कुछ दिनों में ही वे दोबारा संक्रमित हो गए। इस बार उन्हें अस्पताल में इलाज कराने की नौबत आ गई। इस प्रयोग से उन्होंने पाया कि शरीर में एंटीबॉडीज बहुत तेजी से नष्ट होती हैं इसलिए किसी बड़े समूह में प्रतिरक्षा पैदा करना संभव नहीं है।
कोविड का टीका आने तक संक्रमण के असर को कम करने के लिए 20 अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक नेजल ट्रायल वैक्सीन विकसित कर इसका खुद पर परीक्षण किया। इस दल में हॉर्वर्ड मेडिसिन स्कूल के जीन विशेषज्ञ जॉर्ज चर्च समेत कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिक शामिल हुए। इस अनोखे प्रयोग की जानकारी एमआईटी टेक्नोलॉजी रिव्यू रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुई है। इस तरह तैयार किए जाने वाले टीकों को ‘डू इट योर सेल्फ वैक्सीन’श्रेणी में रखा जाता है।
चीन के तिआनजिन विश्वविद्यालय के प्रतिरक्षा विज्ञानी हुआंग जिनाई ने फरवरी में कोविड-19 का टीका बनाने के लिए जान जोखिम में डाल दी जो कि कोरोना से जुड़ा संभवत: पहला ऐसा मामला था। उन्होंने जानवरों पर परीक्षण किए जाने से पहले ही एक ट्रायल टीके की चार खुराक ले लीं। यह टीका उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में विकसित किया था। इस प्रयोग के बाद वैज्ञानिक सुरक्षित रहे और बाद में यह खुराक चीनी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के प्रमुख गॉ फू ने भी ली।
रूसी टीके की पहली खुराक वैज्ञानिक ने ली
मॉस्को स्थित गमलेया रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक्र अलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग कुछ दिन पहले एक ट्रायल वैक्सीन की खुराक लेने के कारण चर्चा में आए। इस वैक्सीन का ह्यूमन परीक्षण कर यह पता लगाया जाना बाकी था कि यह इंसानों पर कैसा असर करती है। इस परीक्षण से पहले ही निदेशक अलेक्जेंडर ने टीके की खुराक लेकर अपने वैज्ञानिकों का उत्साह बढ़ाया।
बायोएथिक्स इतिहास के प्रोफेसर सुसान लेडरर का कहना है कि चिकित्सा के इतिहास में आत्मप्रयोग एक मान्यता प्राप्त परंपरा है। किसी वैज्ञानिक प्रयोग के लिए अपने शरीर या अपने बच्चे को खतरे में डालना उस प्रयोग के प्रति आम लोगों में विश्वास पैदा करता है।
जब वैज्ञानिक खुद पर परीक्षण करते हैं तो अनुसंधान में लगने वाला समय घट जाता है। उस वैज्ञानिक परीक्षण में स्वयंसेवियों को शामिल कराने में मदद मिलती है। प्रतिभागियों का उस वैज्ञानिक अनुसंधान पर विश्वास बढ़ता है, जिससे परिणाम बेहतर आते हैं।खुद पर परीक्षण कर पाया था नोबेल पुरस्कार
1930 से पहले मच्छरों से होने वाले रोगों को लेकर जागरूकता नहीं थी। इस साल महामारी विशेषज्ञ माक्स टेलर ने दुनिया की पहली मच्छर जनित रोगों की वैक्सीन विकसित की। फिर इस टीका का सबसे पहले उन्होंने खुद पर प्रयोग किया। इस साहसिक कार्य व खोज के लिए उन्हें 1951 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया।