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गोरखपुर जेल से जर्मनी शिफ्ट होगा मैनफ्रेंड, वहीं काटेगा बाकी सजा के 4 साल
गोरखपुर जेल में एनडीपीएस एक्ट में दस साल की सजा काट रहा जर्मन का कैदी बैरेंड मैनफ्रेंड अब बाकी की सजा अपने देश में काटेगा। भारत-जर्मनी के बीच बंदियों के प्रत्यर्पण संधि का लाभ लेने वाला यह देश का संभवत: पहला कैदी होगा। गोरखपुर जेल प्रशासन ने उसे जर्मनी के जेल में शिफ्ट कराने के लिए दिल्ली स्थित जर्मन दूतावास भेजने की व्यवस्था शुरू कर दी है।
जर्मनी के सजसेन निवासी बैरेंड मैन फ्रेंड को नशीले पदार्थ के साथ भारत-नेपाल सीमा पर अक्टूबर 2014 में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। एनडीपीएस ऐक्ट के तहत उसके खिलाफ केस दर्ज कर उसे कोर्ट में पेश किया गया था, जहां से एक नम्बर 2014 को उसे महराजगंज जेल भेजा गया था। प्रशासनिक आधार पर एक अक्टूबर 2015 को बैरेंड मैन फ्रेंड को गोरखपुर मंडलीय कारागार में ट्रांसफर कर दिया गया। यहीं पर रहते हुए 20 दिसम्बर 2018 को कोर्ट ने उसे दस साल कठोर कारावास और एक लाख रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई थी। अर्थदंड जमा न करने पर उसे छह महीने अतिरिक्त सजा भुगतनी पड़ेगी। बैरेंड मैनफ्रेंड अब तक छह साल की सजा काट चुका है। बची चार साल की सजा वह अब जर्मनी के जेल में काटेगा।
पति की गिरफ्तारी की जानकारी होने पर मैनफ्रेंड की पत्नी जूलिया कैफर भी गोरखपुर चली आई। शाहपुर इलाके में किराए पर कमरा लेकर मुकदमे की पैरवी करने लगी। उसके प्रयास से 31 मई 2017 को मैनफ्रेंड को कोर्ट ने जमानत देते हुए पांच-पांच लाख रुपये की दो जमानतदार पेश करने का आदेश दिया। भागदौड़ के बाद मैनफ्रेंड की पत्नी ने दो जमानतियों के नाम दिए जिसमें एक फर्जी निकल गया। जिसके बाद उसकी रिहाई रुक गई। उसने जर्मन दूतावास से मदद मांगी।
27 सितंबर 2017 को जर्मनी दूतावास के अधिकारी मैंनफ्रेंड वैरेंड से मिलने जेल पहुंचे थे। उनके साथ मैनफ्रेंड की लीगल एडवाइजर यामनी महाजन भी थीं। जेल अधिकारियों के साथ ही मैंनफ्रेंड से मिलने के बाद जर्मनी दूतावास के अधिकारियों ने कानूनी मदद दिलाने का भरोसा दिया था। इस बीच पत्नी जूलिया केस की पैरवी के सिलसिले में जर्मनी दूतावास व गृह मंत्रालय का चक्कर काटती रही।
वर्ष 2018 में सुषमा स्वराज केंद्रीय विदेश मंत्री थीं, उन्हीं के समय जर्मनी और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि हुई थी। इसमें दोनों देश के अपराधियों के साथ ही एक-दूसरे देश में अपराध कर सजा काट रहे कैदियों और बंदियों को भी इस संधि के तहत लाभ मिलने की सहमति थी। इसी का फायदा अब मैनफेंड को मिल रहा है।
दूतावास के अधिकारियों की कांउसलिंग में बैरेंड मैन फ्रेंड ने अपनी बाकी सजा अपने देश में काटने की सहमति दूतावास के अधिकारियों दी थी। इसके बाद दूतावास ने उसके प्रत्यर्पण के लिए दस्तावेज तैयार कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। वहीं हाईकोर्ट में दाखिल अपील वापस लेने की भी गुजारिश की गई थी।
जर्मनी दूतावास के माध्यम से जब जूलिया कैफर को मैंनफ्रेंड के पकड़े जाने की सूचना मिली तो वह टूरिस्ट वीजा पर भारत पहुंच गई। गोरखपुर जेल में पति से मुलाकात होने के बाद वह उसे जमानत दिलाने की कोशिशाेंं में जुट गई। पांच साल तक केस की पैरवी के सिलसिले में वह जेल, कचहरी से लेकर जर्मन दूतावास तक के चक्कर काटती रही। लॉकडाउन से पहले तक वह शाहपुर क्षेत्र में जेल के पास किराए का कमरा लेकर रही। बीजा अवधि खत्म होने पर बीच-बीच में कई बार स्वदेश लौटती और कुछ दिन बाद फिर गोरखपुर आ जाती थी। अनजान देश और भाषा की दिक्कत भी जूलिया को डिगा नहीं पाई।
जर्मन बंदी मैनफ्रेंड को एनडीपीएस एक्ट में 10 साल की सजा हुई है। छह साल की सजा वह काट चुका है। भारत और जर्मनी के बीच लागू प्रत्यर्पण संधि के तहत बैरेंड मैनफ्रेंड को उसके देश प्रत्यर्पण की कार्रवाई चल रही है। दूतावास की पहल पर उसे शेष सजा जर्मनी की जेल में काटने की अनुमति मिली है। बंदी को जर्मनी भेजने की तैयारी चल रही है। जाने की तारीख अभी तय नहीं हुई है।