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वाराणसी के रामनगर दुर्गा मंदिर में केवल पूजा अर्चना से पूूरे हो जाते है भक्तों के सभी मनोरथ और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता हैै रामनगर का ये दुर्गा मंदिर।

वाराणसी के रामनगर दुर्गा मंदिर में केवल पूजा अर्चना से पूूरे हो जाते है भक्तों के सभी मनोरथ और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता हैै रामनगर का ये दुर्गा मंदिर।

KESHARI NEWS24



वाराणसी। रामनगर में एक अनूठा मंदिर है। यह मंदिर दुर्गाजी का है। यह स्थापत्य कला के लिए जाना जाता हैैै। मंदिर पर बने पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियां स्थापत्य कला की नमूना हैैं। इस मंदिर को सुमेरू मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर में पूजा-अर्चना से सभी मनोरथ पूूूूरे हो जाते हैैं। दुर्गा मंदिर के भित्तियों पर शैव, वैष्णव, शक्त समेत सभी देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। मंदिर परिसर में एक भव्य तालाब है। यह तालाब पत्थरोंं से निर्मित है,जिसके चारों तरफ सीढ़ियां हैंं। ऊपरी हिस्से पर घर है जो तालाब को और भी आकर्षक बनाती हैं। दुर्गा मंदिर को काशी नरेश बलवंत सिंह ने बनवाना शुरू किया था, लेकिन उनके जीवन काल में यह मंदिर पूरा नहीं बन पाया। बाद में महाराजा महाराजा चेत सिंह ने मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर हिन्दू देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर चकौौर जगत (मंच) पर स्थापित हैैै। मंदिर के निचले हिस्से में बहुत सारे कमरे हैंं, जिनका उपयोग मंदिर के पुजारियों और कर्मचारियों के रहने के मकसद से बनवाया गया है। 

दुर्गा मंदिर परिसर में बहुत सारे पेड़-पौधे लगाए गए हैैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के तोरण दीवारों पर नित्य करते मोर चित्रित है ,मंदिर परिसर के अंदर चार प्रवेश द्वार है ,चारों दीवारों पर गणेश जी की मूर्तियां चित्रित है। मंदिर के पूर्वी दीवारों पर जगन्नाथ, सुभद्रा, बलभद्र की मूर्तियां हैंं। रामनगर की रथयात्रा यहींं से आरंभ होती है। मंदिर के प्रत्येक द्वारा पर दो-दो द्वारपालोंं के हाथ में दण्ड, कमंड, कमल, शंख आदि चित्रित हैंं। पश्चिमी द्वार के सामने सिंह, उतरी द्वार के सामने गरुड़ और दक्षिणी द्वार के सामने नंदी कीी मूर्तियांं बनाई गई हैैं। यहां सभी देवी-देवताओं के होने का आभास मिलता है। 

पत्थरोंं पर वर्क आर्ट्स गुजरात और राजस्थान की शिल्पकला शैली को दर्शाती है। प्रवेश द्वार के ऊपरी हिस्से पर देवियों को अपने वाहनों पर बैठे दिखाया गया है। तीनों देवियांं-एक साथ चित्रित हैंं। देवी सरस्वती वीणा धारण किए हुुु हैं। दक्षिणी भित्तियों पर चतुर्भुजी रूप में विराजमान नर-नारायण, मल युद्ध का एक सुंदर दृश्य है। मंदिर के सिरदल पर अप्सराएं हाथ में बीणा, सितार, सारंगी, शहनाई, संतूर, वायलिन, ढोलक, बांसुरी आदि लिए विराजमान हैंं। ये अप्सराएं काशी की संगीत को चित्रित करती हैं। ये कृतियां मणिकर्णिका के शिव मंदिर पर बनी आकृतियां को दर्शाती हैंं।

मंदिर के उत्तर-पूर्वी कोने पर स्थित माता छिन्मस्तिका देवी का मंदिर है। यह मंदिर को और भी भव्य बनाती है।दुर्गा मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम होने वाली आरती और मां के जयकारों से चारों दिशाओं में शुद्ध वातावरण का आभास होता हैैै यहां रोजाना श्रद्धालुओं का भारी भीड़ लगती है।