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पड़ोसी मुल्क म्यांमार में तख्तापलट के बाद करीब 300 शरणार्थी पहुंचे भारत, सैकड़ों शरणार्थी असम राइफल में हुए शामिल

पड़ोसी मुल्क म्यांमार में तख्तापलट के बाद करीब 300 शरणार्थी पहुंचे भारत, सैकड़ों शरणार्थी असम राइफल में हुए शामिल

मिज़ोरम: पड़ोसी देश म्यांमार में हुए तख्तापलट के बाद करीब 300 शरणार्थी भारत पहुंचे हैं. खास बात ये है कि इन शरणार्थियों में 150 म्यांमार पुलिस के जवान हैं, जो मिलिट्री-जुंटा (शासन) का विरोध कर रहे हैं और नागरिकों के आंदोलन को समर्थन कर रहे हैं. तख्तापलट के बाद से ही सैन्य-शासन ने म्यांमार को पूरी दुनिया के लिए बंद कर दिया है.

म्यांमार सीमा की रखवाली करने वाली बॉर्डर ग्राडिंग फोर्स, असम राईफल्स ने शरणार्थियों के मिजोरम में दाखिल होने के बाद भारत-म्यांमार बॉर्डर को पूरी तरह सील कर दिया है. 

दरअसल, सैन्य तख्तापलट के बाद से ही पड़ोसी देश म्यांमार ने अपने दरवाजे पूरी दुनिया के लिए बंद कर दिए हैं. कोरोना महामारी की आड़ में म्यांमार की मिलिट्री-जुंटा किसी भी बाहरी मीडिया को अपने देश में एंट्री नहीं दी रही है. जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक, म्यांमार की जनता मिलिट्री शासन का विरोध कर रही है. लोगों ने सेना के खिलाफ सिविल डिस-ओबिडियेंस मूवमेंट शुरू कर दिया है‌. सेना किसी भी कीमत पर इस आंदोलन को दबानी चाहती है‌.


आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, करीब 300 म्यांमार नागरिक अब तक मिजोरम आ चुके थे. इनमें से करीब 150 म्यांमार पुलिसकर्मी थे. इन सभी शरणार्थियों के लिए बॉर्डर पर कैंप लगाए गए हैं.


भारत सरकार के निर्देश के बाद अब असम राईफल्स ने म्यांमार बॉर्डर की सुरक्षी बढ़ा दी है. अब जबरदस्त पैट्रोलिंग चल रही है, ताकि म्यांमार नागरिकों की आड़ में उग्रवादी संगठन भारतीय सीमा में दाखिल ना हो जाए. क्योंकि, भारत म्यांमार सीमा पहाड़ और घने जंगलों से होकर गुजरती है, इसलिए असम राईफल्स के जवान हेलीकॉप्टर से इन इलाकों में उतरने के लिए स्लेथेरिंग यानी ऊंचाई से रोप (रस्सी) से नीचे उतरने का अभ्यास भी करते हैं.


असम राईफल्स देश का सबसे पुराना (और एकमात्र) पैरा-मिलिट्री फोर्स है, जिसकी स्थापना वर्ष 1835 में हुई थी. उस वक्त इसे 'कचर-लेवी' के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद से असम राईफल्स की जिम्मेदारी म्यांमार बॉर्डर की रखवाली और उत्तर-पूर्व के राज्यों की उग्रवाद के खिलाफ आंतरिक सुरक्षा करना है.


असम राईफल्स मिजोरम के स्थानीय युवक और युवतियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए ट्रेनिंग भी देती है, ताकि 'सन ऑफ द सोइल' पॉलिसी के तहत असम राइफल्स, सेना और केंद्रीय पुलिसबल में शामिल हो सकें.