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वाराणसी के बीएचयू फॉरेंसिक विभाग में छिपा है हजार मौतों का राज।
वाराणसी। बीएचयू के फॉरेंसिक डिपार्टमेंट में एक हजार से अधिक मौत का राज दबा है। पुलिस हर साल मात्र 10 फीसदी विसरा ही रामनगर के फॉरेंसिक लैब में जांच के लिए भेजती है। बाकी 90 फीसदी फॉरेंसिक विभाग में डंप रहता है। ऐसे में विभाग के लिए ये विसरा सिरदर्द बना हुआ है। जब भी कोई संदिग्ध मौत होती है तो डॉक्टर पोस्टमार्टम करते हैं। पोस्टमार्टम के बाद भी अगर मौत का कारण स्पष्ट नहीं होता है तो विसरा सुरक्षित रख लिया जाता है ताकि उसकी जांच कर कारण पता लगाया जा सके। बीएचयू के फॉरेंसिक डिपार्टमेंट में 2017 के बाद से अब तक करीब एक हजार विसरा रखा है। यहां हर साल 300-350 विसरा सुरक्षित रखने के लिए आता है। इसमें मात्र 10 फीसदी ही जांच के लिए रामनगर लैब भेजा जाता है।
दरअसल बनारस सहित आस-पास के जिले का विसरा बीएचयू के फॉरेंसिक विभाग में ही रखा जाता है। पुलिस को जब जरूरत होती है तो कोर्ट जाती। कोर्ट के आदेश के बाद विसरा फॉरेंसिक विभाग से रामनगर के एफएसएल लैब जांच के लिए भेजा जाता है। अभी स्थिति यह कि बीएचयू के फॉरेंसिक विभाग में दो कमरों में सिर्फ विसरा ही रखा है। विभाग के लोग इसे बिना कोर्ट की अनुमति के ऐसे फेंक भी नहीं सकते हैं। फॉरेंसिक विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेंद्र पांडेय ने बताया कि यहां से हर साल मात्र 10 फीसदी विसरा ही जांच के लिए जा पाता है। बाकी पड़ा रहता है।
बीएचयू के फॉरेंसिक विभाग में 2017 में चार कमरे में विसरा भर गया था। यही नहीं पोस्टमार्टम हाउस का आधा कमरा भी इसी से भरा था। वहां 1990 तक का विसरा रखा था। स्थिति यह हो गई थी कि उसमें से दुर्गंध आने लगी थी। वहां छात्रों का बैठना मुश्किल हो गया था। इसके बाद विभागाध्यक्ष ने कोर्ट से अनुमति ली और सभी विसरा जमीन में गाड़ दिया गया। मृतक के लीवर का टुकड़ा, किडनी-स्पलीन (तिल्ली), स्टॉमक (खाने की थैली), छोटी आंत का टुकड़ा निकालकर डॉक्टर अलग रख लेते हैं। इसे विसरा कहा जाता है। इसे कांच की बोतल में रासायनिक घोल में रखा जाता है, ताकि वह खराब न हो।