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UP : विकास के सफर में यदि तेजी से आगे बढ़ना है तो कनेक्टिविटी पर फोकस करना होगा
लखनऊ । प्रदेश की सड़कें अक्सर उत्तर प्रदेश में विकास रथ के पहिए को पंक्चर करती रही हैं। पिछले दशक भर का परिदृश्य देखिए तो दिल्ली से आगरा के बीच केवल एक यमुना एक्सप्रेस-वे ही नजर आता था। फिर लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे परिदृश्य में उभरा जिसका श्रेय समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार को बेशक जाता है। इससे यह उम्मीद जगी कि आजादी के बाद से ही विकास के सफर में पिछड़े प्रदेश में यदि तेजी से आगे बढ़ना है तो कनेक्टिविटी (सुगम आवाजाही) पर फोकस करना होगा।
पहले के दो एक्सप्रेस-वे की दिक्कत यह थी कि इनके निर्माण के समय पूरे प्रदेश को जोड़ने की समग्र सोच नहीं थी। कहीं न कहीं जिन पार्टियों की सरकार रही उनमें अपने गढ़ क्षेत्र को सत्ता केंद्र दिल्ली और लखनऊ से जोड़ने के नजरिये से थी। प्रत्यक्ष रूप में इसे पर्यटन की संभावना से जोड़ा गया, किंतु उसका कोई बड़ा फायदा प्रदेश को नहीं मिला। पहली बार उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इन एक्सप्रेस-वे को प्रदेश को एक छोर से दूसरे छोर तक जोड़ने का माध्यम समझा। इसी का परिणाम है कि पूर्वाचल एक्सप्रेस-वे, बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे और गंगा एक्सप्रेस-वे की कल्पना की गई।
हर साल बजटीय प्रविधान में इनका सर्वोच्च ध्यान रखा गया। इस बार भी बजट में इनके लिए लगभग 26 हजार करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। इनमें से पूर्वाचल एक्सप्रेस-वे तो दो माह बाद ही आवागमन लायक हो जाएगा। प्रदेश के अपर मुख्य सचिव गृह व यूपीडा के सीईओ अवनीश कुमार अवस्थी कहते हैं कि यह मुख्यमंत्री की महत्वपूर्ण योजनाओं में शामिल परियोजना है। हर हाल में अप्रैल तक इसे जनता के लिए लोकार्पित कर दिया जाएगा। मिट्टी का काम 95 फीसद तक पूरा हो गया है। पूरी सड़क का 75 फीसद काम हो चुका है। गाजीपुर में फ्लाईओवर की वजह से कुछ काम बाकी है। इस एक्सप्रेस-वे को बिहार से जोड़ने के लिए एनएचएआइ ने स्वीकृति दे दी है। गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे और बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के काम में भी बहुत ज्यादा कमी नहीं बची है। बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे भी इसी साल चालू होने का अनुमान है।
देश के सबसे बड़े गंगा एक्सप्रेस-वे का काम अभी शुरुआती चरण में है। यह प्रदेश के पश्चिमी छोर मेरठ से शुरू होकर प्रदेश के पूर्वी गेट प्रयागराज तक जाएगा। इसके लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इन एक्सप्रेस-वे का जाल बिछ जाने के बाद प्रदेश का हर कोना एक-दूसरे के संपर्क में होगा। इस संपर्क का सीधा अर्थ है- व्यापार, पर्यटन और रोजगार।
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का प्रयास : कोविड-19 ने हमें यह अच्छी तरह सिखा दिया है कि स्वास्थ्य हमारी शीर्ष प्राथमिकता पर होना चाहिए। चाहे व्यक्तिगत स्वास्थ्य की बात हो या सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की। सभी सरकारें अपनी सोच और बजट के अनुसार सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का दावा करती रही हैं। वर्तमान योगी सरकार ने भी स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की तरफ ध्यान दिया गया है। जहां पहले से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर थीं, उन्हें उच्चीकृत कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का दर्जा दिया गया।
बड़ी संख्या में चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती की गई है। लेकिन कोविड-19 ने सबक दिया है कि हम विकास के जिस छोर की तरफ बढ़ रहे हैं, वहां सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को शीर्ष प्राथमिकता में रखकर पहले से कई गुना अधिक इच्छाशक्ति व संसाधन के साथ बुनियादी ढांचा खड़ा करना होगा। अभी भी हमारे पास चिकित्सकों का आबादी की तुलना में अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से बहुत दूर है। योगी सरकार ने संभवत: इसी चिंता के आधार पर प्रदेश में बड़ी संख्या में निजी सहभागिता से मेडिकल कॉलेज खोलने की योजना बनाई है।