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भारत में रेल की शुरुआत के 168 साल, जानिए सेकेंड क्लास से कैसे मालामाल हुए अंग्रेज
इतिहास । जो चारबाग़ रेलवे स्टेशन स्वतंत्रता आंदोलन का साक्षी है, जहां पहली बार महात्मा गांधी की मुलाकात जवाहर लाल नेहरू से हुई थी। उसी चारबाग़ स्टेशन पर ब्रिटिश कालीन दौर में ट्रेन आने से पहले भारतीयों को एक कमरे में बन्द कर दिया जाता था। ट्रेन आने पर जब अंग्रेज यात्री फर्स्ट क्लास बोगी में बैठ जाते थे तब भारतीयों को सेकेंड क्लास कोच में चढ़ाकर बाहर से ताला लगा दिया जाता था। भारत में पहली रेल भले ही 16 अप्रैल 1853 को मुम्बई से ठाणे के बीच चली लेकिन लखनऊ तक ट्रेन का नेटवर्क बिछने में अधिक समय नहीं लगा। करीब 14 साल बाद लखनऊ में ट्रेन की शुरुआत हो चुकी थी। मीटरगेज ट्रेनों से शुरुआत वाला लखनऊ कानपुर रूट अब हाई स्पीड ट्रैक में बदल रहा है। शताब्दी के बाद अब तेजस जैसी ट्रेन लखनऊ से जुड़ चुकी हैं। रेलवे 16 अप्रैल के ऐतिहासिक दिन को रेल सप्ताह के रूप में मनाता है। हालांकि कोरोना के कारण रेलवे ने इस साल के कार्यक्रम को स्थगित कर दिया है।
लखनऊ में आज भी ब्रिटिश रेलवे के उद्गम के साक्ष्य कैरिज व वैगन वर्कशॉप और लोको वर्कशॉप में भी देखने को मिल सकता है। चारबाग़ स्टेशन पर लगा घंटा आज भी उस दौर की याद दिलाता है जब इसे बजाने से लखनऊ मेल रवाना होती थी। सन 1857 में अवध रुहेलखंड रेलवे (ओआरआर) का गठन लखनऊ और आसपास के जिलों में लाइन बिछाने के लिए किया गया। ओआरआर ने 28 अप्रैल 1867 को लखनऊ-कानपुर 47 मील लंबी रेल लाइन शुरू की थी। इससे पहले यह दूरी बैलगाड़ियों से पूरी की जाती थी । वही सन 1872 में ओआरआर का विस्तार बहराम घाट और फैजाबाद तक हुआ। एक जनवरी 1872 को लखनऊ-फैजाबाद रेल लाइन शुरू हुई।।जबकि लखनऊ छावनी के उत्तर दिशा से बिबियापुर, जुग्गौर होकर फैजाबाद के रास्ते मुगलसराय तक रेल लाइन पड़ी। इतना ही नही सन’ 1873 से 1875 तक ओआरआर का नेटवर्क लखनऊ से शाहजहांपुर और जौनपुर तक बढ़ा।
1873 से 1875 : भारतीय यात्रियों के लिए प्रथम श्रेणी बोगियों की शुरुआत ’
1879 : ओरआरआर का प्रायोगिक किराया वृद्धि का सरकार ने अनुमोदन किया
1879 : ओआरआर का सरकार ने राष्ट्रीयकरण किया, ओआरआर एक राजकीय उद्यम बना
1880 : निम्न श्रेणी का किराया दो आना से ढाई आना बढ़ाया गया
1882 : निम्न श्रेणी के किराए के राजस्व में गिरावट
1887 : ओआरआर का नेटवर्क 690 मील तक पहुंचा। जो उस समय कुल रेल नेटवर्क का 4.93 प्रतिशत था
24 नवंबर 1896 : चौकाघाट-बुढ़वल-बाराबंकी-मल्हौर होकर डालीगंज तक आयी रेल
25 अप्रैल 1897 : ऐशबाग से कानपुर तक एक और रेल लाइन बिछी
ऐशबाग होकर पीलीभीत तक मई 2016 में जिस मीटरगेज लाइन को बन्द कर उसकी जगह बड़ी लाइन बिछाई जा रही है।।वह रुट भी ब्रिटिशकालीन रेलवे ने बिछाया था। पूर्वोत्तर रेलवे की लाइन दो कंपनी बंगाल व नार्थ वेस्टर्न रेलवे और रुहेलखंड व कुमाऊँ रेलवे ने बिछाया था।
लखनऊ से सीतापुर : 15.11.1886
सीतापुर से लखीमपुर : 15.4.1887
लखीमपुर से गोला गोकर्ण नाथ :15.12.1887
गोला गोकर्ण नाथ से पीलीभीत 1.4.1891
भारतीयों से अंग्रेज हुए मालामाल : अवध एवं रूहेलखंड रेलवे की सन 1875-76 की रिपोर्ट के मुताबिक 543 मील तक चलने वाली ट्रेनों से उसे 12 लाख 65 हजार 508 रुपये की आय निम्न श्रेणी के भारतीय यात्रियों के किराए से हुई थी। जबकि उच्च श्रेणी के यात्रियों से केवल 70 हजार 166 रुपये ही मिले थे।
हुआ था कारावास : मई 1878 में भारतीय ड्राइवर की लापरवाही से मालगाड़ी की टक्कर कोयला गाड़ी से हो गई थी। इसमें 40 हजार रुपये का नुकसान हुआ था। इसमें ड्राइवर को पांच और गार्ड को चार साल की सजा हुई थी।
विकास का साक्षी : अशोक मार्ग डीआरएम आफिस में भाप का इंजन रेलवे का विकास साक्षी है।।इस वाई पी 2616 भाप के मीटरगेज इंजन का उत्पादन 1957 तक किया गया था।