संपादकीय
वैक्सीन सप्लायर से परचेजर बन गए, कोविड के मामले में प्रधानमंत्री मोदी को आईना दिखाना चाहिए
लेखक के कलम से : हमारा छोटा-सा मित्र देश इजरायल कोरोना से मुक्त हो गया है, वहां इसके मामलों में 97 प्रतिशत की कमी आ गई है। चीन ने भी इस तिमाही में 18.3% की आर्थिक वृद्धि दर के साथ कोविड से मुक्त हो जाने की घोषणा की है। और ठीक उसी दिन, भारत पर निगाह डालिए कि यहां क्या हो रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन की कमी से पैदा हुए संकट पर उच्च स्तरीय बैठक कर रहे थे।
हम फिर वही राग अलाप सकते हैं कि यह पीएमओ से चलने वाली बेहद केंद्रीकृत सरकार है। लेकिन यह बदहाल माइक्रो मैनेजमेंट से आगे की बात है। राष्ट्रीय नेतृत्व का यह हाल है कि चार दशकों में भारत के सबसे ताकतवर माने जा रहे प्रधानमंत्री को ऑक्सीजन की कमी के मसले को खुद अपने हाथ में लेना पड़ा है। मानो चीन के साथ कुछ समय से लड़ाई चल रही हो और भारतीय सेना के पास मिसाइलों की कमी पड़ गई हो। इस मीटिंग में इस्पात उद्योग के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। इस्पात मंत्रालय व उद्योग को इसलिए शामिल किया गया, क्योंकि गैस के लिए ज्यादा संख्या में सिलिंडर की जरूरत पड़ेगी। बैठक में कुछ फैसले किए गए जैसे एक राज्य से दूसरे राज्य में ऑक्सीजन ले जाने की छूट दी जाएगी।
जो राष्ट्र वैक्सीन की एक-ध्रुवीय दुनिया का एकमात्र सुपर पावर होने पर गर्व कर रहा था, वह आज ऑक्सीजन की रणभूमि बन गया है। मोदी के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा संकट है। कोविड-19 की वापसी इसकी पहली लहर से दोगुनी गंभीर है और इसके कारण संकट जिस तरह गहरा होता जा रहा है वह मोदी सरकार की कमजोरियां उजागर कर सकता है। यह बात मोदी से कोई कह सके, यह असंभव ही है। ताकतवर हस्तियां ऐसे लोगों को अपने करीब नहीं रखतीं, जो उन्हें बुरी खबरें दे।
आलोचक ऐसे सच सामने रख देते हैं, जो चापलूस लोग नहीं रखते।
भक्त कबीर का वह दोहा याद कीजिए-
“ निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटि छवाय
बिन पानी, साबुन बिना निर्मल करे सुभाय ”
किसी को तो यह काम करना ही चाहिए, इसलिए हम उन्हें आईना दिखा रहे हैं। जिस देेश की ओर पूरी दुनिया उम्मीद भरी नजरों से देख रही है कि वह वैक्सीन सप्लाई करेगा, वह खुद ही असली संकट में घिरने पर उन्हें आयात करने जा रहा है। जो भारत की बौद्धिक क्षमता के लिए गौरव का क्षण हो सकता था वह दुखद शर्म में बदल गया है क्योंकि जिस ब्रिटेन ने उसे लाइसेंस और टेक्नोलॉजी दी थी, उसे ही भारतीय मैनुफैक्चरर करार के मुताबिक वैक्सीन सप्लाई रोक रहे हैं। ब्रिटेन ने मैनुफैक्चरर को करार तोड़ने के विरोध में नोटिस भेज दी है और लाइसेंस रद्द करने की भी धमकी दी है।
अगर हम थोड़ी विनम्रता से सच स्वीकार कर लें तो विचार कर सकते हैं कि हम इस हाल में कैसे पहुंच गए। और इससे भी महत्वपूर्ण यह कि उबरने का रास्ता क्या है। सितंबर के मध्य से जब भारत में कोविड के मामले कम होने लगे थे तब दूसरे कई देश दूसरी लहर से जूझ रहे थे और हमने अपनी जीत का ऐलान कर दिया था। ये ‘हमने’ कौन हैं, यह अच्छा सवाल है। आज, सरकार से कोई भी सवाल पूछना ‘जनता को बदनाम’ करने के अग्निकुंड में उतरने जैसा है।
यह सच है कि लोगों ने डर, सावधानी, मास्क आदि को भूलकर शादियां-पार्टियां शुरू कर दी थीं, लेकिन नेताओं से उन्हें क्या संकेत मिल रहे थे? यही कि अब उत्सव, कुंभ मेला, बड़े पैमाने पर चुनाव अभियान चल सकते हैं। वायरस से युद्ध खत्म हो चुका है और बेहतर पक्ष की यानी हमारी जीत हो चुकी है। लोग तो नेताओं के पीछे चलते हैं। नेता जितना ज्यादा लोकप्रिय होगा, उसके समर्थक उसके उतने ज्यादा भक्त होंगे।
अब जबकि कमियां महसूस कर रहे हैं, अस्पतालों से लेकर दवाखानों और श्मशानों के आगे लंबी कतारें हैं। टीवी एंकर हमें सीख देने लगे हैं कि घर में जरूरत के लिए ऑक्सीजन के सिलिंडर कहां से खरीदे जा सकते हैं, तब आपको समझ में आ सकता है कि आपको किसकी गलती का नुकसान उठाना पड़ रहा है। लेकिन आपको भी पता है कि हम कितने एहसान फरामोश हैं। कितना कुछ तो है हम ‘भारत के लोग’ के पास! लेकिन हम कभी अपने गिरेबान में नहीं झांकते, बस नेताओं को दोष देते रहते हैं।
शासन स्तर पर चूकें हुईं। जैसा कि महान परियोजनाओं के मामले में होता है, भारत सरकार पूरी जिम्मेदारी उठा लेती है, उसे लगता है कि वह अकेले सब कुछ कर लेगी, अपने हुक्मनामे के बूते। इसलिए, सरकार तय करेगी कि किस वैक्सीन को मंजूरी दी जा सकती है, उसे कौन बनाएगा, कितना बनाएगा, कितने में बेचेगा। और बेशक सरकार ही एकमात्र खरीदार होगी।
यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने बाजार को सहयोगी बनाने की जगह उसे काटकर अलग कर देने की गलती की। आश्चर्य की बात तो यह है कि मोदी सरकार ने ऐसा किया। उसका वादा तो इससे उलटा काम करने का था। अब आगे रास्ता आसान है, क्योंकि रास्ता एक ही है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीके लगाए जाएं। हमारी आबादी जितनी बड़ी है, और संक्रमण जिस तेजी से फैल रहा है उसके मद्देनजर रोज 30 लाख लोगों के टीकाकरण की रफ्तार धीमी है।