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' लॉकडाउन उनके लिए जिनकी पेंशन आती है, जिन्हें आजीविका चाहिए उनके लिए नहीं '
नई दिल्ली । कोरोना संक्रमण के दूसरे लहर के साथ ही कई राज्यों में नाइट कर्फ्यू और लॉकडाउन लगाया गया है, हालांकि ये संक्रमण की रफ्तार पर कितना कारगर है इसपर सवालिया निशान है. और प्रतिबंध लगने का मतलब है कि आर्थिक गतिविधियों पर असर और पिछली बार के लॉकडाउन से हुए आजीविका को नुकसान में और बढ़ोतरी. कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करना बेहद जरूरी है – मास्क को अनिवार्य करना, सामाजिक दूरी बनाए रखना, भीड़-भाड़ इलाके से दूर रहना, हाथ धोना, तेजी से टीकाकरण और तुरंत मेडिकल सुविधा मिलना – ना कि लोगों को घरों में जबरन बंद कर देना.
अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक साल 2020 में महामारी से आई आर्थिक सुस्ती में भारत का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. उनके मुताबिक साल 2020 में 3.2 करोड़ लोग जो मिडिकल इनकम ग्रुप में शामिल हो सकते थे वे नहीं हो पाए. वैश्विक स्तर पर कुल 5.4 करोड़ ऐसे लोग थे जो महामारी के कारण मिडिल इनकम ग्रुप में नहीं जुड़ पाए. यानी ऐसे लोगों की 60 फीसदी आबादी भारत में ही है.
अगर भारत की इकोनॉमी पर महामारी की चोट नहीं लगी होती तो तो तकरीबन 9.9 करोड़ लोग मिडिल-इनकम स्टेटस पा चुके होते. लेकिन आर्थिक सुस्ती की वजह से ये आंकड़ा घटकर एक तिहायी रह गई. वहीं 7.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में जुड़े. भारत के लिए जनवरी 2020-21 के लिए वर्ल्ड बैंक के आर्थिक अनुमान के मुताबिक 13.4 करोड़ लोग गरीबों की सूची में आते हैं जबकि पहले ये 5.9 करोड़ थे.