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हॉस्पिटल में ऑक्सीजन लीक होना है खतरनाक , ज्यादा ऑक्सीजन कैसे शरीर पर डालती है असर ?

हॉस्पिटल में ऑक्सीजन लीक होना है खतरनाक , ज्यादा ऑक्सीजन कैसे शरीर पर डालती है असर ?

नॉलेज । एक अहम सवाल है कि अगर हम बिल्कुल शुद्ध (pure) ऑक्सीजन अपनी सांस में लेने लगें तो क्या होगा? क्या हमें इसका फायदा होगा या हमारी सेहत बिगड़ जाएगी? रिसर्च बताती है कि प्योर ऑक्सीजन बहुत ज्यादा ले लें तो यह हमारी सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है.

इसे साधारण भाषा में ऐसे समझ सकते हैं. हमें अपना काम चलाने के लिए जिस ऊर्जा की जरूरत होती है, वह हमारी शरीर में ही बनती है. हम जो खाना खाते हैं, वह हमारे शरीर में केमिकल रिएक्शन के तहत जलता है और उससे हमें ऊर्जा मिलती है. इसे हम किसी मोमबत्ती के जलने की तरह समझ सकते हैं. जैसे मोमबत्ती जलने के लिए बाहरी हवा की जरूरत होती है. वैसे ही शरीर के अंदर भोजन को जलाने और ऊर्जा पैदा करने के लिए हवा की जरूरत होती है. इसमें ऑक्सीजन गैस काम आती है.



बड़ा सवाल है कि क्या ऊर्जा पैदा करने के लिए केवल ऑक्सीजन की ही जरूरत पड़ती है? इसका जवाब है नहीं क्योंकि ऑक्सीजन के साथ और भी कई गैस इस काम में लगती है. हवा में केवल ऑक्सीजन ही नहीं बल्कि नाइट्रोजन गैस भी होती है जिसकी मात्रा 70 प्रतिशत तक होती है. नाइट्रोजन भी ऊर्जा पैदा करने में बड़ी भूमिका निभाती है. दिन भर हमें पूरी और जरूरत भर की ऊर्जा मिलती रहे, इसके लिए नाइट्रोजन भोजन के जलने को नियंत्रण में रखती है. अगर एक बार में ही पूरा भोजन जल जाए तो ऊर्जा भी एक बार ही पैदा होगी. लेकिन यही काम धीरे-धीरे हो तो हमें लगातार ऊर्जा मिलती रहेगी.


शरीर में प्योर ऑक्सीजन कई केमिकल रिएक्शन को अंजाम देती है. हालांकि कभी-कभी ऑक्सीजन खतरनाक भी हो सकती है और यह स्थिति तब होने की आशंका है जब हम प्योर ऑक्सीजन ज्यादा मात्रा में ले लें. प्योर ऑक्सीजन शरीर में केमिकल रिएक्शन को अचानक से तेज कर सकती है और इससे एक बार में ज्यादा ऊर्जा पैदा होने से शरीर के अंगों को नुकसान हो सकता है. इससे बचने के लिए शरीर में मिक्स ऑक्सीजन जाती है जिसमें नाइट्रोजन की भी मात्रा होती है. नाइट्रोजन गैस भोजन के जलने (बर्निंग प्रोसेस) को नियंत्रित रखती है.


इसका अर्थ यह कतई नहीं कि प्योर ऑक्सीजन की जरूरत बिल्कुल नहीं होती और कोई इसे इस्तेमाल नहीं करता. आप एस्ट्रोनॉट और डीप स्कूबा डाइवर्स के बारे में जानते होंगे. ये लोग काफी खतरनाक स्थिति में काम करते हैं, इसलिए इन्हें प्योर ऑक्सीजन की जरूरत होती है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि एस्ट्रोनॉट और स्कूबा डाइवर्स हमेशा प्योर ऑक्सीजन ही लेते हैं. वे ऐसा ऑक्सीजन सीमित समय के लिए लेते हैं जरूरत के मुताबिक इसे ग्रहण करते हैं ताकि कोई नुकसान न हो.


समय से पहले पैदा हुए बच्चे (प्री मैच्योर बेबी) या कोरोना वायरस से ग्रस्त लोगों को सांस में एक्स्ट्रा या ज्यादा ऑक्सीजन देने की जरूरत होती है क्योंकि उनका लेवल काफी नीचे चला जाता है. बाहरी हवा में ऑक्सीजन का जो स्तर होता है, उससे ज्यादा ऑक्सीजन ऐसे मरीजों को देने की जरूरत होती है. प्योर ऑक्सीजन ऐसे मरीजों को ठीक करने या स्वस्थ स्थिति में पहुंचाने के लिए जरूरी होती है. ऐसे मरीजों को भी ज्यादा मात्रा नुकसानदेह हो सकती है. इसलिए डॉक्टर या नर्स हमेशा ऑक्सीजन सप्लाई पर ध्यान देते हैं.

सो, भोजन से ऊर्जा पाने के लिए, कोई बीमार हो तो उसकी सांसें ठीक करने के लिए, एस्ट्रोनॉट या डीप सी डाइवर के लिए ज्यादा ऑक्सीजन जरूरी हो सकती है, लेकिन इसकी ज्यादा मात्रा ली जाए तो यह नुकसानदेह साबित हो सकती है



इसके अलावा ऑक्सीजन के कुछ और भी खतरे हैं जिससे बचना होता है. महाराष्ट्र के नासिक में बुधवार को एक अस्पताल में ऑक्सीजन लीक के चलते दर्जनभर से ज्यादा मरीजों की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि टैंकर से ऑक्सीजन प्लांट में गैस भरी जा रही थी. इसी दौरान प्लांट की पाइपलाइन में लीक हो गई और मरीजों तक पहुंचाए जाने वाले ऑक्सीजन का प्रेशर काफी गिर गया. गिरते प्रेशर के चलते कई मरीज अपनी जान गंवा बैठे. इससे पता चलता है कि ऑक्सीजन का प्रेशर अगर इतना न हो कि उसे पाइप के जरिये मरीज की सांस नली तक पहुंचाया जा सके, तो यह खतरनाक साबित हो सकता है.


प्योर ऑक्सीजन की जहां तक बात है तो वह खुद से कभी नहीं जलती बल्कि आग जलाने या उसे जलाए रखने में मदद करती है. इसलिए जहां भी ऑक्सीजन को स्टोर किया जाता है, उस जगह को जलने वाली चीजें से मुक्त होना चाहिए. ऑक्सीजन स्टोर के आसपास कभी भी अल्कोहल, सॉलवेंट्स, पेट्रोलियम या पेपर आदि नहीं रखे जाने चाहिए. खुली आग, चिंगारी, किसी जलने वाली चीज से पैदा होने वाली ऊष्मा. रेडिएंट हीटर जैसे सामान स्टोर के आसपास नहीं होने चाहिए. यहां तक कि ऑक्सीजन टैंक का तापमान भी 125 फारेनहाइट से ज्यादा नहीं होना चाहिए.