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सीमेंट का आविष्कार तो काफी बाद में हुआ… तो फिर ताजमहल के इतने पत्थर चिपकाए कैसे गए?

सीमेंट का आविष्कार तो काफी बाद में हुआ… तो फिर ताजमहल के इतने पत्थर चिपकाए कैसे गए?

( आगरा : ताज महल )


नॉलेज । ताजमहल के बनने की कहानी तो आपने बचपन से सुनी होगी और इस वजह से ही इसे प्यार का प्रतीक भी माना जाता है. इसके साथ ही ताजमहल को इस्लामी कला का रत्न भी कहा जाता है, क्योंकि इसे बनाने में जो कलाकारी की गई है, वो दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. हाथीदांत-सफेद संगमरमर का मकबरा दिखने में बेहद खुबसूरत है, जिसमें पत्थर का काफी बेहतरीन काम किया गया है.

आपने भी आगरा जाकर या फोटो-वीडियो में ताजमहल जरूरत देखा होगा. ताजमहल को आज से सैंकड़ों साल पहले बनाया गया था, लेकिन कभी आपने सोचा है कि उस वक्त सीमेंट भी नहीं होती थी तो फिर इन पत्थरों को कैसे चिपकाया होगा. कई साल बीत जाने के बाद भी आजतक ताजमहल वैसा ही है, जैसा कई सालों पहले था. ऐसे में आज जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर सैंकड़ों साल पहले ताजमहल को कैसे बनाया गया था, जिस वजह से आज भी खूबसूरत की मिशाल देते हुए लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है…


कहा जाता है कि ताजमहल को बनाने में मजदूरों को करीब 22 साल लगे थे. इसका निर्माण 1643 में पूरा किया गया था, लेकिन परियोजना के अन्य चरणों में काम 10 साल तक जारी रहा. माना जाता है कि ताजमहल कॉम्प्लेक्स का काम 1653 में लगभग 32 मिलियन रूपये होने के अनुमानित लागत पर पूरा हुआ था, जो अभी के हिसाब से करीब 52.8 बिलियन रुपये होगा. बता दें कि इसके निर्माण में करीब 20 हजार कारीगरों ने काम किया था. ताजमहल को 1983 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल के रूप में नामित किया गया था. साथ ही इसे दुनिया के अजूबों में भी गिना जाता है.


बता दें कि जोसेफ एस्पिन ने 1824 में “पोर्टलैंड सीमेंट” के लिए एक पेटेंट लिया था, एक सामग्री जिसे उन्होंने सूक्ष्मता से जमी हुई मिट्टी और चूना पत्थर से फायर किया था जब तक कि चूना पत्थर को शांत नहीं किया गया था. उन्होंने इसे पोर्टलैंड सीमेंट कहा क्योंकि इससे बना कंक्रीट इंग्लैंड में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला पत्थर पोर्टलैंड पत्थर जैसा दिखता था. आमतौर पर एस्पिन को पोर्टलैंड सीमेंट के आविष्कारक के रूप में मानता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि ताजमहल का निर्माण सीमेंट की खोज से पहले हो गया था.


आजकल तो मार्बल चिपकाने के लिए कई तरीके मौजूद हैं, जिनके जरिए संगमरमर के पत्थरों को चिपका दिया जाता है. हालांकि, उसवक्त पत्थरों को चिपकाने के लिए या आधारशिला बनाने के लिए खास तरह का मैटेरियल तैयार किया गया था. द कंस्ट्रक्टर डॉट ओआरजी के एक आर्टिकल के अनुसार, ताजमहल की नींव के लिए एक अलग सा घोल बनाया गया था, जिसका नाम ‘सरूज’ बताया जाता है. यह लाइन, चिकनी मिट्टी आदि से बनाया जाता है.

इसके अलावा इसमें गुड़, दालें, चीनी, राल, गोंद आदि भी इसमें मिलाय गया था. इसके साथ ही ताजमहल का निर्माण हुआ और इसकी मदद से इसकी इतनी पकड़ है कि आज कई साल बाद भी ताजमहल भूकंप, तूफान, बारिश, धूप, गर्मी, सर्दी का मुकाबला कर रहा है.