संपादकीय । उत्तर प्रदेश की पुलिस का मानवीय चेहरा !भारत के लोकतन्त्र की यह विशेषता रही है कि जब भी इसका कोई स्तम्भ थरथराने लगता है तो दूसरा आकर उसे थाम लेता है। बेशक यह चौखम्भा राज विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और चुनाव आयोग से मिल कर ही बनता है परन्तु इन स्तम्भों के भी ऐसे कई अंग व उप अंग हैं जो संकट काल में अपनी निर्णायक भूमिका अदा करने से पीछे नहीं हटते हैं। कोरोना संक्रमण को लेकर जिस तरह देश में हाहाकार मचा हुआ है और सामान्य नागरिक अपने परिजनों की जान की सुरक्षा के लिए आक्सीजन के लिए अस्पताल दर अस्पताल भटक रहे हैं उसे देखते हुए देश की आंतरिक कानून-व्यवस्था को सुचारू बनाये रखने की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन पर ही आ जाती है।
इस संकट की घड़ी में पुलिस की भूमिका केवल ‘कोरोना वारियर’ की ही नहीं बल्कि आम जनता में बेचैनी को रोकने की भी बन जाती है। एक तरफ जब विभिन्न राज्य सरकारें आक्सीजन की सप्लाई पर लगभग झगड़ रही हैं वहां ऐसे राज्यों की पुलिस की विशेष जिम्मेदारी बन जाती है कि वह लोगों के आक्रोश को अराजकता में न बदलने दे। इसके साथ ही राज्य सरकारें स्वयं ही संक्रमण की रोकथाम के लिए नागरिकों पर जो प्रतिबन्ध लगा रही हैं उन्हें भी लागू होते देखने का दायित्व पुलिस पर ही आ जाता है।
जाहिर है कि भारत में अभी तक पुलिस की प्रतिष्ठा ऐसे बल के रूप में रही है जो नागरिकों के प्रति सौजन्यता कम और आक्रामकता ज्यादा रखती है परन्तु लोकतन्त्र की यह भी विशेषता होती है कि इसमें परिवर्तन समय के अनुसार होता रहता है। आज का समाज सत्तर के दशक का समाज बिल्कुल नहीं है और न ही वे सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां हैं जो उस काल में थीं।
बाजार मूलक अर्थव्यवस्था का दौर शुरू होने के बाद केवल राजनीति का चरित्र ही नहीं बदला है बल्कि प्रशासन के हर अंग के व्यवहार में बदलाव आया है। पिछले तीस वर्षों में लोगों के सरोकारों में परिवर्तन आया है यहां तक कि गरीबी की परिभाषा में भी परिवर्तन आया है। बदलते समाज की वरीयताओं का असर पुलिस प्रशासन पर न पड़ा हो ऐसा संभव नहीं है। अतः खुले बाजार की क्रूरता और प्रतियोगिता ने देश के पुलिस बलों के रवैये को भी बदला है।
समाज में शिक्षा का प्रसार और नागरिक अधिकारों के प्रति चेतना से पुलिस बल को अपने काम करने के अंदाज में भी परिवर्तन करना पड़ा है परन्तु सबसे सुखदायी परिवर्तन यह हुआ है कि पुलिस का चेहरा बदलते समय के अनुरूप अधिक मानवीय हो रहा है और उसकी कार्यप्रणाली अधिक पारदर्शी बन रही है परन्तु सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि पुलिस बल के जवानों में अपनी वर्ग संवेदनशीलता इस प्रकार बढ़ रही है कि वे मानव त्रासदी के समय स्वयं को समाज से अधिक जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पुलिस बल के अधिसंख्य जवान समाज के निचले तबकों से ही आते हैं और वे बहुसंख्य जनता की रोजी-रोटी के लिए की जा रही जद्दो-जहद को कही न कहीं करीब से महसूस करते हैं। यह सब भारत के बदलते आर्थिक ढांचे का ही प्रतिफल है। इसी वजह से हमें अक्सर एेसे दृश्य और घटनाएं सुनने-पढ़ने को मिल जाती हैं कि पुलिस के सिपाही ने किसी मदद मांगते व्यक्ति की सहायता सभी सीमाएं तोड़ते हुए कीं। यह प्रश्न बहुत व्यापक है जिसका सम्बन्ध संविधान के शासन से जाकर ही जुड़ता है।
यह संविधान का शासन ही पुलिस की मूल जिम्मेदारी भी होती है जिसे स्थापित करने में लोकतन्त्र में पुलिस का मानवीय होना अत्यन्त आवश्यक होता है। कोरोना काल में पुलिस जिस तरह आक्सीजन के टैंकरों के अस्पताल तक पहुंचने की निगरानी कर रही है उससे यह नतीजा निकाला जा सकता है कि शासन का यह अंग अपने दायित्व के मानवीय पक्ष की पैरोकारी कर रहा है। पुलिसकर्मियों ने कुछ अस्पतालों के लिए आक्सीजन सिलैंडरों का प्रबंध किया।
कोरोना की पहली लहर के दौरान भी कई पुलिस अफसरों और जवानों की जानें भी गईं। वे अब भी दिन-रात की ड्यूटी कर रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ अपने उत्तर प्रदेश में पुलिस कोरोना नियमचार के पालन के लिए भी प्रतिबद्ध है। उसका यह कार्य उसे नागरिक आलोचना का भी शिकार बनाता है ।
परन्तु इसके साथ यह भी सत्य है कि चिकित्सा आपदा के दौर में पुलिस बल के जवान किसी नागरिक की आर्थिक स्थिति का भी संज्ञान लेते हैं। यह वर्ग चेतना नहीं है बल्कि मानवीय चेतना है जिसका सम्मान समाज को करना चाहिए। जब कोई पुलिस का जवान ट्रैफिक नियम तोड़ते किसी धनवान व्यक्ति को कानून की जद में लेता है तो वह संविधान के नियमानुसार ही कार्यवाही करने से पीछे नहीं हटाता है ।
नोएडा में कोविड-19 से संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद पत्नी के मदद मांगने पर पुलिस ने मृतक का अंतिम संस्कार करवाया। पुलिस के एक अधिकारी ने इस बारे में बताया। थाना फेस-3 के प्रभारी निरीक्षक जितेंद्र दीक्षित ने बताया कि सेक्टर 70 में मनोज नामक व्यक्ति की कोविड-19 से शुक्रवार सुबह मौत हो गई। वह घर पर ही संक्रमण का उपचार करा रहे थे। उन्होंने बताया कि मनोज की पत्नी ने आसपास के लोगों से उनके अंतिम संस्कार के लिए मदद मांगी, लेकिन कोई आगे नहीं आया। इसके बाद उसने पुलिस को फोन किया।
उन्होंने बताया कि घटना की सूचना पाकर वहां पहुंची थाना फेस-3 पुलिस ने मृतक के अंतिम संस्कार की व्यवस्था करवाई तथा मामूरा गांव के श्मशान घाट लेकर गई। थाना प्रभारी ने बताया कि शव के अंतिम संस्कार में लकड़ी आदि की व्यवस्था भी पुलिस ने अपने स्तर से की। पुलिस की इस मानवीय पहल की लोग खूब प्रशंसा कर रहे हैं।
ताजगंज क्षेत्र में शमसाबाद रोड स्थित जयपुरिया सनराइज कालोनी में शारदा देवी पत्नी महेश चार-पांच दिन से बुखार और सर्दी खांसी से पीड़ित थीं। सोमवार को उनकी मौत हो गई। वे घर में अकेली ही रहती थीं। पति मुंबई में रहते हैं और दो बेटे विदेश में हैं।
अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट बंद होने के कारण बेटे यहां आने में असमर्थ थे और लाकडाउन के कारण महेश भी मुंबई से यहां नहीं आ पा रहे थे। पड़ोसी कोई महिला के घर में नहीं घुसा। किसी पड़ोसी ने यूपी 112 पर काल करके महिला की मौत की सूचना दे दी। चौकी प्रभारी एकता शैलेंद्र सिंह चौहान पुलिस फोर्स के साथ महिला के घर के पहुंचे। सभी पुलिसकर्मी पीपीई किट पहनकर गए थे।
महिला का शव घर में फर्श पर पड़ा था। उन्होंने महिला के शव को किट में रखा और पोस्टमार्टम हाउस के एसी ताबूत में रखवा दिया। पति से संपर्क कर जानकारी दी। पति ने किसी रिश्तेदार को भेजने के लिए कहा है। मंगलवार तक अगर कोई स्वजन नहीं पहुंचा तो पुलिस ही महिला का अंतिम संस्कार करेगी। पुलिस के इस काम के लिए कालोनी के लोग सराह रहे हैं।
वाराणसी । जब प्रसव पीड़ा से एक महिला सड़क पर दर्द से कराह रही थी. वाराणसी पुलिस की अपील पर स्थानीय महिलाओं ने सड़क पर ही महिला का प्रसव करवा दिया. दर्द से कराह रही महिला को सड़क पर ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जच्चा-बच्चा दोनों सुरक्षित हैं।
ये तस्वीर है वाराणसी के थाना सिगरा क्षेत्र के कैंट माल गोदाम इलाके की. जहां सड़क किनारे महिलाओं ने साड़ियों का घेरा बनाकर एक महिला की डिलीवरी करवाई. जिस महिला को पुत्र की प्राप्ति हुई वो महिला इनकी किसी पहचान की भी नहीं है लेकिन इंसानियत ने आज इन महिलाओं को टेम्परेरी डॉक्टर जरूर बना दिया. दरअसल रोडवेज पुलिस चौकी इंचार्ज रिजवान बेग को जब सूचना मिली तो पुलिस मौके पर पहुंची.
जहां महिला दर्द से काफी चिल्ला रही थी. पुलिस ने एम्बुलेंस को कॉल किया और उसके आने का प्रतीक्षा करने लगी लेकिन महिला की स्थिति बिगड़ रही थी. ऐसे में पुलिस ने स्थानीय महिलाओं को आवाज देना शुरू किया. उनसे इस महिला मदद करने की अपील की और तब महिलाओं में इंसानियत का धर्म निभाते हुए महिला की सड़क पर ही डिलीवरी करवाई.
महिला को डिलीवरी के बाद अस्पताल भर्ती कराया गया
इस दौर में जब इंसान इंसानों को छूने से डर रहा है, ऐसे में इन महिलाओं ने आगे आकर महिला को साड़ियों से ढककर उसकी डिलीवरी करवाई, जिसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में हो रही है. पीड़ित महिला को डिलीवरी के बाद अस्पताल भर्ती कराया गया है. जिसके ठीक हो जाने के बाद उसके घर का पता पूछ पुलिस संपर्क करेगी. फिलहाल स्थानीय लोगों के अनुसार पीड़ित महिला मजदूरी करती है.
मथुरा । गोवर्धन कस्बे के एक मुहल्ले में व्यक्ति की तेज बुखार से मौत हो जाने के बाद उसके पड़ोसी केवल इस डर से अर्थी को कंधा देने नहीं पहुंचे कि कहीं व्यक्ति की मौत कोरोना से न हुई हो। ऐसे में मृतक की बेटी ने थाने पहुंचकर रोते हुए गुहार लगाई। इस पर इंस्पेक्टर सहित आधा दर्जन पुलिसकर्मियों ने उसके घर पहुंचकर अर्थी को न केवल श्मशान घाट तक पहुंचाया, बल्कि विधि-विधान पूर्वक अंतिम संस्कार सम्पन्न कराने तक उसका पूरा साथ दिया। थाना पुलिस के इस अच्छे काम की जानकारी पाकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने भी हौसला अफजाई करते हुए गोवर्धन के प्रभारी निरीक्षक सहित पूरी टीम को प्रशस्ति देकर सम्मानित किया।
सहारनपुर में लॉकडाउन का सख्ती से पालन कराती यूपी पुलिस का मानवीय चेहरा भी सामने आया है. यहां बड़गांव पुलिस ने अपना फर्ज निभाते हुए बेसहारा बीमार महिला के जीवन को बचाने के लिए पूरा अथक प्रयास किया लेकिन महिला बीमारी और अपने एकाकी जीवन से लड़ नहीं पाई और मौत के आगे हार गई.
वहीं एसएसआई दीपक चौधरी और उनके सहयोगी कांस्टेबल गौरव कुमार, विनोद कुमार ने महिला मीना की अंतिम यात्रा में शामिल होकर उसकी अर्थी को कंधा दिया. पुलिस ने लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए महिला का अंतिम संस्कार कराया.
जालौन में पुलिस का अधिकारी किसी जरूरतमंद और भूखे शख्स को अपने हिस्से खाना दे रहा है। अधिकारी की पहचान सब इंस्पेक्टर रविशंकर मिश्रा के रूप में हुई है, जिन्होंने एक असहाय और भूखे इंसान को अपना खाना देकर मिसाल पेश की है।
एसआई रविशंकर मिश्रा की ड्यूटी जालौन के कालपी बॉर्डर पर थी। यहां ड्यूटी के दौरान रविशंकर खाना शुरू ही कर रहे थे कि तभी एक असहाय और भूखा व्यक्ति वहां आता है, उसे देखकर रविशंकर मिश्रा ने अपना खाना उसे दे दिया और एक पानी की बोतल देकर उसे वहां से भेजा।
लखनऊ । सहादातगंज थाना क्षेत्र में 4 मई 2021 को ऋषिका नाम की महिला का पर्स गुम हो गया था वापस किया,ऋषिका हरदोई की निवासी थी जिनका पर्स गिर गया था, एस आई रजनीकांत, एस आई मुना कुशवाहा को चोर घाटी पर पर्स मिला, जिसमे 3600/- रुपए पैन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर आईडी, तलाश कर महिला को सभी सामान वापस किया गया, पर्स पा कर महिला के चेहरे पर आई मुस्कान, महिला ने पर्स पाकर पुलिस का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया ।
चंदौली । कोरोना महामारी इन दिनों लोगों पर बंपर संकट बनकर टूट रही है. बहुत से लोग ऐसे में जो संक्रमण की डर की वजह से अपनों से दूर हो रहे हैं. ऐसे में मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के लिए आगे तक नहीं आ रहे हैं. यूपी के चंदौली में इस तरह का मामला सामने आया है. जहां अपनों के ठुकराने पर यूपी पुलिस मसीहा बनकर सामने आई और शव का अंतिम संस्कार किया.
पूरा मामला सदर कोतवाली क्षेत्र के भगवानपुर गांव का है. जहां ज्योत्सना उपाध्याय का शनिवार को संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया. जो कि पिछले कई बीमार चल रही थी. लेकिन शनिवार को कोरोना काल में हुई मौत के चलते लोगों ने अंतिम संस्कार करना तो दूर दरवाजे पर भी नहीं गए. वहीं वृद्ध पति जयशंकर पत्नी की मौत और परिस्थितियों से असहाय नजर आए. जब अपनोंं ने मुंह मोड़ लिया, तो उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम डायल 112 पर फोन किया. घटना के बाबत जानकारी देते हुए मदद मांगी.
इस कोरोना काल में यूपी पुलिस ने एक बार फिर संवेदनशीलता दिखाई. सूचना के बाद तत्काल सदर कोतवाल अशोक मिश्रा पूरे दल बल के साथ मौके पर पहुंचे, और घंटों से घर में पड़े वृद्ध के शव को बाहर निकाला. जिसके बाद बॉडी को प्लास्टिक से कवर करते हुए सील किया. पुलिस की इस पहल को देख इक्का दुक्का ग्रामीण भी आगे आये. यहीं नहीं पुलिस ने जवानों ने वृद्ध महिला के अर्थी को कंधा देते हुए शव वाहन की मदद से बलुआ घाट पर भेजवाया.
दरअसल, मृतका ज्योत्सना और जयशंकर उपाध्याय का कोई संतान नहीं था. एक कच्चे मकान में छोटी सी दुकान के सहारे आजीविका चलाते थे.लेकिन ऐसे समय में जब अपनों ने मुंह मोड़ लिया.तो पुलिस फरिश्ता बनकर आई अंतिम संस्कार कराया. चुकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं तो पुलिस ने अपनी तरफ से अंतिम संस्कार में आने खर्च के लिए आर्थिक सहायता के साथ ही घाट पर समुचित व्यवस्था कराई.
• अन्य यूपी पुलिस की मानवीय चेहरा
लॉकडाउन की शुरुआत में जिस तरीके से दिल्ली से मजदूरों का पलायन उत्तर प्रदेश की ओर हुआ, उसे संभालना आसान नहीं था. दिल्ली के आनंद विहार से यूपी की सीमा में प्रवेश करने वाली भीड़ लाखों में बताई जा रही थी. लोग वाहन न मिलने की स्थिति में पैदल ही घर जाने के लिए बेचैन थे. लग रहा था स्थितियां सामान्य नहीं होंगी लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्थितियों के अनुसार फैसला लिया और प्रशासन और पुलिस को दूसरे राज्यों से आकस्मिक पहुंचे लोगों को घर पहुंचाने का जिम्मा सौंप दिया. 1000 से अधिक बसों का इंतजान किया गया. नतीजा 24 घंटे के अंदर सड़कों पर अपार दिख रही भीड़ लगभग गायब हो गई.
गोरखपुर की सड़कों पर रेलवे पुलिस चौकी इंचार्ज अक्षय मिश्र लाउडस्पीकर पर भोजपुरी में गाना गाकर लोगों को कोरोना के खतरे से अगाह और बचाव के तरीके समझाते नज़र आए। चौकी इंचार्ज कुछ सिपाहियों के साथ सड़क पर निकले तो लोगों ने अपने घरों से ही उन्हें सुना और सराहा भी। चौकी इंचार्ज ने गाने के माध्यम से लॉकडाउन और घर के दरवाजे को ही लक्ष्मण रेखा मानने के महत्व के बारे में लोगों को विस्तार समझाया और इसका पालन करने की अपील की।