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जौनपुर : कोरोना प्रोटोकाल की उड़ी धज्जियां , आस्था के समुद्र' में लोगों की डुबकी, डराने वाला मंजर, न मास्क, न सोशल डिस्टेंसिंग
जौनपुर। उत्तरप्रदेश में सरकार ने कोरोनावायरस पर लगाम कसने के लिए कोरोना कर्फ्यू लगाया हुआ है। सामूहिक पूजा-पाठ पर रोक होने के साथ ही सामाजिक विवाह उत्सवों मे 25 लोगों की अनुमति कोविड गाइड के अनुसार प्रदान की गई है।
ऐसे में कोरोनाकाल में पाबंदियों को मुंह चिढ़ाती तस्वीरें जौनपुर जिले से सामने आ रही हैं, जहां कोरोना कर्फ्यू होने के बावजूद एक गांव में अंधविश्वास और आस्था के चलते सामूहिक पूजा धड़ल्ले से की जा रही है। इस पूजा पर स्थानीय पुलिस-प्रशासन अंजान और मौन है।
जौनपुर जिले पूर्वांचल में यह पूजा अधिकांश गावों में एक पाल और यदुवंशियों के द्वारा की जाती है। यह पूजा पूर्वांचल में काशीदास कराह के नाम से जानी जाती है। यहां के लोग अपनी मुराद पूरी होने के लिए मन्नत मांगते हैं, जब मन-मुताबिक काम सम्पन्न हो जाता है तो काशीराम कराह नाम से पूजा करते हैं। इस पूजा में बकायदा खाने-पीने और गाजे-बाजे का इंतजाम होता है। इस पूजा में पुजारी कहीं पर पानी और कहीं से दूध से नहाता है।
क्या है काशीदास कराह पूजा : मान्यता है कि कृष्णा अवतार में गोकुल में देवताओं के राजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए नगरवासियों द्वारा एक विशेष पूजा की जाती थी, जिसका कृष्ण ने विरोध किया। इसके चलते यह पूजा बंद हो गई। बाद में इस पूजा को वनसती की पूजा कहा जाने लगा, जो कालांतर में काशीनाथ बाबा, काशीदास बाबा और काशीदास कराह बाबा के नाम से आज तक चली आ रही है।
यह पूजा खुले आसमान के नीचे की जाती है, हवन कुंड में में देवताओं का आह्वान करके मिट्टी के पात्र में पूरी बनाई जाती है। इन पूरियों को पुजारी खौलते तेल से निकालकर प्रसाद स्वरूप बांटता है।
पुजारी सामाजिक समरसता, पशु के निरोग, लोक कल्याण और वर्षा के लिए यह पूजा होती है। इसमें पुजारी पूजा-पंडाल के चक्कर लगाता है, काशीदास कराह बाबा के जयकारे लगाते हुए हवनकुंड के ऊपर लेट जाता है। गांव के लोगों की मान्यता है ऐसा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते है।
ग्रामीणों का कहना है कि कोरोना महामारी दूर करने के लिए यह काशीदास कराह बाबा की पूजा गांव-गांव हो रही है। हम ग्रामीणों की इस आस्था को नमन करते हैं, जहां एक तरफ कोरोना से छुटकारे के लिए यह पूजा-अर्चन कर रहे हैं, लेकिन कोविड नियमों को अनदेखा करके इस तरह करके समूह में लोगों का एकत्रित होना, कहीं कोविड को निमंत्रण देना ही तो है। पूजा में सम्मिलित लोगों ने न तो मुंह पर मास्क लगा रखा है और ना ही दो गज की दूरी बनाकर रखी है।
पूरे गांव का समूह में मिलना और पूजा करना पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था पर भी सवाल उठाता है, क्योंकि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पांच से अधिक लोग बिना परमिशन के नही जुटेंगे। इतनी भीड़ का पूजा के.नाम पर जुटना और प्रशासन का मौन रहना कहीं मुसिबत का सबब न बन जाए।