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श्रीराम और गिलहरी की कहानी जो बताएगी कि इस महामारी के संकट से हमें कैसे लड़ना है ?

श्रीराम और गिलहरी की कहानी जो बताएगी कि इस महामारी के संकट से हमें कैसे लड़ना है ?

धर्म : त्रेतायुग की बात है. लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र पर पुल बांधने का काम जोरों पर था. नल-नील कुशल शिल्पियों की देखरेख में पुल बनाया जा रहा था. उनके बताए अनुसार वानर दल बड़े-बड़े पत्थर उठा कर ला रहा था. हनुमान उन पर राम नाम लिखते और नल-नील उन्हें सागर में तैरा देते थे. 

यह कार्य बिना रुके और बड़ी ही तन्मयता से जारी था. कई बार वानरों में आपसी होड़ मच जाती कि कौन कितना बड़ा और भारी पत्थर उठा लेता है. 

इस तरह अपनी क्षमता का प्रदर्शन करते हुए उनमें यह भाव भी आ रहा था कि रामसेतु (Ramsetu) के निर्माण में उसी का योगदान सराहनीय है जिसकी क्षमता अधिक भार का पत्थर उठा लेने की है. इस तरह एक-दूसरे के साथ हंसी-ठिठोली करते हुए काम चल रहा था. राम-लक्ष्मण यह सब देखते, वानरों की बात सुनते और सहज ही मुस्कुरा देते थे. 

अचानक लक्ष्मण ने देखा कि बड़े भैया राम की नजर बड़ी देर से सागर किनारे पड़ी रेत पर ही टिकी है. ध्यान से देखने पर उन्होंने पाया कि वहां एक गिलहरी थी. ऐसा लग रहा था कि वह जल और रेत में कोई खेल खेल रही है. लक्ष्मण ने पूछा, भैया आप उधर ही क्या देख रहे हैं? क्या वहां कोई विशेष बात है. 



श्रीराम बोले- हां अनुज लक्ष्मण, वह देखो, वहां एक गिलहरी मुझे चकित कर रही है. वह बार–बार समुद्र जल में खुद को भिगोती है और फिर किनारे जाती है. वहां रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती है. जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाती है तो फिर वह सेतु पर जाकर अपनी सारी रेत सेतु पर झाड़ आती है. वह काफी देर से यही कार्य कर रही है.  

लक्ष्मण बोले ‘नहीं प्रभु, मुझे ऐसा लगता है कि वह समुद्र के किनारे किसी तरह के खेल में आनंद ले रही है. और कुछ नहीं'. भगवान राम (Lord Ram) ने कहा, ‘नहीं लक्ष्मण तुम उस गिलहरी के भाव को समझने का प्रयास करो. चलो आओ उस गिलहरी से ही पूछ लेते हैं कि वह क्या कर रही है.?’ दोनों भाई उस गिलहरी के पास गए. भगवान राम ने गिलहरी से पूछा कि ‘तुम क्या कर रही हो?’ 


गिलहरी ने उत्तर दिया वानरों के कोलाहल से जानकारी मिली कि अत्याचारी रावण के अत्याचार से सभी जीवों को मुक्ति देने के लिए इस सेतु का बनना जरूरी है. हमारे वन प्रदेशों में भी रावण के राक्षसों ने बहुत उत्पात मचाया है.

ऐसे में जरूरी है कि मैं भी इस कार्य में अपना सहयोग करूं. इसलिए पुल बनाने के लिए अपने शरीर पर जितने कंकड़ ले जा सकती हूं, वह सब निर्माण स्थल पर पहुंचा रही हूं. अच्छा अब मैं चलती हूं. मुझे जल्दी ही और पत्थर पहुंचाने हैं.