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इस महिला कुक को दुनिया कहती थी ‘चलती फिरती मौत’, स्वास्थ अधिकारी कहते थे ‘टाइफाइड बम’

इस महिला कुक को दुनिया कहती थी ‘चलती फिरती मौत’, स्वास्थ अधिकारी कहते थे ‘टाइफाइड बम’

अनोखी - दास्तान : दुनिया में ऐसी कई अजीबोगरीब बातें हैं, जो लोगों को हैरान कर देती हैं. मसलन क्या आप ऐसी महिला के बारे में जानते हैं, जिसकी वजह से दुनियाभर में टाइफाइड बुखार फैला? अगर नहीं तो आज हम आपको उस महिला के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसे दुनिया टाइफाइड बुखार का रोगजनक कहती है. कहते हैं इस महिला ने टाइफाइड के बैक्टीरिया से कई लोगों को संक्रमित किया था, जिनमें से कईयों की मौत भी हो गई थी.

टाइफाइड मैरी के नाम से मशहूर मैरी मैलन 70 के दशक में दुनिया और खासकर अमेरिका के लिए परेशानी का सबब बन गई थी. लोगों का ऐसा मानना है कि यह महिला अपने समय में बेहतरीन कुक रही मैरी मौत बनाने का काम किया करती थी. यह महिला बतौर कुक का काम किया करती थी, कहते है सन 1900 से 1907 तक मैरी ने न्यूयॉर्क सिटी के जिन घरों में वह खाना बनाने का काम करती थी वहां रहने वाले लोगों में एक हफ्ते के अंदर टाइफाइड बुखार का विकास हुआ.


साल 1907 तक उस इलाके में संक्रमण के 30 ऐसे मामले सामने आए जो डॉक्टरों के लिए परेशानी का सबब बन गए. ये तलाश शुरू हुई कि बीमारी पहली बार कहां से फैली और किस-किस से होते हुए आगे बढ़ती गई. तब तक स्वास्थ्य विभाग के लोग इस असामान्य महामारी की वजह पानी या खाने की खराबी को मान रहे थे. हैरानी की एक दूसरी वजह भी थी. तब तक ये माना जाता था कि न्यूयॉर्क के गरीब इलाकों में ही टाइफाइड फैलता है और समृद्ध इलाके इससे अछूते रहते हैं.

महामारी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर जार्ज सोपर ने पाया कि मैरी उस घर में काम कर रही थीं. और उन्होंने ये भी पता लगा लिया कि अतीत में जिन घरों में संक्रमण के मामले सामने आए हैं, मैरी वहां भी काम कर चुकी थीं. जांच अधिकारियों का कहना था यह कोई संयोग तो नहीं कि जिस-जिस जगह उसने काम किया उस-उस जगह लोग टाइफाइड से ग्रसित हुए.


स्वास्थ अधिकारियों का कहना था कि जब वह खाना बनाती थी तब उसके हाथ के जरिए टाइफाइड के कीटाणु खाने में मिल जाते थे. ऐसे कई सबूत मिलने के बाद मैरी को एक दिन गिरफ्तार कर लिया गया और उसे नजबंद कर नॉर्थ ब्रोथेर आइलैंड में रखा गया.

इस मु्द्दे पर मैरी ने दलील दी कि उसका इन सब में कोई हाथ नहीं है. उसका कहना था कि वह कई बार डॉक्टर को दिखा चुकी है, उसे कभी टाइफाइड न था न है फिर वह कैसे इस बीमारी को फैला सकती है. इस बात को लेकर उसने न्यूयॉर्क के स्टेट बोर्ड को कई बार कोर्ट में चुनौती भी दी.


1910 में वह केस जीत गई और उसे इस शर्त पर रिहा किया गया कि वह आगे से कभी भी कुक का काम नहीं करेगी. हालांकि उसने रिहा होने के कुछ दिनों बाद तक कपड़े धुलने का काम करती रही लेकिन उसे बहुत कम तनख्वा मिलती थी. जिस कारण उसने फिर से कुक का काम शुरू कर दिया. इसके लिए उसने सबसे पहले अपना नाम बदला और मैरी ब्राउन नाम से एक अस्पताल में कुक के तौर पर काम करने लगी.

साल 1915 में 22 डॉक्टर और कुछ नर्स टाइफाइड से ग्रसित हो गए जिसमें से दो की मौत भी हो गई. ऐसे में कुक की पहचान की गई तो फिर मैरी का ही नाम सामने आया. जिसके बाद उसे 30 साल तक नजरबंद रखा गया. साल 1932 में मैरी को दिल का दौरा पड़ा और उसके बाद उन्हें लकवा मार गया. छह साल बाद 69 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. इस बात पर आज भी बहस की जाती है कि उनका पोस्टमॉर्टम किया गया था या नहीं और उससे भी ज्यादा इस बात पर चर्चा होती है कि उनके अंतिम अवशेष में टायफाइड के बैक्टीरिया आज भी होंगे या नहीं.