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इस वजह से बहादुरी का दूसरा नाम था सैम मानेकशॉ, प्रधानमंत्री को भी देते थे सटीक जवाब
‘अगर कोई कहता है कि वो मौत से नहीं डरता, या तो वो एक झूठा है या एक गोरखा है’. ये लाइनें थीं भारत के प्रथम फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की. आप सिर्फ इस एक लाइन से ही समझ सकते हैं कि सैम मानेकशॉ कितने बहादुर होंगे. उनकी बहादुरी के इतने किस्से हैं कि लोगों ने उनके नाम में भी बहादुरी जोड़ दिया था. आज मानेकशॉ की पुण्यतिथि है और पूरा देश शौर्य, पराक्रम, आजाद भारत के महान रणनीतिक योद्धा को याद कर रहे हैं.
उनकी पुण्यतिथि के मौके पर हम भी आज उनके कुछ किस्से बताते हैं, जिसमें दर्ज है उनकी बहादुरी की गाथाएं. उन किस्सों के बारे में पढ़कर आप खुद समझ जाएंगे कि आखिर मानेकशॉ को बहादुरी के लिए क्यों जाना जाता है. उनके निधन को 13 साल हो गए हैं लेकिन आज तक उनकी बहादुरी के किस्से और उनके जोक्स लोगों के बीच चर्चा का विषय बने रहते हैं. जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ किस्से, जो भारत हमेशा याद रखेगा…
गोरखा रेजीमेंट से आने वाले सैम मॉनेकशॉ इंडियन आर्मी के 8वें चीफ थे. वो सेना के शायद पहले ऐसे आर्मी चीफ थे जिन्होंने प्रधानमंत्री को दो टूक जवाब दिया था और कहा था कि इंडियन आर्मी अभी पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए तैयार नहीं है. दरअसल, अप्रैल 1971 में इंदिरा गांधी ने मानकेशॉ से पूछा था कि क्या वह पाकिस्तान के साथ जंग के लिए तैयार हैं? सैम ने इंदिरा गांधी को साफ-साफ कहा कि अगर अभी इंडियन आर्मी युद्ध के लिए जाती है तो फिर उसे हार से कोई नहीं बचा सकता है. इतना ही इंदिरा गांधी के गुस्सा होने पर उन्होंने इस्तीफे देने की पेशकश कर दी थी.
मिजोरम में एक बटालियन उग्रवादियों से लड़ाई में हिचक रही थी. इस बारे में जब मानेकशॉ को पता चला तो उन्होंने चूड़ियों का एक पार्सल बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को एक नोट के साथ भेजा. नोट में लिखा था, ‘अगर आप दुश्मन से लड़ना नहीं चाहते हैं तो अपने जवानों को ये चूड़ियां पहनने को दे दें.’ जिसके बाद बटालियन ने इस ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया.
उन्होंने अपना इस्तीफा देने से पहले प्रधानमंत्री को कह दिया था, ‘मैडम प्राइम मिनिस्टर आप मुंह खोले इससे पहले मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आप मेरा इस्तीफा मानसिक, या शारीरिक या फिर स्वास्थ्य, किन आधार पर स्वीकार करेंगी?’ इसके अलावा एक बार उन्होंने कैबिनेट मीटिंग में कहा था, ‘आप मेरे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे तो मैं भी आपके राजनीतिक मामलों से दूर रहूंगा.’
साल 1962 में चीन से युद्ध हारने के बाद सैम को बिजी कौल के स्थान पर चौथी कोर की कमान दी गई. पद संभालते ही सैम ने सीमा पर तैनात सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘आज के बाद आप में से कोई भी तब तक पीछे नहीं हटेगा, जब तक इसके लिए लिखित आदेश नहीं मिलता. ध्यान रखिए यह आदेश आपको कभी भी नहीं दिया जाएगा.’