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विज्ञान की मदद से फिर बोलने लगा 18 साल से लकवाग्रस्त शख्स, तो क्या दिमाग पढ़ने करीब पहुंच गया है विज्ञान
एक 38 साल का लकवाग्रस्त मरीज पिछले 18 साल से बोल नहीं पा रहा था. लेकिन तकनीक ने अपना कमाल दिखाया और ये मरीज अब अपनी बात बता पाने में सक्षम हो गया है. दरअसल पीड़ित व्यक्ति के मस्तिष्क में स्थापित किए गए इम्प्लांट की सहायता से ऐसा संभव हो सका है. यह मामला कैलिफोर्निया का है और माना जा रहा है कि इस सफल ट्रीटमेंट के साथ ही विज्ञान अब मनुष्य के दिमाग को पढ़ने के करीब पहुंच गया है.
18 साल से लकवाग्रस्त एक 38 वर्षीय व्यक्ति आखिरकार फिर से बोल सकता है. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में एक न्यूरोसर्जन डॉ. एडीचांग ने एक कंप्यूटर प्रोग्राम से कनेक्ट होने वाले इम्प्लांट के साथ, पंचो के मस्तिष्क में टैप किया. एक दुर्घटना के कारण पंचो की बोलने की क्षमता क्षतिग्रस्त हो गई थी. इंप्लांट की मदद से शोधकर्ता पंचो के मस्तिष्क के स्पीच एरिया (वो हिस्सा जो शब्दों का उत्पादन करता है) को टैप करते हैं. पंचो को अब बस अपनी बात कहने की कोशिश करनी है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई वही दोहरा देगा, जो वह बताने का प्रयास कर रहा है.
कैलिफोर्निया के पंचो जो पेशे से फील्डवर्कर था, 2003 में एक दुर्घटना के शिकार हो गया. चोट और सर्जरी की वजह से उपजी जटिलताओं ने उसे पूरी तरह पंगु बना दिया. इस दौरान पंचो को एक स्ट्रोक का भी सामना करना पड़ा, जिसके चलते उसके शरीर के मोटर फंक्शन जिसमें बोलने की क्षमता भी शामिल थी, प्रभावित हो गई. करीब 18 साल तक खामोश रहने के बाद डॉक्टर्स मानने लगे थे कि स्पीच से जुड़ा पंचो के दिमाग का हिस्सा अब निष्क्रिय हो चुका होगा और वह अब कभी बोल नहीं सकेगा.
लेकिन 50 सत्रों और 81 सप्ताह के अथक प्रयासों के बाद, पंचो फिर से अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकता है. डॉक्टरों ने उसके दिमाग में 128 इलेक्ट्रोड वाली एक आयताकार शीट लगाई है. जब भी पंचो बोलने की कोशिश करता है तो यह शीट कंप्यूटर को सिग्नल भेजती है. इलेक्ट्रोड उसके चेहरे और जबड़े से न्यूरो संकेत लेकर कंप्यूटर को सिग्नल देते हैं जो आगे उसकी बात को शब्दों में व्यक्त करता है. इस इलेक्ट्रोड को मुंह, होंठ और जबड़े से जुड़ी ध्वनि और मोटर प्रक्रियाओं से संकेतों का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
हालांकि यह अभी भी बिल्कुल सही परिणाम देने में समर्थ नहीं है, लेकिन परीक्षण के परिणाम ने शोधकर्ताओं को भी हैरान कर दिया है. जब रोगी छोटे-छोटे शब्द बोलने की कोशिश करता है, तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इसके तीन-चौथाई तक सटीक परिणाम देता है. हालांकि लंबे वाक्यों में अभी भी थोड़ी कठिनाइयां हैं, लगभग आधा परिणाम अभी सही दे पा रहा है.
यह उपलब्धि न्यूरोप्रोस्थेसिस के जरिए संभव हुई है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो मस्तिष्क को एक कंप्यूटर से जोड़ती है, न कि एक उपकरण से जो गायब जैविक कार्यक्षमता को बदलने के लिए है. यह उन हजारों अन्य लोगों की मदद कर सकता है जिनके पास बोलने की क्षमता नहीं है. इनमें मस्तिष्क की चोट और स्थिति वाले लोग भी शामिल हैं.
हालांकि यह उन लोगों के लिए एक बड़ी छलांग है जो संवाद करने के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में अभी लंबा रास्ता तय करना है. अभी तक उपलब्ध तकनीक रोगी को प्रति मिनट 15 से 18 शब्द बोलने की अनुमति देती है. एक औसत व्यक्ति एक मिनट में लगभग 150 शब्द बोलता है.
वहीं बुरा पहलू इसके गलत इस्तेमाल से जुड़ा है. भले ही हम ये सोचें कि हमारे विचार हमारे अपने हैं लेकिन इनका भी दोहन किया जा सकता है. ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) तकनीक में हालिया प्रगति से पता चलता है कि आपके दिमाग को बिना एहसास के भी पढ़ना संभव है. बीसीआई उपकरण मस्तिष्क और मशीन के बीच सीधे संचार की अनुमति देता है.
ऐसी आशंका है कि बढ़ती तकनीक के साथ, मस्तिष्क में विद्युत गतिविधि के आधार पर कुछ ही मिनटों में तंत्रिका संबंधी बीमारियों का पता लगाया जा सकता है. लेकिन यह इससे भी आगे बहुत कुछ कर सकता है.
कार्नेगीमेलन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता एफएमआरआई ब्रेन इमेजिंग की मदद से किसी व्यक्ति के विचारों को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
इसी तरह, MIT के शोधकर्ता भी एक उपकरण, Alter Ego लेकर आए हैं, जो किसी व्यक्ति के चेहरे के न्यूरोमस्कुलर संकेतों को टैप कर उसके दिमाग में चल रहे विचारों का पता लगा सकता है.
एलोन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक भी एक इम्प्लांटेबलडिवाइस पर मानव ट्रेल्स का संचालन कर रही है जो किसी व्यक्ति के दिमाग को पढ़ सकती है.
चीन भी कथित तौर पर तनाव की निगरानी के लिए उनकी भावनात्मक स्थिति को पढ़ने के लिए सैन्य और अन्य सरकारी कर्मचारियों पर मस्तिष्क-पढ़ने की तकनीक की तैनाती की खोज कर रहा है.