संपादकीय
साइबर फ्रॉड से रहें सावधान, नहीं तो आपके साथ भी हो सकता है ये धोखा
लखनऊ: साइबर फ्रॉड से निपटने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबर 155260 लोगों के लिए काफी कारगर साबित हो रहा है. साइबर ठगी के शिकार लोगों को उनका पैसा वापस मिलने लगा है. राष्ट्रीय हेल्पलाइन 155260 की मदद से पिछले करीब चार माह में 6 करोड़ रुपये ठगी के शिकार लोगों को वापस कराए जा चुके हैं.
यूपी में 112 से कनेक्ट हुए इसे एक माह हुए हैं. तीस दिन में यूपी साइबर सेल ने ठगी के शिकार लोगों को 35 लाख रुपये वापस दिलाए हैं. यह हेल्पलाइन नंबर एक अप्रैल को सात राज्यों में एक साथ लांच की गई थी और 16 जून को पूरे देश के लिए इसे खोला गया है. अभी तक 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह हेल्पलाइन काम करने लगा है. अन्य राज्यों में भी इसे लागू करने के लिए बातचीत चल रही है.
हेल्पलाइन नंबर शुरू होने के इतने कम समय में साइबर ठगी के शिकार लोगों को राहत मिलनी शुरू हो गई है. साइबर सेल के मुताबिक, बीते 12 जुलाई को उत्तर प्रदेश के बरेली निवासी सीनियर सिटीजन पेंशनर राम औतार साइबर ठगी के शिकार हो गए. दरअसल, पीड़ित राम औतार के मोबाइल पर एक अंजान नंबर से फोन आया था.
फोन करने वाला व्यक्ति अपने आप को बैंक का अधिकारी बता रहा था और उसने एटीएम बंद होने का हवाला देकर मोबाइल पर आया ओटीपी पूछ लिया, जिससे उसके खाते से 1.5 लाख रुपये की निकासी कर ली. राम औतार ने गूगल पर सर्च कर साइबर फ़्रॉड नम्बर 155260 निकाला और घटना के 24 घंटे के अंदर उस नम्बर पर कॉल किया.
112 यूपी की साइबर सेल ने पता किया तो रकम बैंक के वालेट के पास ही थी. उसने तत्काल रकम को फ्रीज करा दिया, फिर चंद दिनों में राम औतार को रकम बैंक में वापस मिल गई.
इसी तरह से उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की एक महिला को एक यूरोपीय व्यक्ति ने पहले ऑनलाइन दोस्ती का अनुरोध किया और इसे स्वीकार करने के बाद करोड़ों रुपये का गिफ्ट भेजने का झांसा देकर 51 हजार रुपये ठग लिए. महिला की शिकायत के बाद एयरटेल पेमेंट बैंक से उसे पूरे पैसे वापस कराए गए.
ADG साइबर क्राइम राम कुमार की मानें तो केंद्रीय हेल्पलाइन नंबर 155260 को 16 जून से 112-यूपी से भी जोड़ा गया है. ठगी की शिकायत मिलने के तत्काल बाद शिकायत नंबर के साथ विस्तृत जानकारी उस बैंक या ई-वॉलेट के पास भेज दी जाती है, जिस बैंक में ठगी का पैसा गया होता है. बैंक के सिस्टम में यह जानकारी फ्लैश करने लगती है. यदि पैसे संबंधित बैंक या वालेट के पास ही हैं, तो वह उसे तत्काल फ्रीज कर देगा. यदि पैसा किसी और बैंक या वालेट में चला गया हो तो वह उसे संबंधित बैंक या वालेट को भेज देगा. यह प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी, जब तक उस पैसे की पहचान कर उसे फ्रीज नहीं कर दिया जाता है.
दूसरी ओर शिकायतकर्ता को एसएमएस से शिकायत दर्ज किए जाने की सूचना और इसका एक नंबर दिया जाएगा. साथ ही 24 घंटे के भीतर नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर ठगी की विस्तृत जानकारी देने का निर्देश दिया जाएगा.
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एक अप्रैल को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में सॉफ्टवेयर लांच किया गया था. 17 अप्रैल को इसे पूरे देश के लिए खोल दिया गया और उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, दमन दीव और दादर नगर हवेली में भी इसे लांच कर दिया गया है.
हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करने के बाद संबंधित पुलिस ऑपरेटर ठगी के शिकार हुए व्यक्ति के लेनदेन का ब्यौरा और डिटेल्स लिखता है. इस जानकारी को नागरिक वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग और प्रबंधन प्रणाली पर एक टिकट के रूप में दर्ज किया जाता है, फिर यह टिकट संबंधित बैंक, वॉलेट्स, मर्चेंट्स आदि तक तेजी से पहुंचाया जाता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे इस पीड़ित के बैंक हैं या फिर वे बैंक/वॉलेट हैं, जिनमें धोखाधड़ी का पैसा गया है.
इसके बाद फिर पीड़ित को एक एसएमएस भेजा जाता है, जिसमें उसकी शिकायत की पावती संख्या होती है और साथ ही निर्देश होते हैं कि इस पावती संख्या का इस्तेमाल करके 24 घंटे के भीतर धोखाधड़ी का पूरा विवरण राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in/) पर जमा करें. अब संबंधित बैंक, जो अपने रिपोर्टिंग पोर्टल के डैशबोर्ड पर इस टिकट को देख सकता है, वह अपने आंतरिक सिस्टम में इस विवरण की जांच करता है