National
International Tiger Day: बाघों की संख्या दोगुनी करने के लक्ष्य में पिछड़ा यूपी
लखनऊ. आज यानी 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस (INternational Tigers Day) है. 11 साल पहले 2010 में बाघों के संरक्षण को लेकर ये तय किया गया था कि हर साल 29 जुलाई को ये दिवस मनाया जायेगा. तब ये भी तय किया गया था कि साल 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुनी करने के प्रयास किये जायेंगे. अब इस लक्ष्य को पूरा होने में महज एक साल का ही समय बचा है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि देश में बाघों की क्या स्थिति है. बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है. तो आइये जानते हैं कि हम इस लक्ष्य को हासिल करने के कितने करीब हैं.
साल 2010 में देश में बाघों की कुल संख्या 1706 थी. बाघों की बड़ी आबादी वाले राज्यों में एमपी में 257, कर्नाटक में 300, उत्तराखण्ड में 227 और यूपी में 118 बाघ थे. 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश के 20 राज्यों में बाघों की कुल संख्या 2967 थी. 2021 तक संख्या कुछ बढ़ी ही होगी. यानी लक्ष्य के बहुत करीब हम पहुंच गये हैं. 2018 की गणना के अनुसार मध्यप्रदेश में 526, कर्नाटक में 524, उत्तराखण्ड में 442 और यूपी में 173 बाघ थे. इस तरह 2022 के लक्ष्य की तुलना करें तो यूपी को छोड़कर बाकी तीन राज्यों ने लक्ष्य लगभग हासिल कर लिया है.
तो फिर यूपी में बाघों की संख्या में वैसी बढ़ोतरी क्यों नहीं हुई जैसी दूसरी राज्यों में देखी गयी है. बता दें कि यूपी में दुधवा और पीलीभीत, दो टाइगर रिजर्व हैं. यूपी के प्रमुख वन संरक्षक (वाइल्ड लाइफ) पीके शर्मा ने कहा कि इस स्थिति का दूसरा पक्ष भी है जिसे देखा जाना चाहिए. पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पिछले चार सालों में बाघों की संख्या दोगुने से ज्यादा हुई है. 2014 में महज 25 बाघ थे लेकिन, 2018 में 65 हो गये. पीलीभीत टाइगर रिजर्व एक तरह से अब सेचुरेटेड हो गया है. ये जरूर है कि दुधवा टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ाने का अभी भी स्कोप है. उसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं.
हालांकि ये भी सच है कि ये संख्या और भी ज्यादा होती यदि कुछ बाघ अकाल मृत्यु के शिकार न हुए होते. आपसी संघर्ष, इंसानी संघर्ष, सड़क दुर्घटनाएं और शिकारियों का प्रकोप कम होता तो बाघों की संख्या और भी बेहतर दिखती. बाघों के फलने-फुलने में सबसे बड़ी बाधा उनके सिकुड़ते रिहायश की है. बाघों के इलाके को बढ़ाना तो दूर, जो है उसे बचाने की चुनौती बड़ी है. इसीलिए कई टाइगर रिजर्व को कॉरीडोर के जरिये आपस में जोड़ने का काम तेजी से चल रहा है. कॉरीडोर वो प्राकृतिक रास्ते हैं जिसके जरिये बाघ एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं. यानी वे एक टाइगर रिजर्व से दूसरे टाइगर रिजर्व में पहुंचते हैं. इन कॉरीडोर के बीच में इंसानी दखल से समस्यायें गंभीर हुई हैं. पीके शर्मा ने बताया कि लग्गा-बग्गा, किशनपुर, सुरई, खाता और दूसरे कई कॉरीडोर्स को ऐसा बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे बाघों का एक जगह से दूसरी जगह आसान आवागमन हो सके. इससे उनके इंसानी इलाके में पहुंचने की संभावना भी कम हो जायेगी.
देश के तीन राज्यों छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उड़ीसा में बाघों की संख्या बढ़ने के बजाय कम हो गयी है. छत्तीसगढ़ में 26 बाघ थे, जबकि 2018 में 19 रह गये. इसी तरह झारखण्ड में 10 से 5 रह गये और उड़ीसा में 32 से 28 रह गये.