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वाराणसी: जार्जिया की महारानी के अवशेष का बीएचयू के डा. लालजी सिंह ने किया था डीएनए टेस्ट।

वाराणसी: जार्जिया की महारानी के अवशेष का बीएचयू के डा. लालजी सिंह ने किया था डीएनए टेस्ट।


वाराणसी। गोवा के खंडहर हो चुके गिरिजाघर में पड़े अवशेष 400 साल पहले जार्जिया की क्वीन केतेवान के हैं, इसे बीएचयू के पूर्व कुलपति और देश में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के जनक दिवंगत प्रो. लालजी सिंह की टीम ने ही साबित किया था। 1958 में पुर्तगाली कागजातों में बताया गया था कि गोवा के किसी चर्च में महारानी क्वीन केतेवान के अवशेष रखे हैैं। यह पता चलने पर 1989 में जार्जिया की सरकार ने भारत से अपनी महारानी के अवशेषों पता लगाने की गुहार लगाई थी। जार्जिया के दौरे पर गए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को जार्जिया सरकार को उनकी महारानी के अवशेष सौंपे।

जार्जिया सरकार की मांग पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआइ की टीम ने खोजबीन शुरू की और 2005 में इस गिरिजाघर को खोज निकाला। उत्खनन में तीन बाक्स मिले और सभी में अवशेष थे। इन्हें नाम दिया गया क्यूकेटी-1, क्यूकेटी-2 और क्यूकेटी-3। इनमें महारानी के अवशेष का पता लगाने की जिम्मेदारी डा. लालजी सिंह और डा. नीरज राय को दी गई। डा. सिंह ने उस समय एस्टोनिया में शोध कर रहे प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और सेंटर फार सेलुलर और मालिक्युलर बायोलाजी (सीसीएमबी) हैदराबाद के डा. कुमारासामी थंगराज, डा मानवेंद्र सिंह और डा. आदित्यनाथ झा के साथ अवशेषों की डीएनए टेस्टिंग शुरू की।

पता चला कि क्यूकेटी-1 महारानी के अवशेष हैैं जबकि दो अन्य क्यूकेटी-2 और क्यूकेटी-3 उनके दोनों भारतीय अनुयायियों के हैैं। दस्तावेजों के मुताबिक ईरान से महारानी की अस्थियां ये दोनों ही गोवा ले आए थे। वर्ष 2012-13 में डा. लालजी सिंह की अगुआई में डीएनए टेस्ट हुआ और हैरान कर देने वाला यह परिणाम 2014 में अमेरिका के ख्यात जर्नल माइटोकांड्रिया में प्रकाशित हुआ था।


वर्तमान में बीएचयू में जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि चर्च में महारानी के दाएं हाथ फीमर की हड्डी के अवशेष मिले थे। डा. नीरज राय और मानवेंद्र ने बताया कि हड्डी महिला की है। सैंपल के विश्लेषण की जिम्मेदारी प्रो. चौबे को दी गई। उन्होंने महारानी के स्वघोषित वंशजों और उनके आसपास के लोगों के डीएनए का मिलान महारानी के अवशेषों से किया तो रिपोर्ट मैच कर गई। उन्होंने बताया कि इस तरह के डीएनए सैंपल यू1बी हेप्लोगुप जार्जिया में ही पाए जाते हैं, भारत में नहीं। वहीं, महारानी के अनुयायियों में आर6ए और यू2ए डीएनए था, जो सिर्फ भारतीयों में मिलता है।

ईरान पुराना नाम फारस के शासक शाह अब्बास ने 1614 में जार्जिया पर आक्रमण किया और बेहद खूबसूरत महारानी केतेवान का अपहरण कर अपने देश लेता गया। उसने महारानी को सिराज नगर के खतरनाक बंदीगृह में रखा। दस वर्ष बाद भी जब रानी इस्लाम धर्म स्वीकार कर शाह के हरम में जाने को तैयार नहीं हुईं तो उन्हें भयानक यातनाएं दी गईं। 22 सितंबर, 1624 को उनकी मौत हो गई और उन्हें वहीं दफन कर दिया गया। 1637 में महारानी के दो अनुयायी वेश बदलकर भारत से ईरान पहुंचे और अस्थियों को निकालकर गोवा आ गए।