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वाराणसी: संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कार्यालयों में बगैर अनुमति के बाहरी लोगों का प्रवेश पूर्णत प्रतिबंधित।
वाराणसी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय कार्यालयों में बगैर अनुमति के बाहरी लोगों का प्रवेश पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया गया है। वहीं किसी भी अधिकारी, अध्यापक या कर्मचारी के साथ अब कोई अभद्रता करेंगा तो उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई जाएगी।
कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी की अध्यक्षता में गत हुई प्राक्टोरियल बोर्ड की हुई बैठक में सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की गई। इसमें परिसर में खराब सीसी टीवी कैमरों को तत्काल दुरूस्त कराने का निर्णय लिया गया। वहीं कार्यालय अवधि में केंद्रीय कार्यालय की सुरक्षा अधिकारी को स्वयं सुरक्षाधिकारी को स्वयं संभालने का निर्देश दिया गया। इसके अलावा सभी सहायक प्राक्टर को बारी-बारी से एक-एक घंटा प्राक्टर कार्यालय में उपस्थित रहने का भी निर्देश दिया है।
संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर की सुरक्षा व्यवस्था संभाल रही एजेंसी की समय सीमा समाप्त हो गई है। इसके बावजूद एजेंसी अब तक कार्य कर रही है। इसे देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने जल्द ही ई-टेंडर कराने का निर्णय भी लिया है। बैठक में चीफ प्राक्टर प्रो. शैलेश कुमार मिश्र सहित अन्य सहायक प्राक्टर भी मौजूद थे।
दरअसल जौनपुर स्थित संबद्ध महाविद्यालय के एक प्रबंधक राजभवन की पैरवी लेकर गत दिनों कुलपति से मिलने विश्वविद्यालय आए थे। वार्ता के दौरान के उनकी कुलपति से झड़प हो गई। मोबाइल पर कुलपति ने इसकी जानकारी राजभवन को भी दे दी है। इसके बाद उन्होंने परिसर की सुरक्षा व्यवस्था और चुस्त-दुरूस्त करने का निर्णय लिया है।
बता दें कि खुद की प्रिंटिंंग प्रेस होने के बावजूद विश्वविद्यालय परीक्षा के लिए प्रश्नपत्रों का मुद्रण बाहर से कराते है ताकि पेपर लीक न हो सके। गोपनीयता के नाम पर विश्वविद्यालयों में मनमाने दर पर प्रश्नपत्रों का मुद्रण कराया जाता है। आडिट के दायरे से मुक्त होने के कारण प्रश्नपत्रों मुद्रण किस दर में कराया गया। लोगों को इसकी भनक तक नहीं होती है। इससे इतर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में गोपनीय प्रिंटिंग भी स्वयं के प्रेस में होता है।
ऐसे में गोपनीय प्रिंटिंग के नाम पर होने वाला खेल विश्वविद्यालय में अब पूरी तरह से बंद हो गया है। प्राच्य विद्या का केंद्र होने के कारण विश्वविद्यालय में आधुनिक विषय नाम मात्र के संचालित होते हैं। इसके चलते विश्वविद्यालय की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अध्यापकों व कर्मचारियों के वेतन के लिए भी विश्वविद्यालय को शासन के अनुदान पर निर्भर रहना पड़ता है।
ऐसे गोपीनीय प्रिंटिंग के नाम पर लाखों रूपये होने वाले व्यय को रोकने के लिए वर्ष 2011 में तत्कालीन कुलपति प्रो. बिंदा प्रसाद मिश्र ने विश्वविद्यालय प्रेस में ही प्रश्नपत्रों का मुद्रण कराने का निर्णय लिया।