गोरखपुर । चिलचिलाती धूप हो चाहे कड़ाके की ठंड। जमकर पसीना बहाते हैं। पाई-पाई जोड़ते हैं और पूरे साल नावों की मरम्मत में जुटे रहते हैं। इस उम्मीद में कि बारिश में इसी नाव के सहारे न केवल बाढ़ पीड़ितों का मदद करेंगे बल्कि उनकी खुद की कुछ कमाई हो जाएगी। डेढ़ दशक से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर रहा है। बाढ़ आती है। प्रशासन उनकी नावें मंगवाता है और बाढ़ पीड़ितों की मदद में लगवाता भी है। पर किराए के नाम पर महज 69 से 115 रुपये दिहाड़ी थमाता है। यही नावें जब जिला प्रशासन दूसरे जिलों से मंगवाता है तो उन्हें एक दिन का तकरीबन 1100 रुपये भुगतान किया जाता है।
भोजपुरी में एक मसल है‘...घर की मुर्गी साग बराबर’। जिले के नाव मालिकों पर यह मसल शत-प्रतिशत सही बैठती है। बारिश का मौसम चल रहा है। इन दिनों नदियां उफान पर हैं। नदियों में आई बाढ़ की वजह से जिले के तकरीबन 150 गांव प्रभावित हैं। इन गांवों के लोगों की मदद के लिए प्रशासन ने किराए पर लेकर 170 से अधिक नावें लगवाई हैं। बड़ी नावों पर 4-4 नाविकों को तैनात किया गया है जबकि मझोली नावों पर 3-3 नाविक लगाए गए हैं। वहीं छोटी नावों पर 2-2 नाविकों की तैनाती है जो बाढ़ से घिरे ग्रामीणों की 24 घंटे मदद कर रहे हैं।
प्रशासन द्वारा बाढ़ प्रभावितों की मदद को लगाए गए नाविकों को 339 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मेहनताना दिया जा रहा है। पर जिनकी नावें किराए पर ली गई हैं उन्हें काफी कम रकम मिल रही है। नाव मालिकों तो अपना यही दर्द बयां कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रशासन द्वारा छोटी नावों का प्रतिदिन के हिसाब से 69 रुपये और मझोली नावों का 92 रुपये भुगतान होता है। उलकी बड़ी नावों का प्रतिदिन के हिसाब से 115 रुपये किराया मिलता है।
जिले में राप्ती-रोहिन, सरयू और गोर्रा खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। आमी नदी भी तबाही मचा रही है। इन नदियों की बाढ़ से 150 से अधिक गांव प्रभावित हो गए हैं। इन गांवों में मदद के लिए नावें लगवाई गई हैं। स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन ने अयोध्या से 16 नावें मंगवाई है।
जिला प्रशासन जब दूसरे जिलों से नावें मंगवाता है तो उन्हें ले आने और ले जाने के लिए ट्रकों के किराए का भी भुगतान करता है। स्थानीय नाव मालिकों का कहना है कि प्रशासन यदि उन्हें भी सही किराया देता तो बड़ी संख्या में युवा इस पेशे में जुड़ते। युवाओं को रोजगार भी मिलता और प्रशासन को बाहर से नावें नहीं मंगवानी पड़ती।
नाव मालिकों का कहना है कि उनकी राजनीतिक दखलंदाजी नहीं है। कोई मजबूत पैरोकार भी नहीं है। यही वजह है कि उनके मुंह से निकलते ही आवाज दफन हो जाती है। जिम्मेदार सुन भी नहीं पाते हैं और अगुआ उसे सुनाने भी नहीं देना चाहते हैं।