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यूपी: वाराणसी के दशाश्वमेध में 9 अगस्त सन् 1942 में पहली बार चली गोलीबारी में चार हुए शहीद।

यूपी: वाराणसी के दशाश्वमेध में 9 अगस्त सन् 1942 में पहली बार चली गोलीबारी में चार हुए शहीद।


वाराणसी। ललकार दिया है गांधी बाबा ने कि अब और नहीं। या तो कुछ करो नहीं तो वतन के नाम पर दो बलिदान और शहीदी बाना ओढ़कर हंसते हंसते प्रयाण करो। नौ अगस्त 1942 की इस हुंकार के बाद समूचे देश के साथ ही बगावती मिजाज वाला शहर बनारस भी ताव खाए हुए है। क्या बच्चा क्या बूढ़ा क्या औरत-मर्द हर बनारसी अंग्रेजों भारत छोड़ो का मंत्र दोहराते हुए हाथ में तिरंगा उठाए हुए है। गली-कूचों से लगायत सड़क बाजार तक जुलूसों का तांता है। नेता गण जेलों में हैं तो क्या हुआ आज की तारीख में हर नागरिक स्वातन्त्रय का सिपाही है। देश का भाग्य विधाता है।

13 अगस्त 1942 खबर मिली है कि आज एक विशाल जुलूस दशाश्वमेध से उठकर टाउन हाल तक जाएगा। वहां होगी विशाल सभा और टाउन हाल पर तिरंगा फहराया जाएगा। गोधूलि ढलने को है पुलिस फोर्स ने भीड़ की जुटान और किसी तरह के जुलुसी अभियान की मोमानियत कर रखी है। फिर भी पुलिस वालों की आंख बचाकर सैकड़ों छात्र नौजवान घाट से लेकर बाजार तक ठीहा जमा चुके हैं। 

सूचना यह भी है कि बंगाली टोला की गलियों से होते हुए हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र अध्यापक भी जुलूस में शामिल होने आ रहे हैं। छोटी-छोटी गलियों से होकर आम नागरिक भी इस भीड़ में शामिल होते जा रहे हैं। शाम गहराते ही घाट की ओर से उठे भारत माता की जय व अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारों से आसमान थर्राने लगता है। कहीं थैली से तो कहीं कुर्ते की जेब से बाहर निकलकर हर हाथ मे तिरंगा फहराने लगा है। जैसे-जैसे जुलूस आगे बढ़ता जाता है, सनसनी और रोमांच का पारा भी लगातार ऊपर चढ़ता जाता है।

बता दें कि जुलूस की पहली कतार ज्यों ही डेढ़सी पुल के आगे आती है पूरी सड़क पुलिसिया संगीने छाती चली जाती है। उधर डेढ़सी के आगे तक मार्च कर चुके नौजवानों व पुलिस वालों के बीच रास्ता देने के लिए रार ठन जाती है। पुलिस का घेरा तोड़कर लोग आगे बढ़ते ही है कि पुलिस की बंदूकों के फायर खुल जाते हैं। गोलियों की पहली ही बाढ़ से अगली कतार से कई लोग धराशाई हो जाते हैं। हर तरफ भगदड़ का आलम है। 

लोग घायलों को उठाने आगे बढ़ते हैं पुलिस वाले फिर लाठियों के वार करते हैं। इस आपाधापी के बीच यह हाहाकारी सूचना आती है कि गोलियां तो दशियों को लगी हैं। किंतु सबसे आगे की कतार में जुलूस का नेतृत्व कर रहे काशी प्रसाद (पुत्र पनारू), विश्वनाथ (बैजू मल्लाह), हीरा लाल शर्मा (पुत्र राजा राम) व बैजनाथ प्रसाद मेहरोत्रा (पुत्र रामनाथ) आजादी के इस रण में खेत रहे हैं। एक दर्जन से अधिक घायलों को लोग लाद फांदकर अस्पताल भेज रहे हैं।

इस दिल दधलाऊ कांड के बाद भी बनारस वालों का मनोबल नहीं टूटा है। अल्बत्ता यह कह लें कि वर्षों से मन में घुमड़ रहा विद्रोह का लावा बाहर करने को एक ज्वालामुखी फूटा है। आधी रात बीत चुकी है पर टोले-मोहल्ले शहीदों की जयकारों से गुलजार है। हर तरफ जुनूनी समां हर ओर आजादी की ललकार है।