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गोरखपुर : बंधु सिंह का शहादत दिवस आज, गुरिल्ला युध्द से अंग्रेजों को किया था पस्त

गोरखपुर : बंधु सिंह का शहादत दिवस आज, गुरिल्ला युध्द से अंग्रेजों को किया था पस्त

गोरखपुर: देश के स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों में 'बाबू बंधू सिंह' एक ऐसा नाम है जिनके पराक्रम और गुरिल्ला युद्ध की मार से पूरे पूर्वांचल में अंग्रेजों की सियासत हिल गई थी. ऐसे वीर शहीद बंधू सिंह की आज याद का दिन है यानि कि उनकी शहादत का दिन है. आज ही के दिन यानि 12 तारीख को अंग्रेजी हुकूमत ने बंधु सिंह को गोरखपुर के अलीनगर चौक पर बरगद के पेड़ पर फांसी देकर उनके प्राणों की बलि ले ली. बाबू बंधू सिंह आज दुनिया में तो नहीं है लेकिन उन्होंने अपने पराक्रम, वीरता, सहास और युद्ध कौशल का जो इतिहास लोगों के बीच छोड़ा है उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. यही वजह है कि जब-जब 12 अगस्त आता है, भारत मां के इस लाल कि याद सबको आती ही है. लोग उनकी प्रतिमा पर इस दिन माल्यार्पण अर्पित कर उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. बाबू बंधू सिंह पर भारत सरकार डाक टिकट भी जारी कर चुकी है. प्रदेश की योगी सरकार भी बंधु सिंह के नाम पर शहीद स्मारक और पार्क बनाकर लोगों के जीवन में बंधू सिंह को आज भी जिंदा रखा है.

शहीद बंधू सिंह का संबंध क्रांतिकारी धरती चौरी चौरा के डुमरी रियासत से है, जिनका जन्म 1 मई 1833 को हुआ था. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में इनका नाम शुमार है. 1857 में उन्होंने अंग्रेजों की सत्ता को हिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. मंगल पांडे ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का जहां बिगुल फूंका था वहीं बाबू बंधू सिंह इसके सारथी बने थे. बिहार से आ रहे सरकारी खजाने को लूटकर बंधू सिंह ने लोगों में बांट दिया था. उन्होंने गोरखपुर कलेक्ट्रेट ऑफिस पर भी कब्जा कर लिया था. राप्ती नदी तट पर इन्होंने डेरा डालकर व्यापारिक गतिविधियों को भी रोक कर अंग्रेजों की नींद हराम कर दी थी.


अपनी रियासत को छोड़ बंधु सिंह अंग्रेजों से मुकाबला करने और उनके खिलाफ रणनीति बनाने के लिए जंगल में शरण लिए हुए थे. इस दौरान जंगल से गुजरने वाले अंग्रेज सिपाहियों को वह अपने गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से मार गिराया करते थे. वह अंग्रेजों का सर धड़ से अलग कर देते थे और जंगल में पिंडी रूप में स्थापित किए देवी मां को अर्पित कर दिया करते थे. यही वजह है कि जब अंग्रेजों ने फांसी देने के लिए उन्हें फंदे पर लटकाए तो फंदा 6 बार टूट गया. अंत में बंधू सिंह ने खुद मां भगवती का आह्वान किया और अपने पास बुलाने का आग्रह किया. तब जाकर सातवीं बार बंधू सिंह को फांसी देने में अंग्रेज कामयाब हो पाए. शहादत की तारीख थी 12 अगस्त 1858.

यही नहीं, बंधु सिंह के पराक्रम को बच्चों तक पहुंचाने के लिए योगी सरकार ने कक्षा 6 के पाठ्यक्रम में उनकी वीरगाथा की कहानी को जगह दिया है. मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय का खेल स्टेडियम भी बाबू बंधू सिंह के नाम पर स्थापित है. जिस देवी मां के बाबू बंधू सिंह भक्त थे उस स्थान को तरकुलहा देवी मां के नाम से जाना जाता है. जिसे योगी सरकार सजाने संवारने में तो जुटी है ही. यहां भी बाबू बंधू सिंह की प्रतिमा और संग्रहालय बनाकर उनकी शौर्य गाथा से यहां आने वाले लोगों को परिचित कराएगी.