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यूपी: मऊ से शासन को भेजे जा रहे सामुदायिक शौचालयों के फर्जी आंकड़ें, योजनाओं को पूरा करने में चल रहा खेल।

यूपी: मऊ से शासन को भेजे जा रहे सामुदायिक शौचालयों के फर्जी आंकड़ें, योजनाओं को पूरा करने में चल रहा खेल।


मऊ। मुख्यमंत्री योगी के ड्रीम प्रोजेक्ट सामुदायिक शौचालय व पंचायत भवन निर्माण में जनपद प्रदेश की सूची में पिछले पायदान पर कायम है। इधर शनिवार को पंचायत राज्यमंत्री के जनपद भ्रमण को लेकर धड़ाधड़ फर्जी आंकड़ों के जरिए निर्माण कार्यों को पूर्ण दिखाने की होड़ मची है। आगे से रंगाई-पोताई कर सामुदायिक शौचालयों व पंचायत भवनों को पूर्ण दिखाकर शासन को रिपोर्ट भेजी जा रही है। वहीं स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी शौचालय हस्तांतरित नहीं किए जा रहे।

वहीं जनपद के कुल 671 ग्राम पंचायतों में शौचालयों का निर्माण होना है। अभी तक जिला पंचायत राज कार्यालय के आंकड़ों पर नजर डाले तो जनपद में 533 सामुदायिक शौचालय पूर्ण हो चुके हैं। इसमें 428 का जीयो टैग भी हो गया है परंतु 300 शौचालयों को ही स्वयं सहायता समूहों को हस्तांतरित किया गया। जबकि प्रदेश सरकार का जोर है कि निर्मित सभी शौचालयों को हस्तांतरित कर समूह की महिलाओं को रोजगार दिया जाए। 

वहीं इसकी गवाही दे रहे रानीपुर के पड़री ग्राम पंचायत व कोपागंज के देवकली विशुनपुर में अर्ध निर्मित सामुदायिक शौचालय। इन शौचालयों में न तो दरवाजे लगे हैं और नहीं प्रकाश व पानी की व्यवस्था है परंतु एडीओ पंचायतों की फर्जी रिपोर्टिंग पर इन्हें जीयो टैग कर दिया गया है। वहीं 310 पंचायत भवनों के सापेक्ष 170 जीयो टैग किए गए। इधर प्रदेश सरकार ने सभी योजनाओं को पूर्ण करने के लिए 30 नवंबर तक की तिथि निर्धारित की है।

बता दें कि बीते एक वर्ष पूर्व जनपद के ग्राम पंचायतों में लागू क्लस्टर में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई। इसमें अपने चहेतों को जिला पंचायत राज विभाग ने जहां 15-16 हजार की आबादी का क्लस्टर बनाकर दिया, तो दूसरों को मात्र छह से सात हजार की आबादी के गांव मिले। मुहम्मदबाद गोहना के पड़ेरूआ क्लस्टर की आबादी मात्र सात हजार है। 

जबकि इटौरा चौबेपुर का क्लस्टर 16 हजार की आबादी पर बनाया गया। इतना ही नहीं चिह्नित क्लस्टरों में दूर-दूर के बड़े-बड़े गांव शामिल किए गए। जबकि शासन की मंशा थी कि एक तरफ के लगभग 10 हजार की आबादी वाले ग्राम पंचायतों का क्लस्टर बने। ताकि एक ग्राम सचिव अगल-बगल के गांवों को देख सके।

ब्लाकों में ग्रामीण विकास के लिए वैसे तो कागजों में खंड विकास अधिकारी ही उत्तरदाई हैं परंतु जनपद में हुए क्लस्टर आवंटन के बाद बीडीओ के हाथ से इसकी डोर छूट चुकी है। इसका कारण है कि जनपद स्तर से डीपीआरओ एक-एक सचिवों काे क्लस्टर आवंटित कर दिए। इसके लिए खंड विकास अधिकारियों से प्रस्ताव तक नहीं लिए गए। 

वहीं ब्लाकों में खराब प्रगति वाले सचिवों को हटाने का भी अधिकार बीडीओ के पास नहीं रहा। जबकि ब्लाक स्तर पर बीडीओ को ही पता है कि कौन ग्राम सचिव कैसा है। इसका खामियाजा रहा कि सामुदायिक शौचालय, पंचायत भवन आदि योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाईं।