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यूपी: वाराणसी के कोनिया क्षेत्र समेत अन्य क्षेत्रों में लोगो के घरों में घुसा बाढ़ का पानी, जिससे आमजन लोगों को हुई बड़ी परेशानी।
वाराणसी। कोनिया क्षेत्र के विजयीपुरा गांव में आए हुए बाढ़ का पानी लोगों के घरों घुस गया है। जिससे आम लोगों को बहुत दिक्कत सामना करना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं।
बता दें कि इससे पहले पूर्व में साल 2013 में भी इसी तरह लोगो को परेशानी का सामना करना पड़ा था। वहीं क्षेत्र के कुछ गणमान्य व्यक्ति का मानना हैं कि अगर इसी तरह पानी बढ़ता रहा तो एक न एक दिन लोगों को अपने घरों को छोड़ कर दूसरी जगह पलायन करने को मजबूर हो जायेगे।
बता दें कि वहीं दूसरी तरफ वरुणा किनारे बसी बस्तियां कोनिया, दीनदयालपुर, नक्खीघाट, पुलकोहना में दो सौ से अधिक मकान पानी से घिर चुके हैं। शुक्रवार की सुबह से लोगों अपने जरूरी सामानों के साथ पलायन कर रहे थे। तिनपुलवा के नीचे से होते हुए वरुणा में गिरने वाले नाले के दोनों ओर बने अधिकतर मकानों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर चुका है। मुन्नी, अरशद, वकील, इरफान, मो. मुश्ताक, असलम, प्रमोद, अनिल, कमलेश, असलम दर्जी, रमजान, इरफान, बाबू ने अपना घर छोड़कर दूसरी जगह शरण ली है।
गंगा के बढ़ते जलस्तर से सामने घाट इलाके में रहने वाले लोगों को भी अब डर सताने लगा है। जलस्तर में अगर चार से पांच फुट की और बढ़ोत्तरी हुई तो क्षेत्र की मारुति नगर कॉलोनी और गायत्री नगर कॉलोनी के डेढ़ सौ से अधिक मकानों तक बाढ़ का पानी पहुंच जाएगा। कॉलोनियों में रहने वालों की मुश्किलें भी बढ़ जाएंगी। जलस्तर बढ़ने से नगवा नाले का पानी भी उल्टा बहने लगा है। कुछ कालोनियाें में सीवर ओवरफ्लो करने लगा है।
वहीं गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह के लिए मुसीबतें भी बढ़ गई हैं। मणिकर्णिका घाट पर जहां छत पर शवदाह हो रहा है। वहीं हरिश्चंद्र घाट के ऊपर गलियों में शवदाह शुरू हो चुका है। गंगा की सभी घाटों का संपर्क पूरी तरह से समाप्त हो गया है। ऐसे में हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका दोनों ही घाटों पर लोगों को शवदाह करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।
वहीं 2013 में अचानक घुस गया था बाढ़ का पानी
वरुणा किनारे की बस्तियों में रहने वालों को अब बाढ़ का खतरा सताने लगा है। उनका कहना है कि 2013 में आधी रात में बाढ़ का पानी अचानक उनके घरों में घुस गया था। अचानक पानी घुसने से घर-गृहस्थी का सामान बर्बाद हो गया था। बस्तियों में रहने वालों को पता ही नहीं है कि क्षेत्र में कहीं बाढ़ राहत चौकी उनके लिए बनाई गई है या नहीं।