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यूपी: बलिया में बागी बलिया ने दिया था संदेश, अब नहीं रहेंगे अंग्रेजों के अधीन।
बलिया। देश के लिए आजादी से बड़ा काेई और दिन नहीं हो सकता है। यह दिन है वीर जवानों को याद करने का, उनकी यादों में दीप प्रज्ज्वलित करने व देश भक्ति गीत गुनगनाने का। साथ ही सभी को यह बताने का कि यही वह दिन है जब हम आजाद हुए। उससे पहले हमारी स्थिति क्या थी, उसे आज के बच्चे किताबों में पढ़ कर या किसी से सुनकर जानते हैं।
वहीं कल्पना करें उन दिनों उनकी हालत क्या होगी। जिनके घरों के लाल देश की आजादी के लिए जान की बाजी लगाकर करो या मरो का नारा दिलों में लिए पूरी तरह बागी बन गए थे। उनके बलिदानों की बदौलत ही हमें आजादी मिली। जब 15 अगस्त 1947 को पहली बार देश के कोने-कोने में तिरंगा लहराया जा रहा था, तब के समय में बलिया का माहौल कैसा था, उस बारे में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और बुजुर्गों से बात करने पर आज भी उनका मन आजादी के उन दिनों की यादों की ओर बढ़ जाता है।
बता दें कि निराला नगर निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम विचार पांडेय 91 वर्ष की अवस्था में पहुंच चुके हैं। आजादी की चर्चा पर उनके चेहरे पर तुरंत खुशी के भाव उभर आए। उन्होंने बताया कि 1947 में 15 अगस्त के दिन बलिया का माहौल काफी खुशनुमा था। घर-घर के लोग तिरंगा लहरा रहे थे।
सभी स्वतंत्रता संगाम सेनानी अपने-अपने क्षेत्र से टोली में देश को समर्पित नारे लगाते हुए बलिया पहुंच रहे थे। विशाल जुलूस निकाला गया था। तब के बाद जब भी यह दिन आता है, मन खुशी से झूम उठता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माध्यम से आज देश तरक्की की राहों पर है। इसको लेकर मन खुश है।
वहीं बैरिया तहसील के भाेजापुर गांव निवासी वीरेंद्र कृष्ण मिश्र 96 वर्ष की अवस्था में पहुंच चुके हैं, लेकिन आजादी के दिनों की बात छेड़ने पर वह उठकर बैठ गए। बताने लगे कि उन दिनों दिलों के अंदर करो या मरो का नारा समाहित था। बागी बलिया ने तो 1947 से पांच साल पहले ही देश को यह संदेश दे दिया था कि अब अंग्रेजों के अधीन नहीं रहेंगे। पूरे जिले में आंदोलन की आग जल रही थी।
बैरिया थाने पर जब हमला किया गया और गोली चलने लगी तब हम एक नीम के पेड़ के पास छिपकर हमला बोल रहे थे। तब लगभग 25 हजार से भी ज्यादा लोग बैरिया पहुंचे थे। 1947 में जब देश का आजाद घोषित किया गया और 15 अगस्त को हर गांव में झंडा फहराया जा रहा था, तब मन को जाे खुशी मिली वैसी खुशी किसी अन्य त्योहार पर कभी नहीं मिलती।
बैरिया तहसील के ही बहुआरा गांव के निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुर्दशन सिंह की पत्नी रामप्यारी देवी बताती हैं कि जब 1947 में देश आजाद हुआ, तभी हमारी शादी हुई थी। उससे पहले आजादी पाने के लिए जगह-जगह मारपीट, गोलीबारी की घटनाओं से मन घबराने लगता था।
मेरे पति हमेशा बैरिया में थाने पर हमले के दौरान जांघ में लगी गोली के बारे में बताया करते थे। 15 अगस्त 1947 का दिन तो हर किसी के लिए खुशनुमा दिन था। हर तरफ तिरंगा लहरा रहा था। गांवों में महिलाएं भी भोजपुरी में देश भक्ति गीतों से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सम्मान में गीतों को गाते हुए उनका स्वागत कर रहीं थीं।