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यूपी: वाराणसी में हैं 350 लट्टू के कारीगर, रोजाना बिकते हैं एक लाख से अधिक लट्टू
वाराणसी। गांव में रहते हुए बचपन में लट्टू से नाता न जुड़े कदाचित ऐसा किसी बच्चे के साथ नहीं होता होगा। रस्सी घुमा के लट्टू के ऊपर लट्टू का गुजा मारने का आनंद बचपन में जो नहीं लिया वो आजीवन पछताता है। कमोबेश इस मजेदार लट्टू खेल के आकर्षण के पीछे वाराणसी में बन रहे लट्टू की संख्या ये दर्शाने के लिए काफी है कि भारत में सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं पूरे भारत में वाराणसी से लट्टू की मांग है।
वहीं जानकारी के मुताबिक लट्टू का उपयोग बड़ी मात्रा में पूजापाठ के लिए भी किया जा रहा है। बाकी खेल से तो सीधे सीधे जुड़ा ही है। खास बात यह है कि वाराणसी के कारीगरों की रोजीरोटी इसी उद्योग पर पूरी तरह निर्भर है। कुछ कारीगरों की मानें तो उन्हें ताज्जुब तो है कि आखिरकार रोजाना लगभग एक लाख निर्मित लट्टू किस उपयोग में किया जाता है। इसके लिए कुछ कारीगर तो वाराणसी से बाहर भी ये देखने के लिए गए कि गांवों या कस्बों में कितने बच्चे ऐसे हैं जिनके हाथों में लट्टू है। हालांकि, इसकी जानकारी उन्हें नहीं मिल सकी। बल्कि अब तो वे कारीगर कहते हैं कि भगवान ही इसकी खरीदारी कराते हैं, जिससे हमारी जीविका आसानी से चलती है। वाराणसी के लकड़ी के खिलौना की देश विदेश में प्रसिद्धि है। सरकार भी ऐसे उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए विशेष सुविधाएं दे रही है।
वहीं लट्टू एक प्रकार का खिलौना है, जिसमें सूत लपेट कर झटके से खींचने पर वह घूमने या नाचने लगता है। इसके बीच में जो कील गड़ी होती है, उसी पर लट्टू चक्कर लगाता है। यह लट्टू के आकार की गोल रचना वाला होता है। लट्टू लकड़ी का बना होता है। लट्टू को अक्सर लड़के हाथों पर रस्सी द्वारा नचाते हैं और फिर फर्श पर फेंकते हैं।
बता दें कि लट्टू कारोबारी अमरनाथ बताते हैं कि वाराणसी में 500 कारीगर हैं। 350 कारीगर लट्टू बनाते हैं। एक कारीगर एक दिन में 300 लट्टू बनाता है। इसका काम छह माह चलता है। इसकी पूरी खपत कहाँ होती ये नहीं पता। हमें लगता है भगवान ही खरीदकर ले जाते हैं। वहीं डीआईसी उपयुक्त वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि वाराणसी में लकड़ी के खिलाने में सिंधौरा और लट्टू विशेष शामिल हैं। यहां इसका निर्माण बड़ी मात्रा में किया जाता है। इसे पूर्वांचल से लेकर बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु तक भेजा जाता है।