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कोयम्बटूर से काशी नगरी पधारे मंगलमूर्ति गजानन, दक्षिण भारतीय शिल्प में ढली अनूठी प्रतिमा

कोयम्बटूर से काशी नगरी पधारे मंगलमूर्ति गजानन, दक्षिण भारतीय शिल्प में ढली अनूठी प्रतिमा

वाराणसी । आम चलन से अलग विनायक पूजन पर्व में पूरे नौ दिनों के गणेश नवरात्र महोत्सव का आयोजन करने वाली नगर की दाक्षिणात्य बस्ती (मानसरोवर से हनुमान घाट तक) इस बार यह उत्सव नवेले गजानन के साथ मनाएगी। इस विशिष्ट अवसर के लिए बीते दो वर्षों से कोयम्बटूर से कुशल शिल्पियों द्वारा गढ़ी जा रही एक क्विंटल से भी अधिक भार वाली पंच धातु की यह दिव्य प्रतिमा गुरुवार की देर रात सड़क मार्ग से वाराणसी पहुंचाई गई। महोत्सव के पारंपरिक आयोजन स्थल श्रीराम तारक आंध्र आश्रम में स्थापना से पूर्व शास्त्रीय रीति के अनुसार आश्रम के द्वार पर भक्तों ने प्रबंध न्यासी वीवी सुंदर शास्त्री की अगुवाई में वैदिक मंत्रों के सस्वर वाचन से गणपति का स्वागत अभिनन्दन किया। तात्कालिक तौर पर मनोहारी झांकी वाली इस मूर्ति को आश्रम के इष्ट देव प्रभु श्रीराम के पार्श्व में अस्थायी आसन दिया गया है। वीवी सुंदर के अनुसार नवरात्र महोत्सव के बाद कलश के सांकेतिक विसर्जन के उपरांत इस प्रतिमा को आश्रम के प्रथम तल पर निर्मित देवालय में नित्य पूजित विग्रह के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया जाएगा