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यूपी: जौनपुर के डीएम, सीएमओ और सीएमएस समेत पांच पर हत्या का हुआ मामला दर्ज।

यूपी: जौनपुर के डीएम, सीएमओ और सीएमएस समेत पांच पर हत्या का हुआ मामला दर्ज।


जौनपुर। दीवानी न्यायालय के अधिवक्ता राम सकल यादव की दरखास्त पर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) ने जिलाधिकारी, मुख्य चिकित्साधिकारी, जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक व डाक्टर समेत पांच पर हत्या का वाद दर्ज किया है। अदालत ने शहर कोतवाली पुलिस से 19 सितंबर को रिपोर्ट तलब की है। मामला चार माह पूर्व अधिवक्ता की कोरोना संक्रमित बहन की आक्सीजन के अभाव में मौत होने का है।

बता दें कि मडिय़ाहूं कोतवाली क्षेत्र के खिजिरपुर गांव निवासी राम सकल यादव ने न्यायालय में धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत प्रार्थना पत्र दिया था। इस धारा के तहत प्रविधान है कि यदि पुलिस तहरीर के बाद भी प्राथमिकी दर्ज नहीं करती तो एक आवेदन न्यायिक मजिस्ट्रेट या मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट को भेजा जा सकता है जिसमें पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की जा सकती है। वादी के मुताबिक उनकी बहन चंद्रावती देवी कोरोना संक्रमित हो गई थीं। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। जिला प्रशासन के सख्त निर्देश के कारण प्राइवेट अस्पतालों ने भर्ती करने से मना कर दिया। 29 अप्रैल को शाम सात बजे चंद्रावती को जिला चिकित्सालय के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया गया। उस दिन उसे आक्सीजन दिया गया। दूसरे दिन बेड नंबर सात पर शिफ्ट कर दिया गया। सूचना देने पर भी सीएमएस ने चंद्रावती देवी को आक्सीजन उपलब्ध नहीं कराया, जबकि आक्सीजन उपलब्ध था।

वहीं सिटी स्कैन के लिए बाहर ले जाने की बात कहने पर फिर बेड न देने की धमकी दी। ऐसे में चंद्रावती का आक्सीजन लेवल घटकर 60 हो गया। सात की जगह सिर्फ दो इंजेक्शन लगाए गए। हेल्पलाइन नंबरों से भी संपर्क करने का कोई नतीजा नहीं निकला। आखिरकार तीन मई को चंद्रावती ने दम तोड़ दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि जिलाधिकारी, सीएमओ, सीएमएस व जिला अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डाक्टर व नर्स रसूखदार लोगों के संक्रमित मरीजों को ही आक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराते थे।

वहीं अक्सर सामान्य मरीज अभाव में दम तोड़ देता था। जिला प्रशासन की गाइडलाइन के कारण प्राइवेट हास्पिटल भर्ती नहीं कर रहे थे। ऐसी दशा में किसी भी कोरोना संक्रमित के इलाज की संपूर्ण जिम्मेदारी जिलाधिकारी, सीएमओ व सीएमएस पर थी। उन्होंने डाक्टरों की लापरवाही का वीडियो व अन्य साक्ष्य कोतवाल व एसपी को उपलब्ध कराए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। तब वादी ने न्यायालय की शरण ली।