Headlines
Loading...
यूपी: वाराणसी में गंगा में घातक नत्रजन नियंत्रित करेंगी मछलियां, रोहू, कतला और मृगल को छोड़ने की तैयारी।

यूपी: वाराणसी में गंगा में घातक नत्रजन नियंत्रित करेंगी मछलियां, रोहू, कतला और मृगल को छोड़ने की तैयारी।


वाराणसी। जल से ही जीवन है। यह कैसे निर्मल रहे इसकी कोशिश हजारों सालों से इंसान करता तो आया, लेकिन भौतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के चलते इसका मौलिक संतुलन बिगड़ गया। आज हालात ये हैं कि दुनिया में निर्मलता के लिए प्रसिद्ध गंगा ही प्रदूषित हो गई। अनेकों बीमारियों ने जन्म लिया। ऐसे हालात में गंगा में नत्रजन प्रदूषकों को कम करने के लिए अस्सी घाट पर तीन लाख मछलियां छोड़ी जाएंगी। इसके साथ ही देश की कई नदियों में महीने के अंत तक मछलियां छोड़ी जाएंगी।

वहीं गंगा एक्शन प्लान के तहत किए गए प्रयासों के बाद भी गंगा का प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है। ऐसे में बचे प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिए मछलियां छोड़ी जाएंगी। ये मछलियां नत्रजन यानी नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करेंगी। दरअसल, 40 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में मौजूद औसत 1500 किलो मछलियां एक मिग्रा प्रति लीटर नाइट्रोजन वेस्ट को नियंत्रित करती हैं। यूपी के बुलंदशहर के पास अनूपशहर से लेकर पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के अंतिम छोर तक हुए आकलन के मुताबिक वर्तमान में गंगा नदी में मानक के विपरीत 500 किलो ही मछलियां हैं।

बता दें कि मत्स्य विभाग के उपनिदेशक एसके रहमानी बताते हैं कि घरेलू प्रदूषण यानी बाथरूम के पानी व सीवरेज नदी में पहुंचकर एक मिग्रा प्रति लीटर नाइट्रोजन बढ़ाता होता है। नदी में नाइट्रोजन 20-30 मिग्रा प्रति लीटर होना चाहिए। इससे ऊपर 100 मिग्रा प्रति लीटर या इससे अधिक नाइट्रोजन की मात्रा जीवन के कई हिस्सों को प्रभावित करती है। इसकी मात्रा बढ़ने से मछलियों की नेस्टिंग जाम हो जाती है। मछलियां अंडे नहीं दे पातीं। लारवा भी नहीं पनपते हैं। यही नहीं इससे मछलियों की प्राकृतिक क्षमता भी प्रभावित हुई है।

वहीं उपनिदेशक एसके रहमानी ने बताया कि सरकार की भी कोशिश है कि मछलियों के जरिए नदियों में प्राकृतिक छनन (नेचुरल फिल्ट्रेशन) का कार्य शुरू हो जाए। इसका उदाहरण है वन विभाग द्वारा अस्सी घाट के पास के हिस्से को संरक्षित घोषित करने के बाद से मछलियां ज्यादा हलचल करती दिखती हैं। मछलियों के बढ़ने से अन्य जलीव जीवों में बढ़ोतरी होगी और प्राकृतिक छनन ज्यादा होगा। इससे नदी में प्रदूषण कम बढ़ेगा।