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यूपी: वाराणसी महादेव की नगरी काशी में विघ्न विनाशक हर्ता की हो रही पूजा।
वाराणसी। पंचदेवों में प्रमुख और प्रथम पूज्य विघ्न विनाशक गणेश जी का प्राकट्य भाद्र शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न में हुआ था। इस दिन को वैनायकी वरद् गणेश चतुर्थी कहा जाता है और लोकमानस में उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि गुरुवार की रात 2.15 बजे लग गई जो शुक्रवार की मध्यरात्रि 12:12 बजे तक रहेगी। अत: शुक्रवार को गणपति देव के जन्मोत्सव के मान विधान के तहत गणेश चतुर्थी मनाई जा रही हैं। मंदिरों में प्रभु की झांकी सजी तो घरों में व्रत पूर्वक पूजन-अर्चन किया गया। अलग-अलग संस्थाओं की ओर से विभिन्न स्थानों पर गणेशोत्सव मनाया जा रहा है। हालांकि इस बार कहीं इसका स्वरूप आफलाइन तो आनलाइन रहेगा।
वहीं मानसरोवर स्थित श्रीराम तारक आंध्र आश्रम में इस बार श्रीगणेश नवरात्र महोत्सव के लिए गणेश जी की पंच धातु की प्रतिमा तमिलनाडु के कुंबकोणम से बनवाकर मंगाई गई है। इसका गुरुवार को वेद मंत्रों के बीच शुद्धिकारण व पुण्यावचन किया गया। जलाधि वासम, पुष्पाधी वासम, पंचामृत वासम के विधान पूरे किए गए। इसमें वीवी सीताराम धरनीजा दंपती यजमान थे। संयोजन आश्रम के मैनेजिंग ट्रस्टी वीवी सुंदर शास्त्री ने किया। तिथि विशेष पर शुक्रवार को नौ दिनी पूजन -अनुष्ठान शुरू होंगे। इसके अलावा नूतन बालक गणेशोत्सव समाज सेवा मंडल का आयोजन सात दिवसीय होगा। इसमें दयाशंकर मिश्र दयालु मुख्य अतिथि होंगे तो अध्यक्षता लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता संजय गोरे करेंगे। अगस्त्यकुंडा स्थित शारदा भवन में गणेशोत्सव के तहत पूजन-अर्चन तो किए जाएंगे लेकिन शोभायात्रा समेत सामूहिक आयोजन नहीं किए जाएंगे। बड़ा गणेश समेत समस्त गणपति मंदिरों में प्रभु की भव्य झांकी सजाई गई हैं।
बता दें कि विख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार भगवान गणेश के प्राकट्य को प्राय: सभी प्रदेशों में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में बड़े धूमधाम से चतुर्थी से गणेशोत्सव आरंभ होता है। तमिलनाडु में वैनायकी गणेश चतुर्थी के रूप में तो बंगाल में इसे सौभाग्य चतुर्थी के रूप में मनाते हैं। तिथि विशेष पर व्रत की विशेष महत्ता है। भगवान के जन्मोत्सव के उपरांत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन का विधान है। नैवेद्य में मोदक लड्डू, ऋतुफल, दूर्वा के साथ अर्पित करने के साथ गणेश सहस्रनाम, गणेश चालीसा, गणेश मंत्र आदि का पाठ कर आराधना करनी चाहिए। इससे भगवान व्रतियों एवं भक्तों को विघ्न-बाधा से निवृत्ति का आशीर्वाद देते हैं।
वहीं शास्त्रों के अनुसार भाद्र शुक्ल चतुर्थी के चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है। टोटका है कि यदि किसी ने इस चतुर्थी के चंद्र को देख लिया तो कलंक निवारण के लिए दूसरे के घर पर चार-पांच ढेला फेंकने या फिर स्यंतक कथा श्रवण का लोकाचार है। इसीलिए इस चतुर्थी को लोकमानस में ढेलहिया चौथ भी कहा जाता है। इस बार चंद्रास्त 8.32 बजे रात होगा।