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भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने वाले इस डॉक्टर को खोज के बाद करनी पड़ी आत्महत्या, 2002 में मिली काम को मान्यता

भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बनाने वाले इस डॉक्टर को खोज के बाद करनी पड़ी आत्महत्या, 2002 में मिली काम को मान्यता

नॉलेज ।आज ही के दिन 1978 में भारत में पहले टेस्ट ट्यूब बेबी ( Test Tube Baby) का सफल परीक्षण किया था. कोलकाता के डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय ने पहली बार ऐसा करने में सफलता हासिल की थी. इसे दुनिया के दूसरे और भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल परीक्षण माना जाता है. लेकिन उस दौर में टेस्ट ट्यूब बेबी की कल्पना करना भी लोगों के लिए असंभव सा था. देश भर के डॉक्टर्स और सरकार ने उनके परीक्षण को अवैध करार दिया और साथ ही उनकी इस खोज को मानने से इनकार कर दिया था.

लीक से हटकर चलने की राह आसान नहीं होती. यहां कदम-कदम पर कठिनाइयां आती हैं. ऐसा ही कुछ डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय के साथ हुआ. टेस्ट ट्यूब बेबी को लेकर लोग उनका मजाक उड़ाने लगे. यही नहीं उस वक्त बंगाल सरकार ने भी उन्हें बतौर डॉक्टर उनके पद से हट जाने की बात कही थी. इन सब बातों से परेशान होकर डॉक्टर सुभाष ने 1981 में आत्महत्या कर ली थी. डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय एक ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति थे जो तब तक अपमानित हुए जब तक उन्होंने अपनी जान लेने का फैसला नहीं किया.

3 अक्टूबर 1978 को भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी
डॉक्टर मुखोपाध्याय ने अपना पूरा जीवन टेस्ट ट्यूब बेबी को आसान तरीके से बनाने की कोशिश में बिताया. वह अपने लक्ष्य तक पहुंचने में सफल रहे, लेकिन इसके लिए उन्हें कभी पहचान नहीं मिली. उन्होंने 3 अक्टूबर 1978 को भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बनाया. ये उपलब्धि हासिल करने वाले वो दुनिया के दूसरे व्यक्ति थे. IVF टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर एशिया में पैदा हुआ पहला बच्चा दुर्गा (कनुप्रिया अग्रवाल) थी. उनका जन्म ब्रिटेन में आईवीएफ के माध्यम से जन्म लेने वाले दुनिया के पहले बच्चे के 67 दिन बाद हुआ था.


डॉक्टर मुखोपाध्याय लगातार हो रही आलोचना और मानसिक उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं कर सके. और अंत में, उन्होंने 1981 में सुसाइड कर लिया. कई सालों बाद बाद उनके सहयोगी डॉ सुनीत मुखर्जी) ने डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की डायरी डॉ. टी.सी. आनंद कुमार को दी. डॉ. टी.सी. आनंद ने IVF का उपयोग कर एक टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिया था. डॉ. कुमार भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) में प्रजनन अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक थे, उनके प्रयासों के कारण ही 2002 में ICMR ने पहली बार डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय के काम को मान्यता दी.