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कोर्ट का आदेश: बिना धूम्रपान किए भी होता है कैंसर, सिगरेट से बीमारी के सबूत नहीं, बीमा कंपनी को करना होगा भुगतान l
गुजरात l एक बीमा कंपनी (Insurance Company) ने एक व्यक्ति के दावे को ये कहते हुए खारिज कर दिया की वो सिगरेट (Cigarettes) पीता है और इस वजह से उसे कैंसर (Cancer) हुआ है. कैंसर पीड़ित की पत्नी ने उपभोक्ता शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र के साथ मिलकर अहमदाबाद उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में इसे चुनौती दी. कोर्ट ने भी कैंसर पीड़ित के हक में फैसाला सुनाया. इसी के साथ कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई रोचक टिप्पणियां भी की.
अहमदाबाद की एक उपभोक्ता कोर्ट ने बीमा कंपनी को फेफड़ों के कैंसर के इलाज पर खर्च की गई राशि की प्रतिपूर्ति करने का आदेश दिया है. बीमा कंपनी ने यह कहते हुए दावे का भुगतान करने से इनकार कर दिया था कि रोगी धूम्रपान का आदी था, जिसके कारण उसे यह बीमारी हुई.
कोर्ट ने कहा कि उपचार के कागजात पर ‘एडिक्शन स्मोकिंग’ लिखे होने के अलावा ये साबिक करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि रोगी को फेफड़े का कैंसर उसकी धूम्रपान की लत के कारण हुआ. कोर्ट ने कहा कि ये बीमा कंपनी के लिए उसके दावे को अस्वीकार करने का आधार नहीं बन सकता है और यह भी कहा कि जो लोग धूम्रपान नहीं करते हैं, उन्हें भी फेफड़ों का कैंसर होता है.
बीमा कंपनी ने बीमा धारक आलोक कुमार बनर्जी के एक निजी अस्पताल में ‘फेफड़े के एडेनोकार्सिनोमा’ या फेफड़ों के कैंसर के इलाज पर किए गए 93,297 रुपए खर्च के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि वह धूम्रपान का आदी था, जैसा कि उनके इलाज के दस्तावेजों में उल्लेख किया गया था. बनर्जी की पत्नी स्मिता ने उपभोक्ता शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र के साथ मिलकर अहमदाबाद उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में इसे चुनौती दी थी.
आयोग के अध्यक्ष केएस पटेल और सदस्य केपी मेहता ने कहा कि मामला अगस्त 2016 का है. इसलिए याचिकाकर्ता को सात प्रतिशत सालाना ब्याज दर के साथ अस्पताल खर्च चुकाया जाए. उन्हें तीन हजार रुपए मानसिक परेशानी और 2 हजार रुपए कानून खर्च के लिए भी दिए जाएं. इसके लिए कंपनी को 30 दिन का समय दिया गया है.