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Pegasus Snooping : सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच की मांग पर कहा- गठित होगी समिति

Pegasus Snooping : सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच की मांग पर कहा- गठित होगी समिति



नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय, पेगासस जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिकाओं पर आज फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मुद्दे में केंद्र द्वारा कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है. इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका कार्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एक तीन सदस्यीय समिति का हिस्सा बनने के लिए विशेषज्ञों को चुना गया है. तीन सदस्यीय समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरवी रवींद्रन करेंगे. अन्य सदस्य आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने समिति को आरोपों की पूरी तरह से जांच करने और अदालत के समक्ष रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है.


इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा, शुरू में जब याचिकाएं दायर की गईं तो अदालत अखबारों की रिपोर्टों के आधार पर दायर याचिकाओं से संतुष्ट नहीं थी, हालांकि, सीधे पीड़ित लोगों द्वारा कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं. कुछ याचिकाकर्ता पेगासस के प्रत्यक्ष शिकार हैं; ऐसी तकनीक के उपयोग पर गंभीरता से विचार करना केंद्र का दायित्व है.कोर्ट ने कहा, हम सूचना के युग में रहते हैं और हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है, लेकिन न केवल पत्रकारों के लिए बल्कि सभी नागरिकों के लिए निजता के अधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पेगासस मामले में झूठ की जांच और सच्चाई की खोज के लिए समिति का गठन किया गया है. निजता के अधिकार के उल्लंघन की जांच होनी चाहिए. भारतीयों की निगरानी में विदेशी एजेंसी की संलिप्तता गंभीर चिंता है.13 सितंबर को मामले पर फैसला रखा था सुरक्षितबता दें कि प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने 13 सितंबर को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह केवल यह जानना चाहती है कि क्या केंद्र ने नागरिकों की कथित जासूसी के लिए अवैध तरीके से पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया या नहीं?पीठ ने मौखिक टिप्पणी की थी कि वह मामले की जांच के लिए तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन करेगी और इजराइली कंपनी एनएसओ के सॉफ्टवेयर पेगासस से कुछ प्रमुख भारतीयों के फोन हैक कर कथित जासूसी करने की शिकायतों की स्वतंत्र जांच कराने के लिए दायर याचिकाओं पर अंतरिम आदेश देगी.


शीर्ष अदालत द्वारा समिति गठित करने संबंधी टिप्पणी केंद्र के बयान के संदर्भ में अहम है जिसमें उसने कहा था कि वह स्वयं इस पूरे मामले को देखने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन करेगी.उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वह अगले कुछ दिनों में इस बारे में अपना आदेश सुनायेगी. न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि अगर सरकार दोबारा विस्तृत हलफनामा देना चाहती है तो मामले का उल्लेख करें.पीठ ने कहा था कि वह केवल केंद्र से जानना चाहती है जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर विस्तृत हलफनामा जमा करने के प्रति अनिच्छा जताई है कि क्या पेगासस का कथित इस्तेमाल व्यक्तियों की जासूसी करने के लिए किया गया, क्या यह कानूनी तरीके से किया गया.पत्रकारों और कुछ अन्य लोगों द्वारा पेगासस विवाद में निजता के हनन को लेकर जताई गई चिंता पर शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी रुचि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी विस्तृत जानकारी में नहीं है.वहीं, केंद्र इस रुख पर कायम था कि सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया या नहीं इसको लेकर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को अनिच्छुक है. केंद्र का कहना था कि यह सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं है और न ही यह 'राष्ट्रीय सुरक्षा के हित' में है.गौरतलब है कि शीर्ष अदालत इस संबंध में दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें वरिष्ठ पत्रकारा एन राम और शशि कुमार के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका भी याचिका शामिल है. इन याचिकाओं में कथित पेगासस जासूसी कांड की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है.दिलचस्प है कि विगत 19 जुलाई को कांग्रेस ने दावा किया था कि इजरायली स्पाईवेयर पेगासस (Israeli Spyware Pegasus) का उपयोग करके पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, कई अन्य विपक्षी नेताओं, मीडिया समूहों और अलग अलग क्षेत्रों के प्रमुख लोगों की जासूसी कराई गई है. इसलिए इस मामले में गृह मंत्री अमित शाह को इस्तीफा देना चाहिए और इस्तीफा न दें, तो उन्हें बर्खास्त करना चाहिए.आरोपों के जवाब में सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पेगासस सॉफ्टवेयर (Ashwini Vaishnaw Pegasus) के जरिए भारतीयों की जासूसी करने संबंधी खबरों को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले लगाये गए ये आरोप भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास हैं. लोकसभा में स्वत: संज्ञान के आधार पर दिए गए अपने बयान में वैष्णव ने कहा कि जब देश में नियंत्रण एवं निगरानी की व्यवस्था पहले से है तब अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अवैध तरीके से निगरानी संभव नहीं है.