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यूपी: वाराणसी बीएचयू के डा. जीएन श्रीवास्तव ने दीपावली पर अस्थमा और दमा के मरीज बचने की दी सलाह।
वाराणसी। मौसम में तेजी से बदलावा हो रहा है और दीपों का त्योहार दीपावली को लेकर भी उत्सुकता लोगों में बढ़ गई है। अभी से ही आतिशबाजी भी शुरू हो गई है। ऐसे में सांस रोगियों को बहुत ही सतर्क रहना पड़ेगा। कारण कि आतिशबाजी के साथ ही अन्य धुएं व प्रदूषण आपकी सांसें फुला देगा। इसके अलावा हृदयरोगियों के लिए भी घातक बन सकता है। साथ ही लोगों को सीधे पंखे के नीचे नहीं सोने की सलाह दी जा रही है।
वहीं अगर आप सोते भी हैं तो भोर में पंखा बंद कर दें या फिर उसकी स्पीड बहुत कम कर दें, वरना पुरानी बीमारी भी उभर जाएगी और दवा खानी पड़ जाएगी। मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है। इसके कारण दमा की बीमारी उभरने लगी है। सूखी या गीली खांसी के साथ ही पीला बलगम भी निकलता है। साथ ही सांस फूलने की भी समस्या बढ़ सकती है। यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है।
वहीं महिलाओं में 30-40 उम्र के बाद ही समस्या शुरू हो जाती है। महिलाओं में साइको सेमोटिक फैक्टर अधिक होता है। कारण कि उनकी भावनाएं नाजुक होती है, उन्हें तनाव भी अधिक होता है। वैसे एलर्जी की समस्या हर व्यक्ति की अलग-अलग होती है। सभी को खुद ही इसकी पहचान करनी होगी कि उन्हें किस चीज से एलर्जी है। अगर सांस तेज या सांस लेने में दिक्कत हो, घबराहट या खांसी आधिक हो, सीने में दर्द या थकान महसूस हो, स्किन, होंठ या नाखूनों पर नीले रंग हो तो तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
सीटी स्कैन व पीएफटी (पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट) से रोग का पता चल जाता है। चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू स्थित हृदयरोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. धर्मेंद्र जैन बताते है कि हृदयरोगियों को भी ठंड से बचना चाहिए। ब्रेथ ईजी चेस्ट सुपर स्पेशिलिटी हास्पिटल के डा. एसके पाठक बताते हैं कि यह जानना जरूरी हो जाता है कि अस्थमा के मरीजों के स्वास्थ्य के ऐसे कौन से आहार उपयोगी है जिससे उनका स्वास्थ्य सकारात्मक रूप से प्रभावित हो सके। ठंड के मौसम में मरीज अपने को ढक के रखे। घर की सफाई के समय मुहं, नाक ढककर सफाई करें व अस्थमा के मरीज अपनी दवाएं व इन्हेलर का प्रयोग समय से करते रहे।
वहीं डा. जीएन श्रीवास्तव, प्रोफेसर एंड हेड, टीबी एंड चेस्ट विभाग, आइएमएस बीएचयू ने बताया कि ठंड शुरू हो गई है। इसके साथ ही श्वास रोगियों की परेशानी भी है। श्वास रोगियों को अब बहुत अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। कारण कि ठंड में सांस फूलाने वाले उत्तेजक तत्व को बढ़ावा मिल जाता है। ऐसे में रोगी नियमित रूप से उपचार कराते रहे। सांस संबंधी गंभीर रोगियों के लिए दवा व इनहेलर थेरेपी दोनों ही मौजूद है। हालांकि सबसे कारगर इनहेलर थेरेपी है, क्योंकि यह सीधे फेफड़े तक पहुंचती है। लोगों से अपील है कि वे बाहर निकले तो तो मास्क लगाए। मास्क धूल, धुएं के साथ ही कोरोना से भी बचाएगा।