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धर्म: प्रबोधिनी एकादशी योग निद्रा से जागेंगे श्रीहरि, 14 को सुबह नौ से 15 को सुबह 8.51 बजे तक रहेगी एकादशी तिथि।

धर्म: प्रबोधिनी एकादशी योग निद्रा से जागेंगे श्रीहरि, 14 को सुबह नौ से 15 को सुबह 8.51 बजे तक रहेगी एकादशी तिथि।


धर्म आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि तक भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेष शय्या पर चार माह शयन करते हैं। इस काल में भक्त शास्त्रीय कृत्यों को सविधि संपादित करते हुए भगवान विष्णु के प्रबोधिनी उत्सव अर्थात जागरण की प्रतीक्षा करते हैं। इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है, जो इस वर्ष 15 नवंबर को पड़ रही है।

वहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार एकादशी तिथि 14 नवंबर को सुबह नौ बजे लग रही है, जो 15 नवंबर को सुबह 8:51 बजे तक रहेगी। एकादशी व्रत में पारण का अत्यधिक महत्व होता है। द्वादशी तिथि में पारण होने पर ही एकादशी व्रत के शुभफल की प्राप्ति होती है। व्रतीजन इस वर्ष 16 नवंबर को सुबह 9.16 बजे के पूर्व पारण करेंगे।

बता दें कि काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार शास्त्रों में एकादशी व्रत करने का विशेष महत्व बताया गया है। व्रत-विधान के अनुसार व्रत की पूर्व संध्या पर सात्विक आहार ग्रहण करके तन शुद्धि करें। उसके बाद एकादशी तिथि के दिन व्रत का संकल्प लेकर व्रत आरंभ करना चाहिए। पूर्ण उपवास न हो सके तो एक समय फलाहार करना चाहिए। 

वहीं व्रत के नियमानुसार चावल का त्याग करना चाहिए। कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवद् प्राप्ति के लिए पूजन और उपवास रखा जाता है। इसमें रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। इस दौरान कीर्तन, वाद्य, नृत्य और पुराणों का पाठ करना चाहिए। पूजन में धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन और फल से भगवान की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद घंटा, शंख, मृदंग वाद्यों की मंगल ध्वनि से भगवान के जागने पर जल का अघ्र्य देना चाहिए।

बता दें कि शास्त्रों में कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। तुलसी वैष्णवों के लिए परम आराध्य होती हैं। तुलसी के बिना उनका कोई कार्य भी संपादित नहीं होता है। श्रद्धालु भगवान के श्रीविग्रह शालिग्राम के साथ माता तुलसी का धूमधाम से विवाह करते हैं। घर में तुलसी के पौधे को विधिवत सजाकर उसके चारों ओर ईख का मंडप बनाकर उसके ऊपर ओढऩी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाते हैं। गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका शृंगार किया जाता है। 

वहीं इसके बाद विवाह के मंगल गीत गाए जाते हैं। इसके साथ ही विवाह का शुभ काल आरंभ हो जाता है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार श्रीहरि को एक लाख तुलसी पत्र समर्पित करने से वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। तुलसी विवाह एकादशी या द्वादशी तिथि को भद्रा से रहित काल में किया जाता है। इस वर्ष 15 नवंबर को सुबह 8:51 बजे से लेकर रात्रि तक तुलसी विवाह का पूजन किया जा सकता है।