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पंजाब: जालंधर में शूगर जांच के लिए बार-बार सूई लगाने की जरूरत नहीं, हाईटेक ट्रांसमीटर 15 मिनट में देगा रिपोर्ट।
पंजाब। जालंधर में बदलती जीवनशैली ने अभिभावकों के साथ बच्चों की मुस्कुराहट में भी 'शूगर' की कड़वाहट घोलनी शुरू कर दी है। दुनिया भर में तेजी से बच्चों में जन्मजात शूगर के मामले बढ़ रहे हैं। इसके कारणों पता लगाने में वैज्ञानिक खोज में जुटे हुए हैं । बच्चों में शूगर जांच करने के लिए अभिभावकों को खासी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। आधुनिक तकनीक से इस समस्या का समाधान कर दिया है। अमेरिकन कंपनी ने शूगर जांच के लिए उपकरण इजाद किया है जो हर 15 मिनट बाद शूगर का लेवल बताएगा।
वहीं उपकरण निर्माता कंपनी एम्ब्रोशिया सिस्टम के उतरी भारत के सेल मैनेजर जेपी सिंह कहते है कि पहले तीन माह की औसतन शूगर टेस्ट, उंगली में सूई मारकर तुरंत शूगर जांच करने के बाद कंटीन्यू ग्लोकोज मानिटर (सीजीएम) सिस्टम शुरू हो गया है। दस रुपये के सिक्के जैसे उपकरण पर सेंसर लगाकर शूगर जांच आसान हो गई है। इसके लिए मरीज के पास कोई एंड्रायड फोन या आईफोन या फिर स्मार्ट वाच होने चाहिए।
बता दें कि उपकरण को मरीज के बाजू व शरीर पर चिपका कर ब्लूटूथ के साथ उसके साथ जोड़ दिया जाता है। उसके बाद उसे रिमोट मानिटर के लिए जो रिडिंग देखना चाहता है, उसके मोबाइल के साथ अटैच किया जाता है। वह देश-विदेश में कहीं भी 5 मिनट से 24 घंटे में सेटिंग के आधार पर शूगर जांच रिपोर्ट देख सकता है। शूगर जांच का ग्राफ भी तैयार होगा। उपकरण की कीमत 17 हजार रुपये के करीब है और इस पर लगने वाला सेंसर करीब 2200 रुपये में मिलता है, जो 14 दिन तक काम करता है।
वहीं मरीजों की जांच के लिए आधुनिक उपकरण बच्चों में कारगर साबित हो रहा है। स्वजनों को घर बैठे ही पता चल जाता है कि बच्चे की स्कूल व कालेज में वर्तमान समय में शूगर बढ़ रही है या फिर कम हो रही है। उसके आधार पर दवा में बदलाव हो रहा है। वहीं बार बार बच्चों के सूई लगाने से होने वाला डर भी दूर हो गया है. मरीज कंपनी के सहयोग से एक माह तक की रिपोर्ट का रिकार्ड मंगवा सकते है।
वहीं दस साल के टाइप -1 शूगर की लड़की की मां मनिंदर कौर कहती हैकि शूगर जांच के लिए बार-बार सूई लगाने से बेटी काफी रोती थी। वहीं स्कूल में शूगर कम व बढ़ने से कई बार समस्याओं का सामना करना पड़ा। आधुनिक उपकरण के बाद सारी समस्याएं खत्म हो गई हैं। वहीं एंडो किड्स क्लीनिक के एंडोक्रोनालाजिस्ट डा. सौरभ उप्पल कहते हैं कि बच्चों में टाइप-1 शूगर के मामलों में भारत दुनिया भर में पहले पायदान पर है। उन्होंने कहा कि बच्चों में बढ़ रहे शूगर के मामलों के कारण को लेकर डाक्टरों के पास कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं । डाक्टर हवा में ही वायरस व कोई कण है जो बच्चों के शरीर को उनके पैनक्रियाज के खिलाफ कर तैयार कर उन्हें शूगर के मरीज बनाने का अनुमान लगा रहे हैं।
बता दें कि यूरोपियन डायबिटिज एसोसिएशन तथा जुवेनाइल डायाबिटिज रिसर्च फाउंडेशन ने साल 2015 से 2020 तक बच्चों में शूगर के तीन गुणा मामले बढ़ने का अनुमान लगाया था जो साढ़े चार गुणा तक दर्ज किए गए। अगले चार साल में शूगर से ग्रस्त मरीजों की संख्या दो गुणा होने की संभावना है। इंटरनेशनल डायबिटिज फाउंडेशन के अनुसार 11 में से 1 एक व्यक्ति शूगर के साथ जिंदगी व्यतीत कर रहा है। दो में से एक व्यक्ति ऐसा है जिसने शूगर की कभी जांच ही नही करवाई। शूगर के मरीजों में 10 फीसद टाइप-1 शूगर तथा 90 फीसद टाइप-2 के मरीज शामिल हैं। शूगर का लेवल जांचने के लिए ज्यादातर घरों में लोगों ने मशीनें रखी है। परंतु सभी को बार बार उंगली में सूई लगा कर खून निकाल कर जांच करनी पड़ती है।