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बिहार: भागलपुर में साइबर क्राइम के मामलों के अनुसंधान में बिहार फिसड्डी, वजह पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग और लोगों में कम जागरूकता।
भागलपुर। साइबर अपराध के अनुसंधान के मामले में बिहार फिसड्डी है। दर्ज कराए गए 100 में 30 मामलों का ही निष्पादन यहां हो पाता है। इसका मुख्य कारण प्रशिक्षित पुलिस कर्मियों का अभाव है। साइबर अपराध को रोकने के लिए राज्य स्तर पर साइबर अपराध प्रभाग का गठन किया गया है। वहां भी अनुसंधानकर्ताओं द्वारा आधी-अधूरी सूचनाएं दी जाती हैं। इस कारण अनुसंधानकर्ता को या तो तकनीकी सहायता नहीं मिल पाती है या फिर तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
वहीं सुपौल के एसपी मनोज कुमार का कहना है कि साइबर अपराध के मामले में को सुलझाने में पुलिस को 30 फीसद सफलता ही मिल पाती है। इसका मुख्य कारण पुलिसकर्मियों का तकनीकी रूप से दक्ष नहीं होना है। प्रविधान के अनुसार साइबर अपराध के अनुसंधान की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर को देनी है। पर्याप्त संख्या में विभाग के पास इंस्पेक्टर नहीं हैं। इस कारण समस्या होती है। सहरसा की एसपी लिपि सिंह का कहना है कि साइबर अपराधी इंटरनेट कालिंग के जरिये अपराध करते हैं। ऐसी स्थिति में अपराधियों तक पहुंच पाने में परेशानी होती है। साइबर अपराध को रोकने के लिए पुलिसकर्मियों का प्रशिक्षित होना जरूरी है।
वहीं खगड़िया के गोगरी अनुमंडल में साइबर अपराध से संबंधित आधे दर्जन मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन एक ही मामले में कार्रवाई हो सकती है। अगस्त से अक्टूबर के बीच मुंगेर में साइबर अपराध से संबंधित 14 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से मात्र एक मामले का निष्पादन किया जा सका है। जमुई में 150 से अधिक मामले दर्ज किए गए, लेकिन एक-दो मामले को छोड़कर पुलिस किसी भी अन्य मामले को सुलझाने में विफल रही है। इस इलाके के साइबर अपराधी इतने शातिर हैं कि दूसरे राज्यों में भी ये घटना को अंजाम देने में सफल रहते हैं। चकाई थना क्षेत्र के बारडीहा गांव के पांच युवकों को साइबर अपराध के मामले में दिल्ली पुलिस पकड़कर ले गई।
बता दें कि किशनगंज में इस साल अप्रैल से जुलाई तक साइबर अपराध के 17 मामले दर्ज किए गए। यहां की पुलिस को कुछ हद तक इन मामलों के अनुसंधान में सफलता भी मिली है। साइबर अपराध के मामले में सबसे कम मुकदमे सहरसा जिले में दर्ज किए गए। पूर्णिया में भी साइबर अपराध को सुलझाने में पुलिस अधिक सफल नहीं हो सकी है।
वहीं दूसरी तरफ साइबर अपराध की रोकथाम के लिए आर्थिक एवं साइबर अपराध प्रभाग के एसपी ने राज्य के सभी पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर अनुसंधान के मामले में सावधानी बरतने का सुझाव दिया है। पत्र में कहा गया है कि जांचकर्ता द्वारा तकनीकी सहायता प्राप्त करने के लिए राज्य मुख्यालय को जो अनुरोध पत्र भेजा जाता है, उसमें आवश्यक दस्तावेज की कमी रहती है। इस कारण तकनीकी सहायता देने में विलंब हो जाता है।
वहीं विभाग ने इसके लिए एक एसओपी स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीड्योर तैयार किया है। उसी के आधार पर सूचनाएं राज्य मुख्यालय को भेजी जानी हैं। साइबर अपराध के मामले में कई बार लोग पुलिस को समय पर सूचना नहीं देते हैं। इस कारण परेशानी होती है। विभाग के पास प्रशिक्षित लोगों और संसाधनों की भी कमी है, हालांकि इस मामले में मुख्यालय स्तर से लगातार सुधार की कोशिश की जा रही है।