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यूपी: वाराणसी में लोक आस्था का छठ महापर्व आठ नवंबर से, जानिए व्रत के संपूर्ण विधान और मान्यताएं।
वाराणसी। चार दिवसीय सूर्य उपासना और आरोग्य सौभाग्य व सर्व सुख प्रदाता छठ व्रत आठ नवंबर से 11 नवंबर तक मनाया जाएगा। व्रत का प्रथम नियम संयम आठ नवंबर सोमवार को व्रत का द्वितीय संयम नौ नवंबर मंगलवार को होगा। अस्ताचल सूर्य देव को प्रथम अर्घ्य 10 नवंबर गुरुवार को, सायं काल उगते हुए सूर्य देव को द्वितीय अर्घ्य 11 नवंबर गुरुवार को दिया जाएगा। प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य देव की आराधना से जीवन में उमंग उल्लास व ऊर्जा का संचार होता है।
वहीं सुख समृद्धि खुशहाली के लिए सृष्टि के नियंता भगवान सूर्य देव की महिमा अनंत मानी गई है। सूर्य देव की महिमा में रखने वाला डाल छठ जिसे छठ पर्व भी कहते हैं। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होगा। इसका समापन कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन होता है। ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार इस बार चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व आठ नवंबर सोमवार से प्रारंभ होकर 11 नवंबर गुरुवार तक चलेगा।
बता दें कि धार्मिक पौराणिक मान्यता यह है कि सूर्य षष्ठी के व्रत से पांडवों का अपना खोया हुआ राज्य पाठ एवं वैभव प्राप्त हुआ था। मान्यता यह भी है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त तथा सप्तमी तिथि सूर्योदय के मध्य वेद माता गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ था। ऐसी भी पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के अतीत के दिन उपवास रखकर भगवान सूर्य देव की आराधना कर तथा सप्तमी के दिन व्रत पूर्ण किया था। इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया था। फलस्वरुप सूर्य देव की आराधना का छठ पर्व मनाया जाता है। इस चार दिवसीय पर्व में भगवान सूर्य की आराधना का विधान है। ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार सूर्य की आराधना का चार दिवसीय महापर्व आठ नवंबर से प्रारंभ होकर 11 नवंबर तक चलेगा।
वहीं कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि सात नवंबर रविवार को शाम 4:23 से आठ नवंबर सोमवार को दिन में 1:17 तक, आठ नवंबर सोमवार को व्रत का प्रथम नियम संयम।
वहीं कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि आठ नवंबर सोमवार को दिन में 1:17 से नौ नवंबर मंगलवार को दिन में 10:36 तक नौ नवंबर मंगलवार को द्वितीय संयम एक समय खरना।
वहीं कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि नौ नवंबर मंगलवार को दिन में 10:36 से 10 नवंबर बुधवार को प्रातः 8:26 तक 10 नवंबर बुधवार को व्रत के तृतीय संयम के अंतर्गत सायं काल अस्ताचल सूर्य देव को प्रथम अर्घ्य दिया जाएगा।
वहीं कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 10 नवंबर बुधवार को 8:26 से 11 नवंबर गुरुवार को सुबह 6:50 तक रहेगा 11 नवंबर गुरुवार को 11 नवंबर गुरुवार को चतुर्थी एवं अंतिम संयम के अंतर्गत प्रातः काल उगते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर छठ व्रत का पारण किया जाएगा।
बता दें कि चार दिवसीय महापर्व पर सूर्य देव की पूजा के साथ माता षष्ठी देवी की भी पूजा अर्चना करने का विधान है। इस पर्व पर नवीन वस्त्र नवीन आभूषण पहनने की परंपरा है। यह व्रत किसी कारणवश जो स्वयं ना कर सके वह अपनी ओर से किसी व्रती को समस्त पूजा सामग्री व नकद धन देकर अपने व्रत को संपन्न करवाते हैं। प्रथम संयम आठ नवंबर सोमवार चतुर्थी तिथि के दिन सात्विक भोजन जिसमें कद्दू और लौकी की सब्जी, चने की दाल तथा हाथ की चक्की से पीटते हुए गेहूं के आटे की पूड़ियां ग्रहण की जाती हैंं।
वहीं इसे नहाय खाए के नाम से जाना जाता है। अगले दिन नौ नवंबर मंगलवार पंचमी तिथि को सायं काल स्नान ध्यान के पश्चात प्रसाद ग्रहण करते हैं जो कि धातु या मिट्टी के नवीन बर्तनों में बनाया जाता है। प्रसाद के तौर पर चावल से बनी गुड़ की खीर ग्रहण किया जाता है जिसे अन्य भक्तों में भी वितरित करते हैं इसे खरना के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद व्रत रखकर 10 नवंबर बुधवार षष्ठी तिथि के दिन सायं काल अस्ताचल सूर्य देव को पूर्ण श्रद्धा भाव से अर्घ्य देकर उनकी पूजा की जाती है। पूजा के अंतर्गत भगवान सूर्य देव को एक बड़े सूप की डलिया में पूजन सामग्री सजाकर साथ ही विविध प्रकार के ऋतु फल भरकर, पकवान जिनमें शुद्ध देसी घी का गेहूं के आटे तथा गुड़ से बना हुआ ठोकवा प्रमुख होता है भगवान सूर्य देव को यह अर्पित किया जाता है।
बता दें कि भगवान सूर्य देव की आराधना के साथ षष्ठी देवी की प्रसन्नता के लिए उनकी महिमा में गंगा तट, नदी या सरोवर पर लोक गीत का गायन करते हैं। जो रात्रि पर्यंत चलता रहता है। रात्रि जागरण से जीवन में नवीन ऊर्जा के साथ अलौकिक शांति भी मिलती है। अंतिम दिन 11 नवंबर गुरुवार सप्तमी तिथि के दिन प्रातः काल उगते हुए सूर्य देव को धार्मिक विधि-विधान और रीति रिवाज से लेकर छठ व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मुख्यत: महिलाएं ही करती हैं। महिलाएं अधिक से अधिक लोगों में शुभ मंगल कल्याण की भावना अपने मन में रखते हुए भक्तों में प्रसाद भी वितरित करती हैं। इससे उनके जीवन में सुख समृद्धि सौभाग्य बना रहता है। स्वयं भगवान सूर्य देव की पूजा अर्चना करने में सक्षम ना हो वह दूसरे व्रत करता भक्तों को धनराशि और पूजन की समस्त सामग्री प्रदान करके पूजा अर्चना कर संपन्न करवा कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।