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यूपी: वाराणसी में लोटा-भंटा मेला का हुआ शुभारंभ, जहां वरुणा में स्नान के बाद लगता है भोलेनाथ को बाटी चोखा का भोग।
वाराणसी। सात वार, नौ त्यौहार और देवों की नगरी वाले प्राचीन शहर बनारस में उत्सवों की कोई कमी नहीं। देव- दीपावली बीतने के बाद आता है काशी का प्राचीन उत्सव लोटा भंटा का अनोखा मेला।इस मेले को श्रद्धालु बहुत ही श्रद्धा और आस्था के साथ धूमधाम से मनाते हैं। बनारस काशी के पारंपरिक उत्सव लोटा-भंटा मेले का महात्म्य ही अलग है। वाराणसी के जंसा, रामेश्वर, पंचशिवाला -हरहुआ के बीच वरुणा नदी के कछार पर तहसील राजातालाब व तहसील पिंडरा क्षेत्र में हर साल यह मेला लगता है।
वहीं हर साल यह मेला मार्गशीर्ष (अगहन) महीने की षष्ठी तिथि को लगता है। वैसे पूरा कार्तिक मास स्नान पर्व देवों के साथ आस्था संगम का माह है। मेले में आने वाले श्रद्धालु मान्यता के अनुसार पहले विष्णु के दाहिने चरण के अंगूठे से निकल कर बहने वाली आदि गंगा वरुणा नदी में स्नान करते हैं। स्नान के बाद रामेश्वर महादेव सहित विभिन्न देवालयों में दर्शन पूजन करते हैं और प्रसाद स्वरूप बाटी-चोखा सगे सम्बन्धियो संग ग्रहण करते हैं। सुख-दुःख के दो पल बातचीत गले मिलकर गीले शिकवे के बाद मेला देखने के साथ खरीददारी संग वापस घरों को जाते हैं।
बता दें कि मान्यता है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने यहां एक मुट्ठी रेत से शिवलिंग की स्थापना कर की थी। शिव व राम का पहला मिलन स्थल जिसे रामेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस पर सिंधिया नरेश ने विशाल घाट व मन्दिर का निर्माण कराया। रावण वध के बाद भगवान श्री राम को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। जिसका प्रायश्चित करने के लिए श्रीराम ने अन्न का त्याग कर दिया। जिसके बाद श्रीराम काशी आए और यहां एक मुट्ठी रेत का शिवलिंग बना कर लोटा जल से पूजा कर बाटी -चोखा प्रसाद बनाकर भगवान शिव को भोग लगाया और वही प्रसाद को खा कर अन्नत्याग के प्रायश्चित को समाप्त करते हुए भगवान श्रीराम ने अपना व्रत तोड़ा। जो लोटा-भंटा मेला के नाम से जाना जाने लगा है।
वहीं दूसरी तरफ नि:संतान दंपतियों के लिए इसी दिन रामेश्वर महादेव की पूजा और बाटी-चोखा का प्रसाद अत्यंत कल्याणकारी और फलदायक है। यहां मंदिर में नहुशेश्वर, द्यावा भुमीश्वर, लक्ष्मणेश्वर, पंच पालेश्वर, अग्निश्वर, भरतेश्वर, शत्रुघ्नेश्वर, दत्तात्रेय, राम लक्ष्मण जानकी, हनुमान, गणेश भगवान नरसिंह, काल भैरव, सूर्यदेव, साक्षी विनायक और माता तुलजा-दुर्गा भवानी की प्रस्तर प्रतिमा व अनेक लिंग व असंख्यात शिवलिंग स्थापित है। पास में ही झारखंडेश्वर महादेव,उत्कलेश्वर, रुद्राणी देवी के मन्दिर में दर्शन होता है। जिससे कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और मनोकामना पूर्ण होती है।
वहीं राधा- कृष्ण मंदिर के महंत राममूर्ति दास उर्फ मद्रासी बाबा व रामेश्वर मंडूर के पुजारी आचार्य प. अनूप तिवारी के अनुसार पर्व व त्योहार हमारी संस्कृति व संस्कार हैं जो हमें एकता, समरसता,भाई -चारे के सूत्र में जोड़ते हैं। यह मेला हमारी आस्था, विश्वास और पारस्परिक प्रेम का हिस्सा है जो समाज मे जोड़ने का संदेश देती है। इस वर्ष 25 नवम्बर गुरुवार को यह विशाल लोटा- भंटा मेला वरुणा और पंच शिवाला संगम क्षेत्र में सम्पन्न होगी।