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यूपी: वाराणसी में आरएनए आधारित औषधियां और टीके करेंगे चांदीपुरा वायरस जनित बुखार का जड़ से खात्मा। .
वाराणसी। महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, गुजरात एवं दक्षिणी-पश्चिमी अन्य राज्यों में चांदीपुरा वायरस से फैलने वाले तीव्र बुखार और उससे हाेने वाली बच्चों की मौतों के थमने का समय नजदीक आ गया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान संस्थान के मालीक्यूलर बायोलाजी के प्रो. सुनीत कुमार सिंह के निर्देशन में इस वायरस की पैथोजेनेसिस पर एक विशेष शोध हुआ है जिसमें पता चला है कि आरएनए आधारित औषधियां और टीके इस बीमारी से बचाव में कारगर साबित हो सकते हैं। इस खोज के बाद इस वायरसजनित बीमारी के उपचार की राहें खुलती दिखने लगी हैं।
बता दें कि वर्ष 1966 में महाराष्ट्र के नागपुर के पास चांदीपुर गांव में तीव्र ज्वर का प्रकोप फैला और 15 वर्ष के कम उम्र के बच्चों की मौतें होने लगीं। पता चला कि यह बीमारी एक वायरस की देन है। पहली बार सामने आए उस वायरस का नाम ही चांदीपुरा पड़ गया। इस विषाणु ने फिर विज्ञानियों का ध्यान 2002-2004 के बीच खींचा, जब इसका संक्रमण आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में भी देखा गया। यह एक आरएनए वायरस है। 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं। यह संक्रमित सैंड फ्लाइज और मच्छरों से फैलता है। इसके उपचार के लिए कोई एंटीवायरल दवा नहीं हैं। इसके प्रभाव को बस,अच्छे पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और जागरूकता से ही कम किया जा सकता है।
वहीं प्रभाव शोध में ज्ञात हुआ कि इस वायरस के संक्रमण से मस्तिष्क की कोशिकाओं में सूजन हो जाती है। साथ ही इनकी कार्यप्रणाली बदल जाती है। तीव्र बुखार, उल्टी, ऐंठन एवं अन्य मष्तिष्क की विकृतियों जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। इसके कारण मरीजों में इन्सेफेलाइटिस जैसे लक्षण प्रकट होते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित मरीज कोमा में चले जाते हैं, कुछ की मृत्यु भी हो जाती है।
बता दें कि प्रो. सिंह के निर्देशन में शोध छात्रा नेहा पांडेय ने पाया कि वायरस का संक्रमण सूक्ष्म आरएनए कोशिकाओं को प्रभावित करता है और उन्हें उत्तेजित कर अपना प्रभाव बढ़ाता है। मस्तिष्क की माइक्रोग्लियल कोशिकाएं जो मस्तिष्क के संक्रमणों काे रोकने में मदद करती हैं। यह वायरस उन्हीं माइक्रोग्लियल कोशिकाओं को अत्यधिक सक्रिय कर देता है।
वहीं इससे विभिन्न साइटोकाइन्स की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। इन कोशिकाओं की अत्यधिक सक्रियता में माइक्रो आरएनए-21 महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए माइक्रो आरएनए आधारित औषधियां और टीके विषाणुजनित संक्रमण का उपचार करने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं। यह शोध "जर्नल आफ बायोमेडिकल साइंस" में प्रकाशित हुआ है।