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यूपी: पूरे प्रदेश में एसजीपीजीआइ में भी हो सकेगी जीका वायरस की जांच, अभी स‍िर्फ केजीएमयू में ही है सुव‍िधा।

यूपी: पूरे प्रदेश में एसजीपीजीआइ में भी हो सकेगी जीका वायरस की जांच, अभी स‍िर्फ केजीएमयू में ही है सुव‍िधा।


लखनऊ। प्रदेश में जीका वायरस संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ने के चलते अब संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में भी इसके नमूने जांचे जाने का फैसला किया गया है। सरकार की ओर से निर्देश मिलने के बाद पीजीआइ भी अब जीका वायरस की जांच करने को तैयार हो गया है। बशर्ते उसे किट का इंतजार है। इस संबंध में आइसीएमआर और एनबीआरआइ से एसजीपीजीआइ के डॉक्टरों की बातचीत भी चल रही है। संस्थान को जल्द ही किट मुहैया कराने का भरोसा भी दिलाया है। अभी तक जीका वायरस के सभी नमूने किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में जांचे जा रहे हैं।

वहीं एसजीपीजीआइ में माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्ष डॉ उज्ज्वला घोषाल ने बताया कि हमारी लैब जीका वायरस की जांच करने को तैयार है। अभी वह हमारे पास उतने किट नहीं है, लेकिन ढाई सौ नमूने तक जांच सकने की व्यवस्था है। अगर कुछ नमूने अभी आ जाते हैं तो हमें जांचने में दिक्कत नहीं होगी। बशर्ते आगे किट की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए सरकार को अवगत करा दिया गया है। उन्होंने बताया कि जीका वायरस की जांच भी कोरोना की तरह आरटी पीसीआर से ही की जाती है।

वहीं यह ज़ीका विषाणु से होने वाला मच्छरजनित रोग है। और इसकी जांच रक्त के नमूने लेकर आरटीपीसीआर से होती है। यह एडीज मच्छर के काटने से होता है। संक्रमित से असुरक्षित संभोग, ब्लड ट्रांसफ्यूजन इत्यादि से हो सकता है। इसके मच्छर दिन के समय सक्रिय रहते हैं। इंसानों में यह मामूली बीमारी के रूप में जाना जाता है। 1947 के दशक से इस बीमारी का पता चला। यह अफ्रीका से एशिया तक फैला हुआ है। वहीं 1947 में पीले बुखार का शोध कर रहे पूर्वी अफ्रीकी विषाणु अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक जीका के जंगल में रीसस मकाक (लंगूर) को पिंजरे में रख कर अपना शोध कर रहे थे। उस बंदर को बुखार हो जाता था। 

वहीं सन् 1952 में उसके संक्रामक घटक को जीका विषाणु नाम दिया गया। इसके बाद नाइजीरिया में वर्ष 1954 में एक मानव में इसकी पुष्टि हुई। यह 2014 में प्रशांत महासागर से फ्रेंच पॉलीनेशिया तक और उसके बाद 2015 में यह मेक्सिको, मध्य अमेरिका तक भी पहुंच गया। अप्रैल 2007 में इसका प्रभाव पहली बार अफ्रीका और एशिया के बाहर देखने को मिला।
किसी भी मरीज की मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

बता दें कि यप नामक एक द्वीप में लाल चकत्ते, आंखों में लाली, और जोड़ों के दर्द के रूप में इसका असर दिखा था। पहले इसे सामान्यतः डेंगू या चिकनगुनिया समझा जा रहा था। जब बीमार लोगों के रक्त का परीक्षण किया गया तो उनके रक्त में जीका विषाणु का आरएनए पाया गया। कुछ मामलों में ज़ीका के कारण लकवा हो सकता है। गर्भवती महिलाओं में यह जन्म के समय होने वाली समस्याओं का कारण बन सकता है। 

बता दें कि गर्भवती से बच्चे को संक्रमण होने पर उसका विकास बाधित होने के साथ न्यूरो संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। कुछ लोगों में बुखार, चकत्ते, जोड़ों में दर्द, और आंखों में लाली हो सकती है। इसका अभी तक कोई टीका या विशेष उपचार नहीं है। सिर्फ लक्षणों के आधार पर इलाज होता है। वहीं अधिक पानी पीने, और बुखार और दर्द के लिए एसिटामिनोफेन लेने की सलाह दी जाती है। एस्पिरिनऔर इबुप्रोफेन जैसी बिना स्टेरॉइड वाली सूजन रोधी दवाओं से बचना चाहिए। 

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