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यूपी: वाराणसी के स्वर्वेद महामंदिर धाम में 5101 कुण्डीय विश्व शांति वैदिक महायज्ञ का हुआ आयोजन।
वाराणसी। यज्ञ त्याग भाव है। अग्नि की ज्वाला सदैव ऊपर की ओर उठती है। अग्नि को बुझा सकते हैं, नीचे झुका नहीं सकते। वैसे ही हमारा जीवन भी ऊध्र्वगामी हो, श्रेष्ठ औश्र पवित्र पथ पर, कल्याणकारी पथ पर निरंतर गतिशील रहे। अग्नि को पवित्र करती है, शुद्ध करती है। हमारे अंतःकरण में ज्ञान की अग्नि जलती रहे, अंधेरा न हो हमारे अंतःकरण में। शरीर में कर्म की अग्नि जलती रहे। इन्द्रियों में तप की अग्नि जलती रहे। श्रेष्ठ विचारों की, सद्विचारों की अग्नि प्रज्ज्वलित रहे। अशुभ नष्ट होता रहे। यज्ञ की अग्नि यही संदेश देती है।
वहीं ये शब्द सन्त प्रवर विज्ञानदेव महाराज ने उमरहां, वाराणसी स्थित स्वर्वेद महामन्दिर धाम पर 5101 कुण्डीय विश्व शान्ति वैदिक महायज्ञ में व्यक्त किए। संत प्रवर ने यह भी कहा कि यज्ञ श्रेष्ठ मनोकामनाओं की पूर्ति और पर्यावरण शुद्धि का भी साधन है। परन्तु यज्ञ यहीं तक सीमित नहीं है। वैदिक हवन यज्ञ हमारे भीतर त्याग की भावना का विकास करता है। मैं और मेरा से ऊपर उठकर विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। आज हो रहे ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने का यह एक ससक्त माध्यम है। इस पर सभी पर्यावरण चिंतको का ध्यान अवश्य होना चाहिए। यज्ञ एवं योग के सामंजस्य से ही विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है। महाराज जी ने बताया कि यज्ञ का धुँआ कोई डीजल या पेट्रोल का धुंआ नहीं है। यह आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों का लाभकारी धूम्र है जिससे स्वास्थ्य लाभ एवं पर्यावरण शुद्धि दोनों का लाभ होता है।
यह महायज्ञ विहंगम योग के 98वें वार्षिकोत्सव, देश की आजादी के लिए विहंगम योग के प्रणेता सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज की जेल यात्रा के शताब्दी वर्ष और आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर आयोजित 3 दिवसीय कार्यक्रम में हुआ जिसमें लगभग 1 लाख लोगों ने भाग लिया।
वहीं दूसरी तरफ़ भव्य एवं आकर्षक ढंग से सजी 5101 कुण्डीय यज्ञ वेदियों में वैदिक मंत्रों की ध्वनि से संपूर्ण वातावरण शुचिता को धारण करते हुए गुंजायमान हो उठा। विश्वशांति वैदिक महायज्ञ में संपूर्ण भारत वर्ष के साथ के साथ दर्जनों देशो से आए भक्तों ने एक साथ इस पावन अवसर पर भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त वैदिक मंत्रोंच्चारण के साथ यज्ञ कुंड में आहुति को प्रदान किये।
वहीं यज्ञ वेदी से निकल रहे धूम्र से आस-पास के गाँवों का संपूर्ण वातावरण परिशुद्ध होने लगा। यज्ञ के पश्चात सद्गुदेव एवं संत प्रवर श्री के दर्शन के लिए अनुयायियों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। 5101 कुंडों से निकलते यज्ञीय धूम्र से सम्पूर्ण वातावरण परिशुद्ध हो दिव्य परिवेश का निर्माण हो उठा।
वहीं यज्ञ के उपरांत मानव मन की शांति व आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा आगत नए जिज्ञासुओं को दी गई जिसमें लगभग 2000 नए जिज्ञासुओं ने ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा को ग्रहणकर अपने जीवन का आध्यात्मिक मार्ग प्रसस्त किया।
बता दें कि इस आयोजन में प्रतिदिन निःशुल्क योग, आयुर्वेद, पंचगव्य, होम्योपैथ आदि चिकित्सा पद्धतियों द्वारा कुशल चिकित्सकों के निर्देशन में रोगियों को चिकित्सा परामर्श भी दिया जाता रहा जिसका लाभ आगत भक्त शिष्यो के साथ क्षेत्रीय लोग भी प्राप्त कर रहे हैं। आगत भक्तों के लिए अनवरत भण्डारा चल रहा है। भोजन व्यवस्था में दिक्कत न हो इसके लिये चार बड़ा भोजनालय में 60 काउंटर बनाये गए है ताकि सहजता से सभी को भोजन प्रसाद प्राप्त हो सके।
इस कार्यक्रम में विहंगम सेवा केंद्र का भव्य वृहत स्टाल लगा है जहाँ पर आश्रम द्वारा प्रकाशित सैकड़ो साहित्य, आध्यात्मिक मासिक पत्रिका , विशुद्ध जड़ी बूटियों से निर्मित आयुर्वेदिक औसाधियाँ, गो आधारित पंचगव्य औषधियों आदि सेवा प्रकल्पों का केंद्र बना हुआ है। कार्यक्रम में 14 दिसंबर को पधारे मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई ट्वीट कर कार्यक्रम के लिए अपनी शुभकामनाएँ भी व्यक्त की हैं।
वहीं कार्यक्रम स्थल स्वर्वेद महामन्दिर धाम विश्व के सबसे बड़े साधना केन्द्रों में है। लाखों टन श्वेत मकराना संगमरमर एवं गुलाबी सैण्डस्टोन से सुसज्जित यह महामन्दिर सद्गुरुदेव के आध्यात्मिक महाग्रंथ स्वर्वेद के साथ-साथ ऋषि संस्कृति का भी संदेश दे रहा है। मन्दिर के भीतर एवं बाहर लगी एक-एक कलाकृति किसी न किसी आध्यात्मिक संदर्भ या संदेश पर आधारित है। महामन्दिर का निर्माण तेजी से पूर्णता की ओर बढ़ रहा है।
वहीं दूसरी तरफ़ इस महामन्दिर को काशी के एक प्रमुख आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में तो जाना ही जाता है, यह अनेक सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का भी मुख्य केन्द्र है। महामन्दिर परिसर में स्थित सद्गुरू सदाफलदेव आप्त वैदिक गुरुकुल में लगभग 100 बच्चों हेतु निःशुल्क आवासीय शिक्षा दी जा रही है। महायज्ञ में इन्ही छात्र बटुको ने सस्वर वैदिक मंत्रोच्चारण से सबका मन मोह लिया। महामन्दिर की गौशाला में सैकड़ों गौवंश की सेवा हो रही है। हाल के कोरोना महामारी में महामन्दिर द्वारा कई टन अन्न, तैयार भोजन एवं अन्य राहत सामग्री ट्रकों द्वारा वितरित की गई है।
और वहीं सबसे बड़ी सेवा, मानवता की सेवा है। महामन्दिर में हर-जाति धर्म के 20,000 लोग एक साथ ध्यान साधना कर सकेंगे। विहंगम योग की साधना पर अनेक देशों में हुए वैज्ञानिक शोध यह सिद्ध कर चुके हैं कि इस साधना द्वारा व्यक्ति का स्वयं के मन पर नियंत्रण होने लगता है। नशा-मुक्ति सहित समस्त अनुचित कार्यों के प्रति मनुष्य स्वयं को रोक लेता है। अच्छे विचारों, अच्छे कार्यों की ओर प्रवृत्ति होने लगती है। एक श्रेष्ठ मनुष्य का निर्माण संसार की सबसे बड़ी सेवा है।
वहीं कार्यक्रम के संध्याकालीन सत्र में सन्त प्रवर विज्ञानदेव जी महाराज ने अपने सत्संग अमृत में स्वर्वेद महाग्रंथ की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वर्वेद ईश्वरीय ज्ञान का सद्ग्रंथ है, कोई बुद्धि के आधार पर लिखा गया ग्रंथ नहीं है। यह अमर हिमालय योगी सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज के योग समाधि में अनुभवों की अभिव्यक्ति है। अन्तिम सत्र में सद्गुरु आचार्य स्वतंत्रदेव महाराज की अमृतवाणी हुई। स्वामीजी ने बतलाया कि हमें सांसारिक मनोकामनाओं के बजाय सद्गुरु से भक्ति की ही मांग करनी चाहिए। एक भक्त की हर आवश्यकता समय से पूर्ण हो जाती है। प्रेम की पराकाष्ठा ही भक्ति है। अनन्य प्रेम एवं समर्पण भाव जीवन को बहुत आगे ले जाता है। भक्त-शिष्यों का जिज्ञासा-भाव विपरीत मौसम पर भारी था।