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गोवा: अपनी आज़ादी के 60 बरस पूरे कर रहा गोवा में क्या बीजेपी के हाथ से खिसक जाएगा।
गोवा। नीला रंग लिए हुए पारदर्शी पानी वाले समुद्र के लिए जो गोवा आज देश-विदेश के सैलानियों की पहली पसंद है और कैसिनो में जाकर रातो-रात अमीर बनने का सपना देखने वालों का सबसे बड़ा अड्डा बना हुआ है। उसका इतिहास न जानने वालों को शायद ये भी पता नहीं होगा कि भारत के आज़ाद होने के 14 साल बाद तक उसी गोवा को पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इस लड़ाई की अगुवाई करने वाले आधुनिक राजनीति में समाजवाद के सबसे बड़े पैरोकार राम मनोहर लोहिया ही थे जिन्होंने भरी लोकसभा में एक बार ये कहा था कि 'जिस दिन सड़क खामोश हो जायेगी।
वहीं उस दिन देश की संसद आवारा हो जाएगी अपने समुद्री सौंदर्य से लोगों को ललचाने वाला वही गोवा इस 19 दिसंबर को पुर्तगाल शासन से मुक्त होने और भारत का एक राज्य बनने के 60 साल पूरे होने का जश्न मनाने की शुरुआत कर चुका है। हालांकि गोवा करीब 450 साल तक पुर्तगाल का एक उपनिवेश ही रहा लेकिन साल 1961 में भारत के कब्जे में आने के बावजूद उसे एक राज्य का दर्जा 1987 में ही मिल पाया।
बता दें कि राजनीतिक लिहाज से देश का ये सबसे छोटा राज्य इस वक़्त तमाम राजनीतिक दलों की आंख का तारा बन गया है क्योंकि यूपी व पंजाब की तरह वहां भी अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। हालांकि गोवा विधानसभा में महज़ 40 सीटें हैं लेकिन अपने भौगोलिक नक्शे और दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों के चलते यहां की सत्ता पर काबिज़ होना, हर पार्टी का एक बड़ा सपना और मकसद होता है। सालों तक कांग्रेस ने इस समुद्री सूबे में राज किया है लेकिन पिछले चुनावों में बहुमत न मिलने के बावजूद बीजेपी यहां अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो ही गई। हालांकि गोवा का कायाकल्प करने और वहां भारतीय संस्कृति को जिंदा रखने के साथ ही उसे और मजबूत करने का श्रेय लोग आज भी बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री दिवंगत मनोहर पर्रिकर को ही देते हैं।
वहीं लेकिन इस बार बीजेपी और कांग्रेस या वहां की क्षेत्रीय पार्टियों के बीच तिकोना मुकाबला नहीं है बल्कि ये पचरंगा होता दिख रहा है। वजह ये है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टीएमसी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी वहां चुनावी-मैदान में कूद पड़ी हैं। जाहिर है कि ये दोनों ही बीजेपी व कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने में कोई कसर नहीं रखने वाले लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि इसका ज्यादा नुकसान बीजेपी को हो सकता है क्योंकि वो पिछले पांच साल से सत्ता में है।
बता दें कि लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ममता बनर्जी को अचानक बंगाल से निकलकर गोवा की याद क्यों आई,जहां लोकसभा की महज़ दो सीट हैं। उनके नजदीकी ही इसका जवाब देते हुए बताते हैं कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दीदी अपनी टीएमसी को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहती हैं ताकि वह समूचे विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद की सर्वमान्य उम्मीदवार बन सकें। वे बंगाल से बाहर निकलकर त्रिपुरा,गोवा व अन्य राज्यों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहती हैं।
वहीं दूसरी तरफ़ अपनी पार्टी की जमीन मजबूत करने या और सियासी तिकड़मे फिट करने के मकसद से पिछले महीने ढाई दिन तक ममता गोवा में थीं। उनके गोवा दौरे ने दिल्ली के सियासी गलियारों में भी खासी हलचल इसलिये पैदा कर दी थी कि कहीं वहां भी वे बंगाल की चुनावी-जंग दोहराने में कामयाब न हो जाएं। हालांकि उन्होंने सियासी चाल के कौन-से मोहरे चले हैं।
वहीं ये तो अभी किसी को पता नहीं है लेकिन उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर बंगाल की तरह ही गोवा में भी ममता के लिए योजना बना रहे हैं। उन्होंने पिछले कुछ महीनों से वहां डेरा डाल रखा है।